बीजेपी के दयाशंकर ने मायावती को गाली दी. बदले में मायावती ने इसे नारी और दलित अस्मिता पर हमला करार दिया. संसद से लेकर सड़क तक विरोध प्रदर्शन किया गया. पद-पार्टी से बेदखल होने के साथ-साथ दयाशंकर के खिलाफ FIR हो गई.
बीएसपी कार्यकर्ता अपनी देवी के खिलाफ गाली सुनकर भड़क उठे. हवा में हाथ लहराए और नारे उछले. बीएसपी की चंडीगढ़ यूनिट चीफ जन्नत जहां ने दयाशंकर की जीभ काटकर लाने वाले को 50 लाख का इनाम देने की घोषणा कर डाली.
अब आगे...
बीजेपी ने ये ऐलान कर दिया है कि शनिवार को पूरे उत्तर प्रदेश में दयाशंकर की बेटी के समर्थन में सम्मान मार्च निकालने जा रही है.
दयाशंकर कुत्ते को फांसी दो...फांसी दो...दयाशंकर की बेटी को पेश करो...पेश करो. दयाशंकर की पत्नी को पेश करो...पेश करो.
खुद की पेशी की मांग सुनकर 12 साल की बच्ची को मानसिक रूप से धक्का लगा. वो अस्पताल पहुंच गई. दयाशंकर की मां ने अपनी नातिन की हालत के लिए जिम्मेदार मायावती समेत कई बसपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है.
क्या नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से निकालेंगी मायावती?
बसपा के प्रदर्शन में मायावती की पार्टी के नंबर दो नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी शामिल थे. उन्होंने अपनी पार्टी की प्रदर्शन में कईयों को दयाशंकर बनते देखा लेकिन किसी को रोका नहीं.
क्या इसलिए क्योंकि मायावती अब एक देवी हैं. उनके भक्त क्रुद्ध होकर सरेआम 12 साल की बच्ची को अस्पताल पहुंचा सकते हैं...क्योंकि लोकतंत्र में नेताओं का पार्टी सुप्रीमो बनना और भगवान बनना बाबा साहब अंबेडकर का सपना था?
इन सवालों के जवाब सिर्फ मायावती दे सकती हैं. और, ये जवाब जबानी जमाखर्च से नहीं गालीकांड के लिए जिम्मेदार बीएसपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई से मिलेगा.
क्या बाबा साहब और संविधान हैं सिर्फ किताबी शब्द?
संसद के दोनों सदनों की कार्रवाई सुनेंगे तो आप बाबा साहब के सपनों वाले भारत में जीने लगेंगे. कानों से घुसकर आंखों में एक खुशफहमी तैर जाएगी. देश के नेता और उनके उद्देश्यों में भरोसा जगने लगेगा. लेकिन जरा चैनल चेंज करिए. सड़क पर इन्हीं नेताओं के इशारे पर हो रहे प्रदर्शनों को सुनिए. कुछ मिनटों में ही बाबा साहब आपको हैरी पॉटर जैसे कोई फिक्शनल किरदार लगने लगेंगे. ऐसा लगेगा कि ये सारे नेता उनके फैन हैं और संसद में उनके बारे में बात करना पसंद करते हैं.
सच कहूं तो अब कोई हाई मॉरल ग्राउंड नहीं ले सकता क्योंकि कई साल पहले उसकी हत्या हो चुकी है. अब हम नो मॉरल ग्राउंड वाली राजनीति में जी रहे हैं.
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