आप कभी रियाद गए हैं? सऊदी अरब की राजधानी रियाद एक चमकता-दमकता शहर है. ऊंची इमारतों और महंगी गाड़ियों का शहर. 4 नवंबर की रात, रियाद का होटल रिट्ज कार्लटन, एक झटके में दुनिया के सबसे रईस और असरदार कैदियों के क्लब में बदल गया. दुनिया को सऊदी अरब में उथल-पुथल की ये कहानी चौंका रही है. इस बाहरी चमक-दमक के पीछे कुछ हो रहा है जो स्याह है, अंधेरे में है. हिंदुस्तान में दिल्ली सल्तनत से मुगलिया सल्तनत तक गद्दी तक पहुंचने के लिए बहे खून की कहानियां गुजरे जमाने की भले लगती हों लेकिन उनकी एक झलक आज के सऊदी अरब में नजर आ रही है.
11 राजकुमार, 4 मंत्री, कई पूर्व मंत्री सब गिरफ्तार
32 साल का शहजादा, मोहम्मद बिन सलमान, सऊदी अरब के इतिहास को बदलने पर आमादा है. इतिहास जो करीब-करीब शांत सत्ता परिवर्तन से गुजरा है, जो आमतौर पर कट्टर छवि वाला रहा है, जो बदलावों से डरता है.
आखिर जो आज शहजादा या कहें क्राउन प्रिंस है, उसे ये सब करने की जरूरत क्यों पड़ी? सऊदी अरब में भ्रष्टाचार के विरोध का शिगूफा कहां से आया? दो प्रिंस की हादसों में हुई मौत क्या हत्या है? क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का इस मामले से कोई कनेक्शन है? इन सारे सवालों का जवाब एक-एक कर ढूंढ़ते हैं.
पहले बात 4 नवंबर की रात की. होटल रिट्ज कार्ल्टन में 11 प्रिंस, 4 मंत्री और कुछ पूर्व मंत्री कैद हैं. लेकिन, सऊदी अरब के शाही खानदान और सियासत पर पैनी नजर रखने वालों की मानें तो ये सिर्फ 20-22 लोग नहीं हैं जैसा दिखाया जा रहा है. ये संख्या कहीं ज्यादा है. करीब 200 ऐसे लोग हैं जिन्हें क्राउन प्रिंस के कहने पर गिरफ्तार कर लिया गया है.
पर क्यों? इनका जुर्म क्या है?
जुर्म है भ्रष्टाचार. या कम से कम दुनिया को तो यही बताया जा रहा है. रातों रात, किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज ने एक भ्रष्टाचार विरोधी कमेटी बना दी और उसकी कमान दी अपने बेटे और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को. मोहम्मद ने वही किया जो कोई शहजादा, गद्दी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए करता है. यानी रास्ते के कांटों को हटाना. कांटों को हटाने के लिए नाम दिया गया भ्रष्टाचार का. वैसे सऊदी अरब के समाज में ये कोई छिपी बात नहीं है कि भ्रष्टाचार का बोलबाला हर जगह है. शाही खानदान से लेकर आम कारोबारी तक. लेकिन सवाल ये है कि अगर मोहम्मद बिन सलमान, पहले ही क्राउन प्रिंस है तो उसे किससे खतरा? कौन उसके रास्ते की अड़चन बन सकता है?
पसंदीदा पत्नी के पसंदीदा बेटे से लगा दिल
अब जरा ठहरते हैं. चीजों को कड़ियों में पिरोने के लिए 2 साल पीछे जाते हैं. 2015 में किंग अब्दुल्ला, सऊदी अरब की सत्ता पर काबिज थे. उनकी मौत के बाद सलमान बिन अब्दुल अजीज ने राजगद्दी संभाली. गद्दी पर बैठते ही किंग ने अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को बड़ी जिम्मेदारियां सौंपना शुरू कर दिया. उसे अपना सलाहकार नियुक्त किया. फिर देश का रक्षा मंत्री बना दिया गया. दावा किया गया कि वो सऊदी ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे कम उम्र के रक्षा मंत्री हैं. फिर 21 जून 2017 को हुआ वो धमाका जिसकी थरथराहट सऊदी अरब के तमाम शहजादों, मंत्रियों और शाही खानदान में ऊपर से नीचे तक महसूस की गई.
सलमान ने अपने तीन बड़े और काबिल बेटों को नजरअंदाज कर मोहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस घोषित कर दिया. शायद इसलिए भी क्योंकि वो उनकी पसंदीदा पत्नी का पसंदीदा बेटा था. ये बताना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सऊद वंश में इन सब बातों को काफी अहमियत दी जाती है. शायद किसी भी और राजवंश की तरह.
