ADVERTISEMENTREMOVE AD

लीबिया के तानाशाह गद्दाफी की वो गलती, जो बनी ताबूत में आखिरी कील

सत्ता में ‘शांतिपूर्ण’ तख्तापलट से आए गद्दाफी का अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

9 साल पहले 2011 में अगस्त के इन्हीं दिनों में लीबिया की सरकार ने अपने ही लोगों के विद्रोह के सामने घुटने टेक दिए थे. लीबियन अरब गणराज्य पर चार दशक से भी ज्यादा समय से राज कर रहा उसका चेयरमैन छुप गया था. वो जिसने लीबिया को अपनी मर्जी से चलाया और जिसकी पहचान उसके अजब-गजब कपड़ों और मुंहफट भाषणों से थी. वो शख्स जिसने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर को एक बेदोविन टेंट में मिलने बुलाया. वो जो अपने आसपास महिला बॉडीगार्ड रखता था. और फिर उसी साल अक्टूबर में उसे एक सीवर से निकालकर मार दिया गया था. ये कहानी है कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की. वो गद्दाफी जो सत्ता में एक 'शांतिपूर्ण' तख्तापलट से आए थे, लेकिन उनका अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लीबिया के सीरत शहर के बाहरी ग्रामीण इलाके में जन्मे गद्दाफी का परिवार बेदोविन था. बेदोविन उन घुमंतू अरब लोगों को कहा जाता है, जो उत्तरी अफ्रीका, लेवांत, ऊपरी मेसोपोटामिया जैसे इलाकों के रेगिस्तान में रहते आए हैं. बड़े होते हुए गद्दाफी ने अरब दुनिया में बदलावों को करीब से देखा था. उनके राजनीतिक हीरो मिस्र के गमाल अब्देल नासेर थे. नासेर ने अरब राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और पश्चिम के उपनिवेशवाद के खात्मे की वकालत की थी. नासेर के विचारों से प्रभावित गद्दाफी सेना में शामिल हुए और सिग्नल कॉर्प्स में अफसर बन गए थे.

तख्तापलट से पहले की स्थिति

1950 के दशक में लीबिया में कई बड़े और महत्वपूर्ण तेल भंडार के बारे में पता चला था. हालांकि, तेल निकालने का काम विदेशी पेट्रोलियम कंपनियां करती थीं. यही कंपनियां कीमत तय करती थीं और राजस्व के लगभग आधे हिस्से की भी मालिक होती थीं. इस समय लीबिया में पश्चिम देशों के करीबी माने जाने वाले किंग इदरिस का राज था.

सत्ता में ‘शांतिपूर्ण’ तख्तापलट से आए गद्दाफी का अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ
किंग इदरिस
(फाइल फोटो: Wikimedia Commons)
कई तेल भंडार की खोज से लीबिया की कमाई बढ़ गई और वो सबसे गरीब देशों में से एक से अमीर देशों की लिस्ट में शुमार हो गया. हालांकि, इस कमाई के आने से किंग इदरिस की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हो गए थे. इदरिस ने तेल की कमाई का फायदा उठाने के लिए लीबिया की फेडरल व्यवस्था को केंद्रीय बना दिया था. 1960 के दशक के बाद के सालों तक इदरिस की सरकार के खिलाफ विरोध काफी बढ़ चुका था.  

अरब राष्ट्रवाद चरम पर था और जब 1967 में मिस्र छह दिन के युद्ध में इजरायल से हार गया तो लीबिया में भी इसका असर देखने को मिला. पश्चिमी देशों के करीबी होने की वजह से इदरिस को इजरायल-समर्थक माना जाता था. राजधानी त्रिपोली और बेनगाजी जैसे शहरों में विरोध-प्रदर्शन हुए.

