कई भारतीय मीडिया संस्थानों ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट किया कि ग्वालन वैली में चीनी आर्मी पेट्रोलिंग प्वॉइंट 14, 15 से और लद्दाख के हॉट स्प्रिंग एरिया से धीरे-धीरे पीछे जा रही है. चीन ने भी अपने प्रवक्ता के जरिए इसी तरह का संदेश देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच बातचीत ‘सकारात्मक सहमति’ तक पहुंच गई है.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हुआ चुनयिंग ने कहा-
हाल फिलहाल में भारत और चीन के बीच सीमा पर कूटनीटिक और मिलिट्री स्तर पर प्रभावी बातचीत हुई थी और ये बातचीत सकारात्मक सहमति पर पहुंची है.चीनी विदेश मंत्री प्रवक्ता
सीमा पर जो स्थिति है उससे सवाल खड़ा होता है कि चीनी सेना ने भारत के कितने हिस्से पर कब्जा कर लिया था? कई लोगों का मानना है कि चीनी सेना ने भारत के 35 वर्ग किमी. हिस्से पर कब्जा कर लिया था, वहीं कई लोगों का कहना है कि अभी निष्कर्ष पर पहुंचना सही नहीं होगा.
चीन ने भारत के 40 वर्ग किमी. हिस्से पर कब्जा किया: लेफ्टिनेंट जनरल पनाग
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग भारत-चीन सीमा पर हो रहे हालिया विवाद को लेकर बताते हैं कि- “1962 के बाद लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LOAC) पेनगॉन्ग लेक के फिंगर 8 के पश्चिम से जाती है. इंडो तिब्बतन बॉर्डर पुलिस फिंगर 8 में पेट्रोलिंग किया करती थी. हमारे इस दावे को 1962 से चुनौती नहीं दी गई है. हांलाकि इसको लेकर PLA ने कई बार अपना मत बदला है.”
उनके मुताबिक सैटेलाइट इमेज बताती हैं कि PLA सेना ने फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक के हिस्से पर कब्जा कर लिया था.
भारतीय सेना में उत्तरी कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (GOC-in-C), रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग कहते हैं “फिंगर 4 से फिंगर 8 में करीब 8 किमी. हिस्सा आता है. चीन ने भारत की फिंगर 4, फिंगर 3 और झील के 4-5 किमी उत्तरी हिस्से के बीच की ITBP पोस्ट को नजरअंदाज करते हुए ऊंचाई पर कब्जा कर लिया. इसका मतलब है कि चीन ने भारत के करीब 35-40 वर्ग किमी हिस्से पर कब्जा कर लिया.”
‘कयासबाजी को रोकने के लिए सरकार को स्थिति साफ करनी चाहिए’
वहीं रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल पनाग बताते हैं कि चीनी सेना ने भारतीय हिस्से पर कब्जा कर लिया. इसके अलावा कई सारे रिटायर्ड आर्मी अफसर हैं जो मानते हैं कि सरकार को घुसपैठ करने वाली चीनी फौज की संख्या और कब्जा किए गए इलाके के बारे में जानकारी देनी चाहिए. इससे कयासबाजी थमेगी.
इस मामले में मेरा मानना है कि हमारे जैसे रिटायर्ड अफसरों को सही-सही स्थिति के बारे में नहीं पता है. ये जानकारी सिर्फ और सिर्फ सरकार या भारतीय सेना दे सकती है. दुखद है कि सरकार ने ये जानकारी नहीं दी है. जो भी स्थिति है सरकार को जानकारी देना चाहिए. जानकारी का अभाव कयासबाजी को बढ़ावा देता है ये कयासबाजी कई बार भ्रामक होती है.रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ
तुलना करके देखें तो बड़ी घुसपैठ है ये: पूर्व आर्मी कमांडर
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा उत्तरी कमांड के GOC-in-C रह चुके हैं और इनका सर्जिकल स्ट्राइक में भी अहम रोल रहा है. वो बताते हैं कि “इसके पहले हुए भारत-चीन तनाव के मुकाबले अब जो घुसपैठ हुई है वो बड़ी घुसपैठ है क्यों कि इस बार चीन ने सेना और लड़ाई के साजो-सामान तैनात किए हुए हैं. अगर डोकलाम का केस देखें तो वो हमारे हिस्से में नहीं था, वो भूटान में था. चुमार में उन्होंने सामने आने की कोशिश की लेकिन वो नहीं आ सके. क्यों कि हमने उन्हें बॉर्डर पर रोक दिया. 2013 में देपसान्ग तनाव में वो हमारे इलाके में घुस आए थे लेकिन तब सिर्फ 30-40 सैनिकों की प्लाटून थी.”
“लेकिन इस बार चीन की तरफ से बड़ी संख्या में सैनिक, टैंक, APCs और आर्टिलरी गन तैनात की गई हैं. इसलिए ये बड़ा संकट है. मैं ये कयास नहीं लगाता चाहूंगा कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं.”डीएस हुड्डा, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल
डीएस हुड्डा बताते हैं कि- “हर कोई कयास लगा रहा है कि इस घुसपैठ के पीछे क्या कारण हैं. लेकिन अभी कुछ साफ नहीं है. अगर में इनकी तुलना इसके पहले हुए तनावों से करूं तो चुमार (2014) और डोकलाम (2017) में दोनों पक्षों को पता था कि उन्हें क्या चाहिए है. चीन सड़क बनाना चाहता था, हमारा कहना था कि वो नहीं बना सकते. इसमें मतभेद साफ थे. लेकिन इस बार हमें नहीं पता है कि चीन चाहता क्या है?”
चीन ने भारत के कितने हिस्से पर कब्जा किया है? रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने इस सवाल पर कमेंट करने से मना किया.
'इसकी करगिल से तुलना नहीं हो सकती’
जब से चीन और भारत की सीमा पर तनाव की स्थिति बनी है, तभी से इसकी तुलना 1999 के करगिल युद्ध से की जा रही है. हांलाकि रिटायर्ड जनरल वीपी मलिक जो कि करगिल युद्ध के वक्त सेना प्रमुख थे वो बताते हैं कि ये तुलना सही नहीं है.
रिटायर्ड जनरल वीपी मलिक के मुताबिक “हां ये सही है कि चीनी सेना पेनगॉन्ग के फिंगर 4 और फिंगर 8 के इलाके में आ गई थी. और ये चिंता का विषय है. लेकिन कारगिल युद्ध की तुलना इस क्षेत्र से नहीं की जानी चाहिए. यहां पर हमारे पास ऐसी कोई संवेदनशील सड़क नहीं है, जैसी कारगिल में थी. NH1 जो कि श्रीनगर से कारगिल जाता था, ये हमारे लिए अहम रास्ता था.”
मलिक बताते हैं कि लद्दाख में भारत सड़कें बना रहा है. लेकिन वहां ज्यादा लोग नहीं रहते हैं. इन सड़कों का इस्तेमाल सेना ही करती है. “सबसे अहम बात ये है कि लद्दाख के मुकाबले करगिल में शत्रु की तादाद भी बहुत ज्यादा थी”
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