नोटबंदी और नोटबदली के जरिए देश करवट बदल रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी के इस ऐतिहासिक फैसले के ऐलान के बाद लोगों के बीच थोड़ी घबराहट तो थी, पर मन में ये विश्वास भी था कि जल्द ही कालाबाजारियों और भ्रष्टाचारियों के दिन लद जाएंगे. 10 दिन होते-होते बैंकों और एटीएम के आगे लाइनें छोटी होती जाएंगी. सबके हाथ में नए-नए नोट होंगे और जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट आएगी.
इस ऐलान के पूरे 10 दिन बीत चुके हैं. अब देश के हालात पर सरसरी तौर एक नजर डालते हैं.
इन 10 दिनों में देशभर से तरह-तरह की मार्मिक खबरें लगातार आ रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में शुक्रवार तक नोटबंदी से जुड़ी वजहों से करीब 55 लोग असमय काल के गाल में समा चुके हैं. कोई लाइन में खड़े-खड़े दम तोड़ रहा है, तो किसी का हार्ट बैंकबाबू के आधार कार्ड मांगने पर फेल हो जा रहा है.
बैंकवाले को भी चैन मयस्सर नहीं. इधर हर दिन 12-12 घंटे बिना सांस लिए काम कर रहे हैं. असमय जान गंवाने वालों में लाचार बैंककर्मी भी हैं.
चूंकि शादी-ब्याह टाले जा सकते हैं, इसलिए कई जगह ये टाले जा रहे हैं. पर यमदूतों को तो दरवाजे से लौटाया नहीं जा सकता, इसलिए कई जगहों पर लोगों को अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार और श्राद्धकर्म करने में भी भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. ये कोई बॉलीवुड गॉसिप नहीं है. ये हकीकत जिम्मेदार मीडिया की आंखों से कोई भी आसानी से देख सकता है.
लोग जब सभी जगहों से हार जाते हैं, तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार को आगाह करने पर बाध्य हो गया कि स्थिति संभालिए, नहीं तो दंगे जैसे हालात हो सकते हैं.
विरोधी पार्टियों की बात छोड़ देते हैं. कोलकाता हाईकोर्ट ने भी फटकार लगाते हुए कहा कि केंद्र ने बिना होमवर्क किए, बिना दिमाग लगाए नोटबंदी का फैसला किया. सरकार को हर दिन अपने ही निर्णय को बदलना पड़ रहा है.
परेशान सिर्फ वे ही नहीं हैं, जिनके पास नए नोट नहीं हैं. परेशान तो वे भी जिनके पास नए नोट हैं. 2000 और 500 के नए नोट लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन रहे हैं.
इन नोटों पर लोगों की पहली प्रतिक्रिया यही होती है, ‘अरे, ये तो एकदम छोटा और पतला है...लगता है जैसे एकदम जाली नोट हो.’
खैर, रंग-रूप की बात छोड़ देते हैं. इस मेधावी देश में करोड़ और 5 करोड़ के सवालों के जवाब शायद बहुत लोगों के पास हों. पर आज 2000 का छुट्टा कितने लोगों के पास है?
सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि हालात कब तब सुधरेंगे, ये किसी को नहीं मालूम. सत्तापक्ष के लोग जनता को नोटबंदी के फायदे गिना रहे हैं. पब्लिक यकीन करने को तैयार भी है कि इस नीति के दूरगामी नतीजे होंगे और देश की स्थिति बेहतर होगी. पर यकीन और भरोसों से आखिर कितने दिन, और कितने दिन तक पेट भरते रहेंगे लोग?
इसीलिए लगता है मोदीजी, इस बार आपने अपनी चाय में नमक डाल दिया है.
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