सत्ता में ‘शांतिपूर्ण’ तख्तापलट से आए गद्दाफी का अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ
अपनी महिला सुरक्षा गार्ड्स के साथ गद्दाफी
(फोटो: wikimedia commons)

1964 तक गद्दाफी ने मिस्र की तर्ज पर 'फ्री ऑफिसर मूवमेंट' की स्थापना कर दी थी. ये एक ऐसी संस्था थी जो सरकार की नजरों से बचकर मिला करती थी और गद्दाफी इसके लीडर थे. 1969 के शुरुआती महीनों में लीबिया में तख्तापलट की अफवाहें चल रही थीं. अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA को भी इसका शक था, लेकिन उनकी नजरें मुअम्मर गद्दाफी पर नहीं थी.

शांतिपूर्ण तख्तापलट - गद्दाफी युग का आगाज

किंग इदरिस अरब देशों से दूर और पश्चिम के करीब होते गए थे. उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन को देश में मिलिट्री बेस कायम रखने की इजाजत दे रखी थी. इदरिस अक्सर देश से बाहर रहते थे. 1 सितंबर 1969 भी ऐसा ही एक दिन था, जब इदरिस ग्रीस में अपना इलाज करा रहे थे. वहीं, त्रिपोली और बेनगाजी में मिलिट्री की गाड़ियां सरकारी दफ्तरों, संपर्क केंद्रों, पुलिस स्टेशनों जैसी महत्वपूर्ण जगहों पर पहुंच गईं. तख्तापलट की अफवाहें इतनी ज्यादा थीं कि जब असल में वो हुआ, तो किसी ने ध्यान तक नहीं दिया कि ये किया किसने है.

जब पता चला तो इसके लीडर के रूप में आर्मी सिग्नल कॉर्प्स का एक नौजवान कप्तान सामने आया. वो मुअम्मर गद्दाफी थे. उनके ‘फ्री ऑफिसर मूवमेंट’ के 12 सदस्य वाले एक डायरेक्टोरेट ने इस तख्तापलट का नेतृत्व किया था. तख्तापलट के दौरान गद्दाफी खुद राजधानी त्रिपोली नहीं गए थे, बल्कि उनके एक साथी ने शहर को संभाला था और क्राउन प्रिंस सैय्यद हसन-अर-रीदा को हिरासत में ले लिया था.
सत्ता में ‘शांतिपूर्ण’ तख्तापलट से आए गद्दाफी का अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ
मुअम्मर गद्दाफी
(फाइल फोटो: Wikimedia Commons)

तख्तापलट का नेतृत्व करने वाले डायरेक्टोरेट ने खुद को रेवोल्यूशनरी कमांड काउंसिल (RCC) का नाम दिया. गद्दाफी ने राजशाही को खत्म कर लीबियन अरब गणराज्य का ऐलान कर दिया. ग्रीस में मौजूद किंग इदरिस को जब तख्तापलट का पता चला तो उन्होंने गमाल अब्देल नासेर के जरिए अपने लीबिया वापस न लौटने की इच्छा जाहिर कर दी. क्राउन प्रिंस हसन ने भी सार्वजानिक रूप से अपने सभी अधिकारों को छोड़ने का ऐलान कर दिया था.

सत्ता में ‘शांतिपूर्ण’ तख्तापलट से आए गद्दाफी का अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ
गमाल अब्देल नासेर
(फाइल फोटो: Wikimedia Commons)
जब 1 सितंबर को तख्तापलट शुरू हुआ था, तो किसी को पता ही नहीं था कि इसकी बागडोर किसके हाथ में है. भ्रम की स्थिति इस हद तक थी कि इदरिस के निजी बॉडीगार्ड और त्रिपोली के बाहर तैनात अमेरिकी सेना ने हस्तक्षेप ही नहीं किया. सेना को लगा था कि आदेश बड़े अफसरों से आया है तो उसने खुद ही सरकारी दफ्तरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था. लीबिया में महज कुछ घंटों में शासन बदल गया था, लेकिन एक भी व्यक्ति की मौत की खबर नहीं आई थी.

