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पेरिस डायरी : क्या हुआ आतंकी हमले के अगले दिन

शहर की फिजा में उदासी थी पर लोगों को अब भी आजादी, बराबरी और भाईचारे में यकीन था.

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पेरिस पर आतंकी हमले की अगली सुबह जब शहर जागा तो हर तरफ दहशत, दर्द और उदासी का माहौल था. शुक्रवार 13 नवंबर को हुए इस हमले में कम से कम 129 निर्दोषों की जानें गईं और इससे कहीं ज्यादा जख्मी हुए.

शहर में 6 अलग-अलग जगहों पर हुई वारदातों में, कैफेज़ पर ग्रेनेड फेंके गए थे और सैकड़ों बेगुनाह सिविलियंस को गोलियों से भून दिया गया था. इस तबाही ने मुझे तुरंत मुंबई पर हुए 26/11 हमले की याद दिला दी थी.

पूरे दिन शहर उदासी के घने कोहरे में डूबा रहा. ज्यादातर मेट्रो लाइंस बंद रखी गई थीं. डरे हुए लोग घरों से निकलना भूल गए थे. फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने देश भर में आपालकाल घोषित कर दिया था.

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दिन बीतने के साथ लोग अपने घरों की सुरक्षा छोड़कर बाहर निकले और वारदात वाली जगहों पर जाकर मारे गए परिजनों, दोस्तों और साथी नागरिकों को श्रद्धांजलि दी. तब तक मेट्रो लाइंस शुरू हो चुकी थी और शहर का पब्लिक ट्रांसपोर्ट वापस अपने रोज के हाल पर लौट चुका था.

जब तक मैं वहां पहुंचा, रिपब्लिक स्क्वॉयर लोगों से भर चुका था. हमले के पीड़ितों के सम्मान में लोग फूल और लिए हुए थे.

वे रिपब्लिक स्क्वॉयर की इमारत पर ‘फ्रांस अमर रहे’, ‘पेरिस के लिए प्रार्थना करें’, ‘हम रिपब्लिक हैं, हम लिबर्टी हैं’ लिखे हुए पोस्टर लगा रहे थे.

रिपब्लिक स्क्वॉयर पर पहुंचे कुछ लोगों से मैंने बात की. उन्होंने बताया कि वे पीड़ितों के प्रति सम्मान व्यक्त करने आये हैं और यह प्रार्थना करने भी कि ऐसा फिर कभी न हो.

जहां-जहां हमले हुए थे, यही नजारा था. बैटाकलां थिएटर जहां सबसे ज्यादा जानें गईं, वहां लोग कतारों में खड़े हो कर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. शहर के मुख्य भाग में मौजूद बैटाकलां थिएटर, जहां चल रहे म्यूजिक कॉन्सर्ट पर हुए हमले में 100 से ज्यादा युवाओं की जान गई, शार्ली एब्डो के ऑफिस से पांच मिनट की दूरी पर है. शार्ली एब्डो पर इस साल जनवरी में चरमपंथी हमला हुआ था.

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शार्ली एब्डो हमले से अभी उबर ही रहा था पेरिस कि एक और हमले ने उसे हिला कर रख दिया. पर यह शहर अब भी पीड़ितों के साथ मजबूती से खड़ा है. एक ओर जहां टैक्सियां दुखी नागरिकों को निशुल्क सेवा दे रही थीं, वहीं दूसरी ओर लोग अस्पतालों के बाहर खून देने के लिए कतार लगाए खड़े थे.

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वीकेंड में गुलजार रहने वाला पेरिस सुनसान सा था. यहां तक कि नोट्रे डेम चर्च, ओपेरा और एफिल टावर जैसे पेरिस के मशहूर पर्यटन स्थलों तक भी कम ही लोग पहुंचे. हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए एफिल टावर की प्रसिद्ध बत्तियों को भी बुझा दिया गया था.

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चैंप्स एलिसी के पास कोई ट्रैफिक नहीं था. मेट्रो स्टेशन खाली थे. पिछले कुछ महीनों में, जब से मैं यहां हूं, मैं पहली बार किसी शनिवार की शाम आठ बजे मेट्रो कंपार्टमेंट में अकेला चढ़ा.

हालांकि फिजा में उदासी थी पर हिम्मत की रौशनी ने शहर का दामन नहीं छोड़ा. अंग्रेजी अखबार ‘गार्डियन’ ने इस हमले को ‘खुशी के खिलाफ युद्ध’ करार दिया है पर इस शहर के लोगों ने एक बार फिर दिखा दिया कि आजादी, बराबरी औक भाईचारे में उनका यकीन इस सरह की आतंकी घटनाओं से नहीं डिगने वाला.

(करन सरनाइक पेरिस में फोटोग्राफी के स्टूडेंट हैं.)

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