नॉवेल कोरोना वायरस का संक्रमण चीन के वुहान से शुरू हुआ था और अब ये दुनिया के लगभग सभी देशों में फैल चुका है. कोरोना वायरस का नाम उसके आकार की वजह से पड़ा है. इस वायरस की सतह पर क्राउन जैसे स्पाइक होते हैं. कोरोना वायरस का ये आकार और इसे ये नाम देने वाली स्कॉटलैंड की वायरोलॉजिस्ट जून अलमिडा थीं.
जून अलमिडा 1965 में ह्यूमन कोरोना वायरस को देखने वालीं पहली इंसान थीं. अलमिडा ने 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया था. लेकिन जिंदगी में आगे चलकर उन्होंने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में खूब नाम कमाया.
कौन थीं जून अलमिडा?
स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में जन्मीं अलमिडा को पैसे की कमी की वजह से 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा था. उनकी बेटी जॉयस ने इस बात का खुलासा द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में किया था.
स्कूल छोड़ने के बाद अलमिडा ने ग्लास्गो रॉयल इनफर्मरी के हिस्टोपैथोलॉजी डिपार्टमेंट में एक लैब टेक्नीशियन के तौर पर काम किया. वहां अलमिडा ने जो सीखा, वो उनके वायरोलॉजिस्ट के करियर में काफी काम आया. शादी के बाद जून अलमिडा कनाडा चली गई थीं. टोरंटो में अलमिडा ने ओंटेरियो कैंसर इंस्टिट्यूट में एक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी टेक्नीशियन का काम किया.
जून कैसे देख पाईं थी कोरोना वायरस?
जून अलमिडा ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में नेगेटिव स्टेनिंग का इस्तेमाल कर काफी वायरस का स्ट्रक्चर स्टडी किया था. स्टेनिंग की इस तकनीक में बैकग्राउंड स्टेन किया जाता है और स्पेसिमेन के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाती.
पहला ह्यूमन कोरोना वायरस 1965 में वैज्ञानिक डीजे टायरेल और एम एल बायनो ने खोजा था. एक बच्चे की नाक के सैंपल से इन दोनों ने एक वायरस को आइसोलेट किया था. इस बच्चे में कॉमन कोल्ड के लक्षण थे. वैज्ञानिकों ने वायरस को B814 नाम दिया था.
टायरेल और बायनो ने पाया कि वायरस ऑर्गन कल्चर में बढ़ रहा है, लेकिन सामान्य सेल कल्चर में नहीं बढ़ता है. 1967 में ये सैंपल जून अलमिडा ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के जरिए स्टडी करने की कोशिश की. अलमिडा वायरस को एंटीबॉडीज की मौजूदगी में लाईं, जिससे दोनों एक-दूसरे से जुड़ गए.
अलमिडा ने जब वायरस और एंटीबॉडी के इस कॉम्प्लेक्स की स्टडी की, तो उन्हें समझ आया कि ये वायरस आकार में एवियन ब्रोंकाइटिस और माउस हेपेटाइटिस के लिए जिम्मेदार वायरस जैसे हैं. ये वायरस भी कोरोना वायरस के एक प्रकार हैं.
जून अलमिडा की 2007 में मौत हो गई थी.
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