ऐसा लग रहा था कि मुअम्मार गद्दाफी और उनके साथियों ने लीबिया ही नहीं उसके साथी पश्चिमी देशों को भी बेवकूफ बना दिया था. जिस तख्तापलट की आशंका तेज थी, वो हो गया था, लेकिन उसकी उम्मीद सेना के ऊपरी स्तर के अफसरों से की जा रही थी. असल में गद्दाफी ने देश का नियंत्रण लेने में प्रभावी रूप से सेना का इस्तेमाल कर लिया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

गद्दाफी का लीबिया

गद्दाफी ने लीबिया पर 42 साल शासन किया. लीबिया में चाहें वो समझे जाते हों, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए वो एक मजाक ही थे. वो खुद को एक स्टेट्समैन के तौर पर देखते थे पर दुनिया उन्हें पागल समझती थी. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने गद्दाफी को 'पागल कुत्ता' कहा था. गद्दाफी के शासन में लीबिया को 'जम्हारिया' कहा जाता था, जो कि 'जम्हूरिया' से बनाया हुआ एक शब्द है. इसका मतलब होता है 'लोगों का शासन'. लेकिन असल में लीबिया सैन्य तानाशाही ही था.

सत्ता में ‘शांतिपूर्ण’ तख्तापलट से आए गद्दाफी का अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ
गद्दाफी के विरोधियों को जेल में डाल दिया जाता था या कत्ल कर दिया जाता था. गद्दाफी की खुफिया पुलिस हर जगह हुआ करती थी. हालांकि, गद्दाफी जिस वजह से इतना लंबा शासन चला पाए वो उनके तेल की कमाई सिर्फ खुद तक सीमित न रखने की होशियारी थी. उनके राज में लोगों के पास घर रहे, अच्छी स्वास्थ्य सेवा, साफ सड़कें और खरीदने की क्षमता भी ठीक थी.
सत्ता में ‘शांतिपूर्ण’ तख्तापलट से आए गद्दाफी का अंत ठीक उसके उलट ढंग से हुआ

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि गद्दाफी ने इस कमाई को ठीक तरह से बांटा हो. लीबिया और दुबई के तेल उत्पादन (बैरल प्रति व्यक्ति प्रति दिन) में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं था, लेकिन दोनों देशों के लोगों में लाइफस्टाइल में ये अंतर बड़ा दिखता था. साफ था कि तेल की कमाई का बड़ा हिस्सा गद्दाफी के ऐशो-आराम में जाता था. लीबिया के लोग उन्हें ऐसे इंसान के तौर पर देखते थे, जिससे दूर रहना ही ठीक है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

42 साल के शासन का अंत

साल 2011 आते-आते मिडिल ईस्ट और अरब दुनिया में काफी कुछ बदल चुका था. लोग सालों से राज कर रहे तानाशाहों और राष्ट्रपतियों से तंग आ चुके थे. रोजगार कम था, जीवन स्तर नीचे जा रहा था और विरोध की आवाजों को दबाने की पुरजोर कोशिश होती थी. सोशल मीडिया के इस युग में लोगों और खासकर नौजवानों के बीच तानाशाहों के खिलाफ गुस्सा पनप रहा था.

फिर 2010 के आखिर में ट्यूनीशिया से विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हुआ और ये आग की तरह मिस्र, सीरिया, यमन, बहरीन, इराक, लेबनान जैसे देशों में फैल गया. लीबिया भी इससे अछूता नहीं रहा. फरवरी 2011 से गद्दाफी के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हो गए थे. जल्द ही ये प्रदर्शन लोकप्रिय विद्रोह में बदल गए क्योंकि प्रदर्शनों को खत्म करने के लिए गद्दाफी की वफादार सेना ने लोगों पर हवा से बम गिराने शुरू कर दिए थे. इस बमबारी से गद्दाफी के अंत की शुरुआत हो गई थी. 

