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Europe Drought:यूरोप में 500 सालों का सबसे बुरा दौर,वनस्पतियों पर मंडरा रहा खतरा

Europe का 47 प्रतिशत हिस्सा 'चेतावनी' के दौर से गुजर रहा है.

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अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) के पूर्वी किनारे पर स्थित, पुनर्जागरण एवं औद्योगिक क्रांति का केंद्र यूरोप (Europe) महाद्वीप का एक बड़ा हिस्सा मौजूदा वक्त में भयानक सूखे के दौर से गुजर रहा है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कई बड़ी नदियों- राइन (Rhine), पो (Po), लॉयर (Loire), डेन्यूब (Danube) और झीलों का जल स्तर काफी कम हो चुका है. ग्लोबल ड्रॉट ऑब्जर्वेटरी (GDO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप का 47 प्रतिशत हिस्सा 'चेतावनी' की स्थिति में है, यानी कि यहां की मिट्टी सूख गई है. इसके अलावा 17 फीसदी इलाकों की वनस्पतियों पर संकट मंडरा रहा है.

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कहा जा रहा है कि सदियों पहले इस तरह का सूखा आने की बात पत्थरों पर लिखकर चेतावनी दी गई थी, वो पत्थर (हंगर स्टोन्स) अब नदियों के सूख जाने के बाद दिखाई दे रहे हैं.

पिछले 500 सालों का सबसे बुरा दौर

यूरोपीय संघ की एक एजेंसी ने मंगलवार, 23 अगस्त को कहा कि यूरोप पिछले 500 सालों में सबसे खतरनाक सूखे का सामना कर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा कहा जा रहा है कि सन 1540 के बाद से यूरोप में इस तरह की भीषण गर्मी कभी नहीं पड़ी थी. सूखे का यह दौर रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव के बाद आया है, जिसकी वजह से कई देशों के तापमान में ऐतिहासिक बढ़ोतरी देखने को मिली है.

इससे पहले साल 2018 के सूखे को 500 सालों का सबसे खतरनाक सूखा बताया गया था, लेकिन पिछले हफ्ते, यूरोपीय आयोग के संयुक्त अनुसंधान केंद्र के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि इस बार का सूखा 2018 से भी खतरनाक नजर आ रहा है. सीनीयर रिसर्चर एंड्रिया टोरेती (Andrea Toreti) ने कहा कि हमने पूरी घटना का विश्लेषण नहीं किया है क्योंकि यह अभी भी जारी है, लेकिन अनुभव के आधार पर मुझे लगता है कि यह 2018 से भी अधिक प्रभावशाली है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक सूखे की वजह से ग्रीष्मकालीन फसलों को भी नुकसान हुआ है. इस साल (2022) मक्का की पैदावार पिछले पांच वर्षों के औसत से 16% कम हुई है. इसके अलावा सोयाबीन और सूरजमुखी की पैदावार में क्रमशः 15% और 12% की गिरावट दर्ज की गई है.

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स्विट्जरलैंड और फ्रांस में लगभग 90%, जर्मनी में लगभग 83% और इटली में 75% भौगोलिक क्षेत्रों में कृषि सूखे का सामना करना पड़ा है.

जलमार्गों पर पड़ा असर

कृषि और पीने के पानी के अलावा यूरोप के जलमार्गों पर भी सूखे का खतरनाक प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है. कुछ हिस्सों में जल स्तर एक मीटर से भी कम होने की वजह से ज्यादातर बड़े जहाजों का उपयोग नहीं हो पा रहा है.

GOD की रिपोर्ट में कहा गया कि 10 अगस्त तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक यूरोप का लगभग 64% भूभाग सूखे की स्थिति का सामना कर रहा था. आने वाले महीनों में स्थिति में काफी होने की उम्मीद नहीं है, मौजूदा वक्त में बने हालात नवंबर तक बढ़ सकते हैं.

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इटली, स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, रोमानिया, हंगरी, उत्तरी सर्बिया, यूक्रेन, मोल्दोवा, आयरलैंड और यूके सहित देशों में स्थिति बिगड़ती जा रही है.

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बारिश न होने की वजह से भीषण गर्मी

यूरोप पिछले 6 महीने से अधिक वक्त से जलवायु संबंधी विसंगतियों का सामना कर रहा है. कई देशों में बारिश बहुत कम हुई है. 1935 के बाद से ब्रिटेन और 1959 के बाद से फ्रांस सबसे शुष्क रहा है. इसके अलावा नीदरलैंड, जहां पर पर्याप्त बारिश होती रही है अब सबसे शुष्क वर्षों में से एक है. जर्मनी में जुलाई के दौरान केवल सामान्य से भी आधी बारिश हुई है. कुल मिलाकर देखा जाए तो यूरोप में सर्दी के बाद से सामान्य से कम बारिश हुई है.

असामान्य रूप से बढ़ रहे तापमान की वजह से सतही जल और मिट्टी की नमी का वाष्पीकरण बढ़ गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप के कई इलाके अभी पिछले सूखे (2018) से उबर नहीं पाए थे कि मौजूदा वक्त के मौसम की वजह से फिर से हालात गंभीर बना दिए हैं.

यूरोप की नदियों में जल स्तर की कमी होने की वजह से जल परिवहन पर बुरा असर पड़ा है. जलमार्गों के बंद होने से बिजली उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिससे बिजली की कमी भी देखने को मिली है.

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चीन, अमेरिका में भी सूखे जैसे हालात

चीन के कई इलाके भी गंभीर सूखे की ओर बढ़ रहे हैं, जिसे 60 वर्षों में सबसे खतरनाक बताया जा रहा है. South China Morning Post की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की सबसे लंबी नदी, यांग्त्जी (Yangtze) के जल स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है, यह नदी जो लगभग एक तिहाई चीनी आबादी को कवर करती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की दो सबसे बड़ी ताजे पानी की झीलें पोयांग (Poyang) और डोंगटिंग (Dongting) 1951 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर को छू चुकी हैं.

यूरोप की तरह चीन में पानी की कमी देखने को मिल रही है. कुछ इलाकों में बिजली की कमी होने से कारखानों को बंद करने पड़े हैं, जिससे ग्लोबल सप्लाई चैन पर दबाव बढ़ गया है.

अमेरिकी सरकार के मुताबिक मौजूदा वक्त में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के 40% से अधिक इलाकों में सूखे जैसी स्थिति है, जिससे लगभग 130 मिलियन लोग प्रभावित हुए हैं.

(इनपुट्स- Indian Express, BBC, Reuters)

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