टूट गई परंपरा
एक और अहम बात. मोहम्मद को क्राउन प्रिंस बनाकर एक परंपरा को भी तोड़ दिया गया. वो थी उम्र के पैमाने को नजरअंदाज करना. कहने को साल 2007 से ही क्राउन प्रिंस का चुनाव फैमिली काउंसिल के हाथों में दे दिया गया जिसे किंग अब्दुल्लाह ने बनाया लेकिन असल ताकत गद्दी पर बैठे किंग के हाथों में ही रहती है. यही वजह रही कि, मोहम्मद सलमान को क्राउन प्रिंस तो घोषित कर दिया गया लेकिन उनके गद्दी तक पहुंचने के रास्ते में कई खामोश शहजादे और खड़े हैं.
मौजूदा किंग की मौत की सूरत में ये सत्ता संघर्ष खूनी न हो जाए इसलिए मोहम्मद बिन सलमान को थोड़ा-बहुत खून बहाने में गुरेज नहीं. अरब न्यूज, जेद्दाह में सीनियर एडिटर रहे शाहीन नजर बताते हैं, “भले प्रिंस मंसूर बिन मुकरिन की मौत हेलिकॉप्टर क्रैश में और प्रिंस अजीज की संदिग्ध हालात में हुई लगती हो लेकिन ताजा घटनाक्रम देखते हुए साजिश की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.”
दो ताकतवर प्रिंस रास्ते से हटे?
आज वो सैकड़ों लोग जो उनके रास्ते का रोड़ा बन सकते हैं, कैद में हैं. कुछ लोग हादसों में मारे जा रहे हैं. प्रिंस तलाल और प्रिंस मितेब जैसे ताकतवर लोग गिरफ्त में हैं. प्रिंस मितेब के हाथों में ही नेशनल गार्ड की कमान थी. वही नेशनल गार्ड जिसके जिम्मे शाही खानदान की सुरक्षा है लेकिन जो अब तक प्रिंस सलमान के प्रति जवाबदेह नहीं था. एक वक्त पर मितेब गद्दी के दावेदार भी माने जाते थे. इसके अलावा, ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक मोहम्मद बिन नायफ नजरबंद हैं जिन्हें जून में क्राउन प्रिंस से हटवाकर ही मोहम्मद बिन सलमान क्राउन प्रिंस बने. सितंबर में कई बुद्धिजीवियों और उलेमाओं को भी गिरफ्तार किया गया.
प्रिंस तलाल एक उदारवादी छवि वाले कारोबारी हैं. वो एपल, ट्विटर और ईबे जैसी बड़ी कंपनियों में हिस्सेदारी रखते हैं. देश के चुनिंदा मीडिया कंपनियों को कंट्रोल करते हैं. यानी, इन गिरफ्तारियों के बाद प्रिंस सलमान ने सेना से लेकर आर्थिक मोर्चे तक सब पर कब्जा जमा लिया है.
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान एक उदार चेहरा, सऊदी समाज के सामने रख रहे हैं. महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस सौंपना या रोबोट को नागरिकता देना जैसे कदम इसी का इशारा है.
क्या सऊदी उथल-पुथल का कोई अमेरिकी कनेक्शन है?
सीधे सवाल का सीधा जवाब होगा---ऐसा बिल्कुल मुमकिन है. खास तौर न्यूयॉर्कर अखबार की रिपोर्ट की मानें तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दामाद जेयर्ड कुशनर ने बिना जानकारी के, अक्तूबर के आखिर में सऊदी अरब की यात्रा की थी. 4 नवंबर के घटनाक्रम के बाद एक के एक दो ट्वीट्स में ट्रंप ने किंग और प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का समर्थन किया है. ये भी नहीं भूलना चाहिए कि बतौर राष्ट्रपति ट्रंप की पहली यात्रा सऊदी अरब की थी. ऐसे में जब प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान यमन के मोर्चे पर युद्ध में घिरे हैं, ट्रंप उम्मीद की किरण हैं.
एक और दिलचस्प मामला है ट्रंप और प्रिंस तलाल का. 20 साल पहले भले तलाल ने ट्रंप की पैसों से मदद की हो लेकिन दिसंबर 2015 में प्रिंस तलाल ने न सिर्फ ट्रंप को पूरे अमेरिका का लिए कलंक करार दिया बल्कि हिलेरी क्लिंटन के कैंपेन के लिए लाखों डॉलर का डोनेशन भी दिया. दोनों एक दूसरे को नापंसद करते हैं. जाहिर है, ट्रंप कभी नहीं चाहते कि प्रिंस तलाल सऊदी की गद्दी की रेस में शामिल हों.
भारत पर क्या हो सकता है असर?
कच्चे तेल के दामों में ठहराव के दम पर बीते तीन बरस में भारतीय अर्थव्यवस्था ने अच्छी छलांग लगाई है. चीजों के दाम कम रखने में मदद मिली है और फिस्कल डेफिसिट कम किया जा सका है. लेकिन, अगर सऊदी का संकट गहराता है तो भारत के लिए भी तेल की कीमतों का संकट खड़ा हो जाएगा. पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी वो भी चुनावों से पहले, सरकार के लिए बड़ी मुश्किल का सबब बन सकता है. साथ ही 25 से 30 लाख भारतीयों की नौकरी पर भी संकट मंडरा सकता है जैसा 1990 के कुवैत युद्ध के दौरान हुआ था.
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