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पाक के साथ जंग भारत की अर्थव्‍यवस्‍था को एक दशक पीछे धकेल देगा!

युद्ध होने की स्थिति में भारत को खर्च करने होंगे हर दिन 5000 करोड़ रुपये.  

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पाकिस्‍तान के साथ युद्ध भारत की अर्थव्‍यवस्‍था को एक दशक पीछे धकेल देगा उरी में भारतीय सेना बिग्रेड के मुख्‍यालय पर हुए जघन्‍य आतंकी हमले के बाद पूर्व सैनिक टिवटर, फेसबुक, एडिटोरियलों और टीवी डिबेट में पाकिस्‍तान के साथ युद्ध के लिए तत्‍पर नजर आ रहे हैं.

लेकिन हमें इस बात को नहीं भुलाना चाहिए कि इस बार हमें सामना न केवल पाकिस्‍तान से बल्कि उनके परमाणु हथियारों से भी करना होगा तथा इतना ही नहीं युद्ध होने का सबसे पहला नुकसान हमारी “विश्‍व में सबसे तेज गति से बढ़ती इकोनॉमी” की छवि को होगा.

दो अंकीय विकास दर की ओर

  • नीति आयोग के आकलन के अनुसार, युद्ध न होने की स्थिति में, साल 2016-17 में जीडीपी में 8% की वृद्धि दर जारी रहेगी
  • साथ ही अभी लागू होने वाले जीएसटी लाभांश से 2019 तक युद्ध के बिना 2% की अतिरिक्‍त वृद्धि होगी.
  • इसके अलावा इस साल बेहतर रहे मानसून के कारण गांव की इकोनॉमी से 1% अतिरिक्त और ला नीना के बेहतर प्रभाव के कारण आगे आने वाले समय में दो प्रतिशत की वृद्धि होगी.


लेकिन ये तभी होगा जब ये युद्ध की तलवार नहीं लटकेगी. भारत अपनी $2 ट्रिलियन की वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था और अपने $2 ट्रिलियन के पूंजी बाजार को अगले दो दशकों में, दो अंकीय वृद्धि दर के साथ बढ़ा सकता है. इसके पास अपनी जनसंख्‍या को देखते हुए एक दशक के अंदर ही “निम्‍न मध्‍यम आय” की अर्थव्‍यवस्‍था बनने के पूरे अवसर मौजूद हैं. लेकिन यह सब युद्ध न होने की स्थिति में होगा.

इकोनॉमी एक दशक पीछे चली जाएगी

ऐसा होने पर, थोड़े समय बाद, अपने सैन्‍य खर्चे में जो कि वर्तमान में जीडीपी का 1.7% है, में तेजी से वृद्धि करने में सक्षम होंगे, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा में वृद्धि होगी, तो साल दर साल इकोनॉमिकली और सैन्‍य शक्ति बढ़ती ही जाएगी.

चीन-पाकिस्‍तान आर्थिक गलियारे में $50 बिलियन का निवेश पाकिस्तान के आर्थिेक विकास का प्रमुख आधार है और यह पाकिस्‍तान के वर्तमान विकास कार्यों का केन्‍द्र बिन्‍दु है.

यह गिलगित/बाल्टिस्‍तान में चल रहे निर्माण कार्य की सुरक्षा के लिए बड़े स्‍तर पर प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने, और भारत का पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर पर दावा करने के पांच हफ्ते पहले संयुक्‍त सुरक्षा कार्यक्रम को लागू कर चुका है.

प्रस्‍तावित चीन-पाकिस्‍तान आर्थिक गलियारे के दूसरे हिस्‍से में, भारत द्वारा अपनी मदद दिखाने से पहले ही हजारों की संख्‍या में बलुचियों को उनकी आजादी की मांग को लेकर मौत के घाट उतारा जा चुका है.

कई सारे पारंपरिक बलूची पुरुष, महिलाऐं और बच्‍चे अगवा होकर हमेशा के लिए गायब हो रहे हैं. अब यह सब पहली बार न्‍यूयार्क में यूएनजीए के सामने है. लेकिन युद्ध हारने पर चीन की बड़ी सैन्‍य शक्ति की श्रेष्‍ठता सिद्ध होने के अलावा, हमारी अर्थव्‍यवस्‍था कम से कम एक दशक पीछे चली जाएगी.

सारांश:

भारत-पाक युद्ध के अर्थव्‍यवस्‍था पर संभावित परिणाम

स्नैपशॉट

1999 में हुए कारगिल युद्ध से तुलना करने पर, एक हफ्ते के युद्ध की लागत 5000 करोड़ रुपये थी, ले‍किन वर्तमान स्थिति को देखते हुए पाकिस्‍तान से अभी युद्ध की स्थिति में यह खर्चा 5000 करोड़ रुपये प्रतिदिन होगा.

यदि युद्ध दो हफ्तों तक चला, तो भारत पर 2,50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्‍त बोझ पड़ेगा.

भारत-पाक युद्ध भारत के वित्‍तीय घाटे को 50 प्रतिशत बढ़कर 8 लाख करोड़ रुपये कर देगा

युद्ध होने पर, हमारे एफडीआई/एफआईआई निवेशों में तगड़ा झटका लगेगा और यूएस डालर के सामने भारतीय रुपये की कीमत 100 रुपये प्रति डालर तक गिर सकती है.

बाजार पर मंदी का प्रभाव

युद्ध होने से हमारी जीडीपी में तीव्र मंदी आयेगी. यदि हम 1999 में हुए कारगिल युद्ध को उदाहरण मानकर चलें, जिसमें युद्ध पर एक हफ्ते में 5000-10,000 करोड़ तक का खर्चा हुआ था, आज 2016 में युद्ध की स्थिति में युद्ध पर रोजाना 5,000 करोड़ का खर्चा होगा.

