चीन में अच्छा-खासा प्रभाव रखने वाले ‘थिंक टैंक’ का मानना है कि अगर भारत के नए रुख से बलूचिस्तान में 46 अरब डॉलर लागत की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना को बाधित पहुंची, तो फिर चीन इस मामले में दखल देगा.
चीन की स्टेट सिक्योरिटी के मंत्रालय से संबद्ध इस प्रभावी थिंकटैंक के अध्ययनकर्ता ने यह भी कहा कि भारत का अमेरिका से बढ़ता सैन्य संबंध और दक्षिण चीन सागर पर इसके रुख में बदलाव चीन के लिए खतरे की घंटी के समान है.
पीएम नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान के जिक्र पर इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एंड साउथ-ईस्ट एशियन एंड ओसिनियन स्टडीज के निदेशक ‘हू शीशेंग’ ने भारत के दखलंदाजी पर चिंता जाहिर की है.
भारत, पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में ‘सरकार विरोधी’ तत्वों का इस्तेमाल कर सकता है, जहां चीन सीपीईसी में 46 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है. भारत वही तरीका अपना सकता है जो उसके हिसाब से पाकिस्तान, भारत के मामलों में अपना रहा है.हू शीशेंग, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एंड साउथ-ईस्ट एशियन एंड ओसिनियन स्टडीज
चीन के लिए चिंता की बात
हू शीशेंग ने कहा, “यह पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति में निर्णायक मोड़ हो सकता है. चीनी बुद्धिजीवियों की चिंता की वजह यह है कि भारत ने पहली बार बलूचिस्तान का जिक्र किया है.”
उन्होंने कहा, “ऐसा कोई षड्यंत्र अगर सीपीईसी को नुकसान पहुंचाएगा, तो फिर चीन को मामले में दखल देना पड़ेगा.”
सीपीईसी बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह को चीन के सबसे बड़े प्रांत शिनजियांग से जोड़ेगा. भारत ने इस परियोजना का कड़ा विरोध किया है, क्योंकि उसका कहना है कि यह परियोजना उस गिलगित बाल्टिस्तान और कश्मीर के उस हिस्से से होकर गुजरेगी, जो दरअसल उसी के इलाके हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि अब मोदी द्वारा भाषण में इस इलाके के जिक्र से पाकिस्तान को संकेत दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों को समर्थन देने पर उसे उसी की भाषा में जवाब मिलेगा.
हू ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग भी चीन के लिए चिंता की वजह बन रहा है. पहले चीन को इससे फर्क नहीं पड़ता था कि भारत का किससे रक्षा सहयोग है, खासकर अमेरिका के संदर्भ में. लेकिन अब चीन में इसे लेकर चिंता महसूस की जा रही है.
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