ये लेख 16 जून 2017 को क्विंट हिंदी पर प्रकाशित हुआ था.
राष्ट्रपति चुनाव के लिए पहले जब किसी उम्मीदवार का नाम तय किया जाता था, तब जाति-समुदाय के समीकरण, क्षेत्र विशेष की बंदिशों को तोड़ने, खास वर्ग को लुभाने जैसी बातों पर ध्यान दिया जाता था. इसका मकसद ‘राइट सिग्नल’ देना होता था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘सियासत की किताब’ में इनकी कोई जगह नहीं है.
एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन होगा? ये फिजूल की कसरत होगी, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा किसी को इस बारे में कुछ पता नहीं है. हालांकि, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए आरएसएस चीफ मोहन भागवत की राय भी मिली होगी. संभव है कि कुछ नामों पर चर्चा भी हुई हो.
इस मामले में सिर्फ यही बात भरोसे के साथ कही जा सकती है कि बीजेपी की तरफ से जो भी कैंडिडेट होगा, उस पर मोदी की छाप होगी.
सत्ता पक्ष के उम्मीदवार से दो मकसद हासिल होने चाहिए.
- पहला, इससे यह मैसेज जाना चाहिए कि मोदी ‘स्मार्ट थिंकर’ हैं.
- दूसरा, सिर्फ वही ऐसा योग्य शख्स तलाश सकते हैं, जो उनकी सोच को आगे बढ़ाए.
इसलिए यह बात अधिक मायने रखेगी कि मोदी क्या मैसेज देना चाहते हैं, न कि संभावित उम्मीदवार किस चीज का प्रतीक होगा. मोदी की सोच बिल्कुल स्पष्ट है. वो आबादी के बड़े हिस्से, गरीबों और वंचितों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
मोदी राष्ट्रपति पद के लिए जो कैंडिडेट चुनेंगे, वो इसी एजेंडे के मुताबिक होगा. बेशक, इससे आने वाले चुनावों में अधिक वोट मिलें, इसका ख्याल भी रखा जाएगा.
मोदी जी कुछ अलग सोचते हैं...
पारंपरिक सोच कहती है कि एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार ऐसा होगा, जो गरीबों की नुमाइंदगी करता हो या उसे गरीबों से जोड़कर देखा जा सकता हो या वो वंचित समुदाय का हो या पिछड़े इलाके से आता हो. अगर वो भगवा एजेंडा को बढ़ाने में मदद करता हो, तो यह और भी अच्छा होगा.
संघ परिवार के लिए इससे अच्छे हालात कभी नहीं रहे. पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी सत्ता में आई और पार्टी का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में दक्षिणपंथी, राष्ट्रवादी और हिंदुत्व टाइप कैंडिडेट क्यों ना चुना जाए. राष्ट्रपति चुनाव इसका एक और मौका हो सकता है.
बुद्धिजीवी, टेक्नोक्रैट (एपीजे अब्दुल कलाम की तरह) या किसी जाने-माने शख्स को उम्मीदवार बनाए जाने पर भी बहस चल रही है. हालांकि, राजनीतिक और चुनावी मजबूरियों के चलते यह मुमकिन नहीं लग रहा.
कुछ लोग कह रहे हैं कि किसी दक्षिण भारतीय को सत्ता पक्ष राष्ट्रपति पद के लिए उतार सकता है, क्योंकि वहां अब तक बीजेपी राजनीतिक तौर पर मजबूत नहीं है.
वेंकैया नायडू का नाम भी इस सिलसिले में लिया जा चुका है, लेकिन वो राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तलाशने वाली बीजेपी की समिति में शामिल हैं, इसलिए उन्हें रेस से बाहर माना जाना चाहिए.
दिल्ली के पॉलिटिकल सर्कल में महाराष्ट्र के गवर्नर विद्यासागर राव का नाम भी संभावित उम्मीदवार के तौर पर लिया जा रहा है.
बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी इस पद के लिए तार्किक पसंद हो सकते थे. उन्हें कैंडिडेट बनाया जाता, तो उसे मोदी की तरफ से सांकेतिक ‘गुरु दक्षिणा’ माना जाता. हालांकि, आडवाणी जी भी रेस से बाहर लग रहे हैं. शत्रुघ्न सिन्हा जैसे हितैषी आडवाणी जी को उम्मीदवार बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कइयों को इसकी संभावना नजर नहीं आ रही है.
क्या सुषमा होंगी उम्मीदवार?
