लगातार चौथे साल और कोरोना महामारी के बावजूद फिनलैंड (Finland) दुनिया का सबसे खुशहाल देश है. संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट (World Happiness Report) में 19 मार्च को इस बात का खुलासा हुआ. वहीं, भारत का स्थान 139वां आया है. कुल 149 देशों में सर्वे किया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने कहा, "ये कोई हैरानी की बात नहीं है, फिनलैंड हमेशा लोगों का भरोसा जीतने में सबसे आगे रहा है. महामारी के दौरान जीवन और आजीविका की रक्षा करने में मदद की है."
फिनलैंड उन 23 सर्वेक्षण देशों में से एक था, जिनकी सरकार में एक महिला प्रमुख थीं. रिपोर्ट का कहना है कि ‘फिनलैंड सबके कल्याण के साथ नीति बनाता है और ये सामुदायिक प्रसारण को और भी अधिक स्पष्ट विकल्प बनाता है.’
टॉप पर यूरोपियन देशों का दबदबा
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट के पीछे शोधकर्ताओं ने गैलप डेटा का इस्तेमाल किया था. गैलप ने 149 देशों में लोगों से अपनी हैप्पीनेस को रेट करने को कहा था. साथ ही इस डेटा में जीडीपी, सोशल सपोर्ट. निजी आजादी और भ्रष्टाचार का स्तर भी देखा गया और फिर हर देश को हैप्पीनेस स्कोर दिया गया. ये स्कोर पिछले तीन सालों का औसत था.
एक बार फिर टॉप पोजीशन पर यूरोपियन देश छाए रहे. डेनमार्क दूसरे, स्विट्जरलैंड तीसरे, आइसलैंड चौथे, नीदरलैंड पांचवे, नॉर्वे छठे, स्वीडन सातवें, लक्जमबर्ग आठवें और न्यूजीलैंड नौवें स्थान पर रहे.
न्यूजीलैंड पिछली रैंकिंग से एक स्थान नीचे आ गया है. वो टॉप टेन में अकेला गैर-यूरोपियन देश है.
रिपोर्ट में अपनी पोजीशन सुधारने वालों में जर्मनी और फ्रांस शामिल रहे. जर्मनी ने 17वें से 13वें और फ्रांस ने 23वें से 21वें स्थान पर छलांग लगाई.
वहीं, यूके 17वें से 13वें और अमेरिका एक स्थान नीचे गिरकर 19वें पायदान पर आ गए हैं.
पिछले साल क्या थी भारत की रैंकिंग?
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2020 में भारत को 156 देशों की लिस्ट में 144वां स्थान मिला था. लेकिन इस साल की रैंकिंग में उन देशों को जगह नहीं दी गई, जहां सर्वे नहीं किया गया या सैंपल साइज छोटा था.
2021 की रैंकिंग के मुताबिक, भारत से पीछे रहने वाले 10 देश बुरुंडी, यमन. तंजानिया, हैती, मलावी, लेसोथो, बोत्सवाना, रवांडा, जिम्बाब्वे और अफगानिस्तान हैं.
कोलंबिया विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सह-संपादक और रिपोर्ट के ऑथर जेफरी डी सैक्स ने कहा, "महामारी हमें हमारे वैश्विक पर्यावरण खतरों, सहयोग की तत्काल आवश्यकता और विश्व स्तर पर सहयोग प्राप्त करने की कठिनाइयों की याद दिलाती है."
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