क्या है पूरा मामला और फैसला?
- स्पेक्ट्रम और सैटेलाइट्स को लेकर भारत इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्राइब्यूनल में एक बड़ा केस हार गया.
- देश को इसका खामियाजा एक अरब डॉलर (करीब 67 अरब रुपये) पेमेंट कर भुगतना पड़ सकता है.
- नीदरलैंड के हेग स्थित इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल के ताजा फैसले से दुनिया में यह संदेश जा सकता है कि भारत विदेशी निवेशों के प्रति बहुत भरोसेमंद देश नहीं है.
- ऐसे में विदेशी निवेशकों को लुभाने की सरकार की कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है.
- देवास मल्टीमीडिया ने भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया था.
- देवास बेंगलुरु की टेलीकॉम कंपनी है.
- साल 2005 में देवास को बेशकीमती एस-बैंड स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल की अनुमति दी गई थी.
- इसके लिए देवास ने दो भारतीय सैटेलाइट्स में स्पेस लीज पर लिया था.
- इसरो की कंपनी एंट्रिक्स और टेलीकॉम कंपनी देवास के बीच 2005 में करार हुआ था.
- डील में दो सैटेलाइट्स को लॉन्च करना और ऑपरेट करना शामिल था.
- देवास के लिए कथित रूप से काम कर रहे इसरो अधिकारियों ने देवास को लाभ पहुंचाया. डील में देवास को मिले फायदों में एस-बैंड स्पेक्ट्रम शामिल.
- मनमोहन सरकार ने 2011 में देवास के साथ हुए कॉन्ट्रेक्ट को तोड़ दिया.
इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन कोर्ट ने इंडियन स्पेस एजेंसी को करारा झटका देते हुए देवास-एंट्रिक्स केस में भारत के खिलाफ फैसला सुनाया है. इसकी वजह से भारत को 67 अरब रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता है.
साल 2005 में हुई देवास-एंट्रीक्स डील के तहत इसरो की कंपनी एंट्रीक्स को टेलीकॉम कंपनी देवास के लिए दो सैटेलाइट लॉन्च करने और उन्हें ऑपरेट करना था.
इसी डील में देवास को कहा गया कि वह दो भारतीय सैटेलाइट्स को लीज पर लेकर बेशकीमती एस-बैंड स्पेक्ट्रम को यूज कर सकती है.
लेकिन 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने इस डील को तोड़ते हुए कहा कि स्पेक्ट्रम से जुड़ी शर्त डील में शामिल नहीं थी. इसके बाद देवास ने हेग स्थित कोर्ट में अपनी याचिका दाखिल की.
इस डील के दौरान इसरो चीफ रहे माधवन नायर किसी भी अन्य सरकारी संस्था का नेतृत्व करने के लिए ब्लैक लिस्ट कर दिए गए. इसके साथ ही कयास लगाए गए कि इसरो में कुछ अधिकारियों ने देवास के फायदे के लिए डील में परिवर्तन किए.
भारत के लिए क्यों खराब है ये फैसला?
इंटरनेशनल कोर्ट के इस फैसले से भारत को आर्थिक नुकसान होने के साथ-साथ साख से जुड़ा नुकसान होने की आशंका भी है.
इंटरनेशनल बिजनेस वर्ल्ड में इस फैसले से भारत की छवि को धक्का पहुंचा है.
क्या है भारत सरकार की प्रतिक्रिया?
भारत सरकार ने इस फैसले के खिलाफ प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुआवजे को इन्वेस्टमेंट कॉस्ट का 40 परसेंट होना चाहिए. अब तक सटीक मात्रा को तय नहीं किया गया है.
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