फरवरी के दूसरे हफ्ते तक करीब 300 नागरिकों की मौत की खबर आ रही थी. मृत लोगों की संख्या बढ़ने के बाद संयुक्त राष्ट्र ने लीबिया को 'उड़ान-प्रतिबंधित' क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव पास कर दिया. इसी प्रस्ताव में नागरिकों को किसी भी तरह बचाने की बात कही गई थी. 31 मार्च को NATO सेनाओं ने लीबिया में नागरिकों को 'बचाने' के लिए सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए थे.

NATO और पश्चिमी देशों के आने के बाद विद्रोही सेनाओं को गद्दाफी के खिलाफ लड़ने में मदद मिली. विरोध-प्रदर्शनों से शुरू हुआ विद्रोह जुलाई-अगस्त आते-आते गृह युद्ध में बदल चुका था.

20 अगस्त तक विद्रोही सेनाएं राजधानी त्रिपोली के करीब पहुंच चुकी थीं. 21 अगस्त को ऐलान किया गया कि गद्दाफी के बेटे सैफ-अल इस्लाम को हिरासत में ले लिया गया है, हालांकि बाद में सैफ ने खुद सामने आकर कहा था कि लीबिया के लोग उनके और मुअम्मार गद्दाफी के साथ हैं. 22 अगस्त तक त्रिपोली में गद्दाफी के कंपाउंड तक विद्रोहियों के रॉकेट और मोर्टार मार कर रहे थे. ये भी रिपोर्ट्स सामने आईं थी कि मुअम्मार गद्दाफी त्रिपोली से भाग गए थे. अगस्त के अंत तक त्रिपोली का ज्यादातर इलाका विद्रोहियों के कब्जे में चला गया था.

राजधानी से भागे गद्दाफी का लगभग दो महीने तक कुछ अता-पता नहीं था. अक्टूबर तक सीरत शहर में विद्रोही सेनाएं कब्जा करने की कोशिश कर रही थीं. यहीं गद्दाफी का जन्म हुआ था. 20 अक्टूबर को सीरत के पश्चिम से गाड़ियों का एक बड़ा काफिला निकला. फ्रांस के सैन्य विमान ने इस काफिले पर हमला कर दिया. इस हमले में दो लोगों की मौके पर मौत हो गई. ये गद्दाफी का बेटा मुतास्सिम और सैन्य प्रमुख अबु बकर यूनुस जब्र थे. लेकिन इस हमले में घायल हुए कुछ लोग करीब के सीवर पाइप में छुप गए. इन्हीं में से एक थे कर्नल गद्दाफी.

कुछ देर बाद विद्रोही सेनाओं ने इस इलाके की घेराबंदी की और गद्दाफी को उस सीवर पाइप से निकाल लिया. विद्रोह की शुरुआत में अपने विरोधियों को चूहा बताने वाले गद्दाफी को 'चूहे' की तरह ही निकाला गया था. विद्रोहियों ने गद्दाफी को घसीटा और फिर बाद में गोली मार दी. एक शख्स इस पूरे वाकये को कैमरे में कैद कर रहा था और बाद में ये वीडियो पूरी दुनिया देखने वाली थी कि कैसे 42 साल लीबिया पर शासन करने वाले गद्दाफी का लोगों ने अंत कर दिया.

गद्दाफी की मौत को 9 साल बीत चुके हैं, लेकिन लीबिया में अभी तक अशांति और युद्ध का दौर जारी है. अभी लीबिया में दो सरकारें मौजूद हैं. एक संयुक्त राष्ट्र समर्थित फाएज अल-सर्राज की त्रिपोली स्थित सरकार. दूसरा टोबरुक में जनरल ख़लीफ़ा हफ़्तार का शासन. इसके अलावा लीबिया में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से ISIS जैसे आतंकी संगठन भी सक्रिय हैं. सर्राज को जहां पश्चिमी देशों, कतर, तुर्की का समर्थन मिला हुआ है. वहीं, हफ्तार के पक्ष में साऊदी, रूस, UAE जैसे देश हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×