"मेरा परिवार फिलहाल बिना इनकम के है. में पिछले तीन महीनों से संघर्ष कर रहा हूं. हालांकि मुझे अभी भी उम्मीद है, लेकिन फिर भी अब लगता है कि मुझे और मेरी पत्नी को भारत के बाहर रहने की संभावना तलाशनी होगी - भारत एक ऐसा देश है जिससे हम दोनों बहुत प्यार करते हैं." नई दिल्ली में काम कर रहे फ्रांसीसी पत्रकार सेबेस्टियन फार्सिस ने यह बात कही है. उन्होंने दावा किया है कि उन्हें गृह मंत्रालय द्वारा देश छोड़ने के लिए "मजबूर" किया गया था.
कौन हैं सेबेस्टियन फार्सिस ?
सेबेस्टियन फार्सिस पिछले 13 सालों से रेडियो फ्रांस इंटरनेशनल, रेडियो फ्रांस, लिबरेशन और स्विस और बेल्जियम सार्वजनिक रेडियो के लिए दक्षिण एशिया संवाददाता के तौर पर भारत में काम कर रहे थे.
2024 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मार्च में गृह मंत्रालय ने फार्सिस के वर्क परमिट को रेन्यू करने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उन्होंने 17 जून को भारत छोड़ दिया.
'द क्विंट' ने फार्सिस के वर्क परमिट को रद्द करने के संबंध में गृह मंत्रालय से संपर्क किया है, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. इस बीच, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने फार्सिस के उस दावे का विरोध किया जिसमें उन्होंने भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने की बात कही थी. मंत्रालय का कहना है कि फार्सिस का वर्क परमिट अभी भी विचाराधीन है.
द क्विंट ने फार्सिस के वर्क परमिट को रद्द करने के संबंध में गृह मंत्रालय से संपर्क किया है, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. जब भी गृह मंत्रालय का जवाब आएगा इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा. इस बीच, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा कि फार्सिस का वर्क परमिट अभी भी विचाराधीन है.
फार्सिस के वर्क पर्मिट पर विदेश मंत्रालय का बयान
शुक्रवार (21 जून) को मीडिया को संबोधित करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने बताया कि "सेबेस्टियन फार्सिस एक OCI (भारत के विदेशी नागरिक) कार्ड धारक हैं और हमारे नियमों के तहत उन्हें पत्रकारिता संबंधी कार्य करने के लिए अप्रूवल की आवश्यकता होती है. उन्होंने मई 2024 में वर्क पर्मिट को रेन्यू कराने के लिए फिर से आवेदन किया है, और जहां तक मेरी जानकारी है, उनका मामला विचाराधीन है."
आगे उन्होंने कहा, "देश छोड़ने का फैसला उनका खुद का है. अगर उन्होंने यह फैसला ले लिया है तो यह ठीक है."
'कोई कारण नहीं दिया गया ' - सेबेस्टियन फार्सिस
'द क्विंट' से बात करते हुए, फार्सिस ने बताया कि वह अधिकारियों की "मनमानी" से चकित थे, जिन्होंने कथित तौर पर बिना कोई कारण बताए अचानक उनके वर्क पर्मिट को रेन्यू करने से इंकार कर दिया. उन्होंने भारत में अपने लंबे पत्रकारिता के कार्यकाल का भी जिक्र किया.
फार्सिस बताते हैं, "मैंने तुरंत उन्हें जवाब भेजकर पूछा था कि उन्होंने मेरा आवेदन क्यों अस्वीकार किया है, लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला. फिर मैंने अपने वकील के माध्यम से समीक्षा के लिए आवेदन किया, स्पष्टीकरण मांगा और उनसे मेरे मामले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया. लेकिन मुझे इसका भी कोई जवाब नहीं मिला.''