ज्यादातर जानकारों का कहना है कि आदिवासी, दलित, गरीब, महिला जैसे मानकों पर उम्मीदवारों को परखा जाएगा. झारखंड की गवर्नर द्रौपदी मुर्मू का नाम लंबे समय से लिया जा रहा है. इसके अलावा खबरों के मुताबिक, राष्ट्रपति पद के लिए करिया मुंडा, उपराष्ट्रपति पद के लिए थावरचंद गहलौत का भी नाम लिया जा रहा है.
महिला उम्मीदवारों में सुषमा स्वराज का नाम भी उछला है. उनके पास तजुर्बा है, वह अच्छी वक्ता हैं और शानदार शख्सियत की मालिक भी हैं. वह राष्ट्रपति भवन के लिए अच्छी पसंद हो सकती हैं.
आखिर राष्ट्रपति को कई देशों की यात्रा भी करनी पड़ती है. मोदी के साथ उनके समीकरण को लेकर पहले अटकलें लगी हैं, लेकिन आज उनकी छवि अपने हाई प्रोफाइल प्रधानमंत्री के लिए चुपचाप और मेहनत से काम करने वाले विदेशी मंत्री की है.
इलेक्टोरल कॉलेज के आंकड़े ऐसे हैं कि एनडीए के कैंडिडेट को राष्ट्रपति चुनाव जीतने में दिक्कत नहीं होगी. जितने वोट कम हैं, वो वाईएसआर कांग्रेस जैसी छोटी पार्टियों को साथ लाकर पूरे किए जा सकते हैं. निर्दलीय भी एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करेंगे.
अगर कुछ विपक्षी सांसद और विधायक भी एनडीए के साथ आ जाएं, तो चौंकिएगा मत. राष्ट्रपति चुनाव में व्हिप जारी नहीं किया जाता. इसलिए ऐसे नेताओं के खिलाफ पार्टियां एक्शन नहीं ले सकतीं. आंकड़े अपने हक में होने के बावजूद बीजेपी ने ‘राष्ट्रपति पद के लिए योग्य उम्मीदवार’ की खातिर विपक्षी दलों से बातचीत शुरू की है. यही परंपरा है, इसलिए राजनीतिक तौर पर यह कदम सही है.
चौंकने के लिए तैयार रहिए
बीजेपी के लिए अच्छा यही होगा कि वह कुछ गैर-एनडीए पार्टियों को अपने पाले में ले आए. इससे कांग्रेस और अलग-थलग पड़ जाएगी.
अगले राष्ट्रपति के बारे में नीतीश कुमार का बयान याद करिए. उन्होंने कहा था कि वह ऐसे शख्स का समर्थन करेंगे, जिसका संविधान पर भरोसा हो. उनके कहने का मतलब यह है कि अगर एनडीए किसी हिंदुत्ववादी को उम्मीदवार नहीं बनाता, तो वह समर्थन के लिए तैयार हैं. नीतीश ने 2012 में प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था.
विपक्षी दलों को पता है कि राष्ट्रपति चुनाव लड़ना औपचारिकता भर है, लेकिन इसने उन्हें साथ आने का मौका दिया है. वरना अभी तक तो विपक्ष पस्त दिखा है और उसका प्रदर्शन भी लचर रहा है.
विपक्षी खेमे की तरफ से मनमोहन सिंह, शरद यादव और गोपाल गांधी जैसे संभावित उम्मीदवारों का जिक्र हुआ है. सांकेतिक लड़ाई भी अच्छी चीज होती है. जीतने की संभावना भले न हो, लेकिन इससे अगर विपक्ष में कुछ जान लौटती है, तो वह 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति बना सकता है.
2019 चुनाव को लेकर जहां तक मोदी की रणनीति की बात है, तो वह काफी आगे हैं. राष्ट्रपति चुनाव उनके लिए ऐसा जरिया है, जिसका इस्तेमाल वह अपनी राजनीतिक अपील बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. वो इसी बात को ध्यान में रखकर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनेंगे.
वैसे तो कई नामों की चर्चा है, लेकिन सही अंदाजा लगाना जोखिम का काम है. मैंने ऊपर जो नाम लिए हैं, वो सिर्फ इसलिए कि कैंडिडेट चुनते वक्त किन पैमानों का ख्याल रखा जाएगा.
मोदी को चौंकाना पसंद है. इसलिए वो राष्ट्रपति पद के लिए जो उम्मीदवार चुनेंगे, वो आपको हैरान जरूर करेगा. मैं तो यही कहूंगा कि आप अप्रत्याशित उम्मीदवार का नाम सुनने के लिए तैयार रहिए.
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