14 दिनों के एक छोटा से युद्ध की कई मोर्चों और आकस्मिक जरुरतों को ध्‍यान में रखते हुए 2,50,000 करोड़ का खर्चा होगा और जिससे राष्‍ट्रीय वित्‍तीय घाटा 2015-16 के 5.35 लाख करोड़ से, 50 प्रतिशत बढ़कर 8 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा.

यह पिछले वर्ष की तुलना में 4.1 प्रतिशत नीचे, जीडीपी का 3.9 प्रतिशत था. इस कल्‍पनात्‍मक युद्ध का मंदी पर भी जबरदस्‍त प्रभाव पड़ेगा. यह हमारे बढ़ते एफडीआई/एफआर्इआई निवेश में भी 50 प्रतिशत तक की कमी लायेगा, रुपये को डालर के मुकाबले 100 रुपये के स्‍तर पर गिरा देगा, हमारे उच्‍च तकनीकि निर्माण उद्देश्‍यों को भी नुकसान पहुँचेगा और हमारे निकट भविष्‍य में आने वाले सुधारों को खत्‍म कर देगा.

युद्ध के अतिरिक्‍त अन्‍य सुझाव की तलाश

भारत और पाकिस्‍तान के युद्ध से चीन को काफी फायदा पहुँचेगा, और इस लड़ाई में उसका सबसे करीबी प्रतिदंवदी रास्‍ते से हट जाएगा. चीन का जैश ए मोहम्‍मद को संरक्षण, भारत को एनएसजी से बाहर रखना, पाकिस्‍तान पर नाभिकीय सयंत्रों, सैन्‍य सामानों की वर्षा, तथा सुरक्षा संधि पर समझौतों के प्रति प्रतिबद्धता को भी इसके अंतर्गत देखना चाहिए.

हांलाकि इसका अर्थ यह नहीं है कि हम पाकिस्‍तान के उप पारंपरिक युद्ध के मॉडल के खिलाफ कुछ भी न करें.

अगर भारत अपनी रणनीति बदलता है, चाहे उसको कितना ही क्‍यों न उकसाया जाए, हम अनिश्चित समय तक जैसे को तैसा की नीति पर कार्य करते हुए, अपनी सुरक्षा उपायों में खामियों और बचाव की तरीकों मे बेहतर सुधार कर सकते हैं. इससे सम्‍मान और रक्‍त के बलिदान का मान रखे जाने के साथ ही हमारी अर्थव्‍यवस्‍था भी तेज रफ्तार से आगे बढ़ेगी.

भारत की पुख्‍ता सुरक्षा सुनिश्चित करें भारत, शीर्ष खुफिया अधिकारी तथा राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोवाल द्वारा लंबे समय से समर्थित हमारे “सुरक्षा खतरे” के कार्यक्रम को लागू करें, और कानूनी रूप से भारत के पाकिस्‍तानी कब्‍जे वाले कश्‍मीर /गिलगित-बाल्टिस्‍तान में आतंकियों पर कहर बरपा सकता है.

आजादी की मांग कर रहे बलुचियों के संघर्ष को उनके सफल होने तक मदद करना. इन क्षेत्रों को पाकिस्‍तान से तोड़ने के मुख्‍य लक्ष्‍य के साथ ही, दूसरे क्षेत्रों जैसे उत्‍तरी-पश्चिमी सीमावर्ती पाकिस्‍तान , और सिंध भी इस संघर्ष से जुड़ेंगे.

हम उन्‍हें लंबे समय तक पुरुष-बल, सामान, ट्रेनिंग, कूटनीतिक तथा आर्थिक सहयोग प्रदान सकते हैं. हम खबरियों, राज्‍य विरोधी तत्‍वों, विशेष कार्यबलों, सैनिकों, कमाण्‍डों की मदद ले सकते हैं- और मुफ्ती बनते हुए, खुशी से इंकार करते हुए नकेल कर सकते हैं.

और इसके साथ ही, पाकिस्‍तान द्वारा तीन दशकों से हमारे साथ किए गए गुनाहों के सबूतों के साथ शर्मिंदा कर सकते हैं. ऐसा करने से चीन भी हमारे ऊपर आक्रमण करने की गुश्‍ताखी नहीं करेगा, और हम पर विशेषाधिकार के हनन का आरोप भी नहीं लगाएगा.

कूटनीतिक रास्‍ते को पकड़े रहें

इसके अतिरिक्‍त, पाकिस्‍तान को आतंकवादी राज्‍य घोषित करने का हमारा कूटनीतिक प्रयास भी सफल हो रहा है. अब पाकिस्‍तान न केवल अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी की नजरों में, बल्कि सार्क देशों बांग्‍लादेश और अफगानिस्‍तान भी इसकी निंदा कर रहे हैं.

कई मोर्चों पर बहिष्‍कार से, शायद और अधिक आर्थिक प्रतिबंध, इस रास्‍ते में बेहतर साबित होंगे.

पाकिस्‍तान और चीन का कश्‍मीर घाटी पर कब्‍जा करने का उद्देश्‍य चीन-पाकिस्‍तान आर्थिक गलियारा और पानी के बहाव पर नियंत्रण के अलावा भारत को शर्मिंदा करना और इसकी बढ़ती वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचाना भी महत्‍वपूर्ण उद्देश्‍य हैं.

शैतानी दिमाग से उपजी यह योजना देखने में कारगर लगती है, लेकिन 1980 से लगातार छोटी-छोटी हजारों झड़पों की असफलता के कारण, सफल होती दिखाई नहीं देती.

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