फार्सिस, 2011 में भारत आए थे और ओसीआई का दर्जा रखते हैं, उनका कहना है कि उन्होंने भारत में पत्रकार के रूप में काम करने के लिए सभी आवश्यक वीजा और मान्यता प्राप्त की है. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने बिना परमिट के प्रतिबंधित या संरक्षित क्षेत्रों में काम नहीं किया है और भारत में विदेशी पत्रकारों पर लगाए गए नियमों का हमेशा सम्मान किया है.
इसी के साथ फार्सिस ने अब नए परमिट के लिए आवेदन किया है और अधिकारियों से प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं.
बता दें, फ्रांसीसी पत्रकार ने इस मामले को लेकर अटकलें लगाने से इनकार कर दिया है. गृह मंत्रालय के फैसले के पीछे क्या कारण हो सकते हैं इसपर उन्होंने कहा कि वह अधिकारीयों पर कोई भी "आरोप" नहीं लगाना चाहते हैं. हालांकि उन्होंने बताया कि इससे पहले उनके और अधिकारीयों के बीच कुछ "अप्रिय" घटनाएं हुई हैं.
सेबेस्टियन फार्सिस ने द क्विंट से कहा, "2019 में, नई दिल्ली में फ्रांसीसी दूतावास ने मेरे बॉस को एक ईमेल भेजा, जिसमें कहा गया कि उन्हें पता चला है कि मैं सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों का सम्मान न करने की तर्ज पर एक भारत विरोधी कहानी तैयार कर रहा था. उन्होंने मुझे ऐसा करने से रोका और मुझ पर देश को बदनाम करने की कोशिश करने का आरोप लगाया, हालांकि, मैं ऐसी कोई स्टोरी नहीं कर रहा था और इस बात से हैरान था कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में स्वतंत्र मीडिया को ऐसा ईमेल भेजा जा सकता है.''
फार्सिस ने कहा कि गृह मंत्रालय के फैसले ने भारत में उनके जीवन को "उजाड़" दिया है, जिसे वे अपनी "दूसरी मातृभूमि" कहते हैं, और उनके परिवार पर गंभीर प्रभाव पड़ा है. फार्सिस अब अपनी पत्नी, जो एक भारतीय हैं, के साथ फ्रांस वापस आ गया है. उनका कहना है कि उनकी रोजगार की स्थिति फिलहाल "अस्पष्ट" है और उनकी पत्नी को भी फ्रांस में नौकरी नहीं मिल पाई है.
उन्होंने द क्विंट को बताया, "ऐसे ही उजाड़ना होता है - यह मेरा उजड़ना है लेकिन यह उसका भी है. मेरी पत्नी मुश्किल से फ्रेंच बोलती है; अगर हमें भारत से दूर जाना पड़ा तो उसे भाषा में क्रैश कोर्स करना होगा. और उसे शून्य से शुरुआत करनी होगी.
उनका यह भी कहना है कि ओसीआई कार्ड धारक होने के नाते वह कम से कम यह स्पष्टीकरण पाने के हकदार हैं कि उन्हें देश छोड़ने के लिए क्यों कहा गया.
उन्होंने कहा, "मेरे पास ओसीआई कार्ड है क्योंकि सरकार मानती है कि मेरा अपनी पत्नी और भारत के साथ रिश्ता है. इसलिए, काम करने के अधिकार को हटाने को कम से कम उचित ठहराया जाना चाहिए. अगर कोई औचित्य नहीं है, तो हमें इस पर सवाल उठाने का अधिकार है.
उन्होंने आगे कहा, "मैंने बात करने का फैसला किया है क्योंकि दिन के अंत में अगर हम चुपचाप चले जाते हैं, तो वे जीत जाते हैं."
4 महीने में भारत छोड़ने वाले फार्सिस दूसरे फ्रांसीसी पत्रकार
सेबेस्टियन फार्सिस दूसरे फ्रांसीसी पत्रकार हैं जिन्हें पिछले चार महीने में भारत छोड़ना पड़ा है. वैनेसा डौगनैक, जो पिछले 20 सालों से 'ला क्रोइक्स' सहित चार प्रकाशनों के लिए भारत को कवर कर रही थीं, इस साल फरवरी में उन्होंने भारत छोड़ दिया. गृह मंत्रालय से ओसीआई स्टेटस रद्द करने की धमकी वाले नोटिस के बाद उन्होंने यह कदम उठाया.
