यूरोपीय संघ (EU) संसद में भारत के नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ 5 प्रस्तावों पर वोटिंग मार्च तक टल गई है. यूरोपीय संसद के इस कदम को मार्च में ब्रसेल्स में होने वाले द्विपक्षीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिरकत करने की योजना में कोई बाधा खड़ी न करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
वहीं प्रस्ताव लाने वाले एक ग्रुप ने कहा कि वोटिंग इसलिए टली है क्योंकि भारत में CAA पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है.
बता दें कि 29 जनवरी को इन प्रस्तावों पर यूरोपीय संसद में बहस हुई थी. बहस की शुरुआत में यूरोपीय परिषद की वाइस प्रेसिडेंट हेलेना डली मजबूती से EU और भारत के बीच संबंधों के पक्ष में बोलीं.
यूरोपीय संसद ने 29 जनवरी को फैसला किया कि CAA पर वोटिंग दो मार्च से शुरू हो रहे उसके नए सत्र में कराई जाएगी. सरकारी सूत्र इस वोटिंग के टलने को भारत की कूटनीतिक सफलता बता रहे हैं. उनका कहना है कि 29 जनवरी को भारत के दोस्त अपनी कोशिशों से पाकिस्तान के दोस्तों पर हावी रहे.
इन प्रस्तावों में से एक यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई/एनजीएल) ग्रुप के प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के आर्टिकल 15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी संयुक्त कार्य योजना और मानव अधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का जिक्र किया गया. इसमें भारतीय प्राधिकारियों से अपील की गई कि वे CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ ‘‘रचनात्मक वार्ता’’ करें और ‘‘भेदभावपूर्ण CAA’’ को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार करें.
प्रस्ताव में कहा गया, ‘‘CAA भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा. इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट दुनिया में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है.’’
CAA भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है.
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