डौगनैक ने बताया कि गृह मंत्रालय के नोटिस में उनकी रिपोर्ट पर "दुर्भावनापूर्ण" और "भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों को नुकसान पहुंचाने" का आरोप लगाया गया था. सितंबर 2022 में उन्हें भारत में पत्रकारिता से सम्बंधित सभी कार्य बंद करने के लिए कहा गया था.
लगभग 25 साल पहले एक छात्र के रूप में भारत आईं डौगनैक देश में काम करने वाले सबसे वरिष्ठ विदेशी संवाददाताओं में से एक थीं. बता दें कि डौगनैक ने भारत में पत्रकार के रूप में काम करने से रोकने के सरकार के फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है. यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है.
हालांकि गृह मंत्रालय ने अभी तक फार्सिस को ऐसा कोई नोटिस नहीं भेजा है. लेकिन मंत्रालय का कथित निर्णय फार्सिस के कुछ लेखों कि तरफ इशारा करता है जिसमे सत्तारूढ़ सरकार कि आलोचना की गई थी.
इस साल 23 जनवरी को 'रेडियो फ्रांस इंटरनेशनेल' के लिए एक लेख में फार्सिस ने लिखा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अयोध्या के राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने का निर्णय भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के खिलाफ है. उसी लेख में, उन्होंने कहा कि आर्कियोलॉजिस्ट कभी भी यह साबित नहीं कर पाए कि बाबरी मस्जिद भगवान राम के जन्मस्थान पर बनाई गई थी. लेकिन इस मुद्दे पर हिंदू-मुस्लिम विभाजन का "फायदा" 1980 और 90 के दशक में बीजेपी ने उठाया था.
25 जनवरी को लिखे एक अन्य लेख में फार्सिस ने दावा किया था कि जहां भारत सालाना 7 प्रतिशत से अधिक कि दर से बढ़ रहा है, लेकिन विकास का "खराब पुनर्वितरण" हो रहा है और श्रमिक वर्ग के लिए "असमानताएं बढ़ रही हैं."
डौगनैक और फार्सिस के अलावा, अवनी डायस - ऑस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टिंग फर्म एबीसी न्यूज के दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख ने अप्रैल 2024 में घोषणा की थी कि सरकार द्वारा वीजा विस्तार से इनकार करने के बाद उन्हें भारत से बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया था. उनसे कहा गया था कि उनकी खबरों ने "सीमा लांघ दी है."
शुक्रवार, 21 जून को मीडिया को संबोधित करते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने एबीसी न्यूज कि हालिया डॉक्यूमेंट्री 'जासूस, रहस्य और धमकियां: कैसे मोदी शासन विदेशों में लोगों को निशाना बनाता है' इसकी निंदा की. जिसमें कथित "भारतीय जासूसों के जाल" की जांच शामिल है.
जयसवाल ने डॉक्यूमेंट्री का नाम लिए बिना कहा, "इसमें सरासर झूठ है. मैं आपसे आग्रह करूंगा कि कृपया डॉक्यूमेंट्री पर एक नजर डालें. यह पक्षपातपूर्ण है और गैर-पेशेवर रिपोर्टिंग को दर्शाता है."
इस साल जनवरी में, डायस के नेतृत्व में एबीसी न्यूज कि एक टीम ने पंजाब में मारे गए सिख चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर के पैतृक घर का दौरा किया था. कथित तौर पर एबीसी न्यूज 'सिख, हत्या और' नामक एक अन्य डॉक्यूमेंट्री फिल्माने के लिए राज्य में खालिस्तान समर्थक समूह के प्रतिनिधियों से मुलाकात करने पहुंचे थे. बता दें, इस डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार द्वारा यूट्यूब पर ब्लॉक कर दिया गया है.
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