देश में बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता जताते हुए रामचंद्र गुहा, अनुराग कश्यप, अपर्णा सेन, श्याम बेनेगल, जैसे 49 बुद्धिजीवियों ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी. इसके बाद वकील सुधीर कुमार ओझा की एक याचिका पर बिहार की मुजफ्फरपुर कोर्ट ने इन बुद्धिजीवियों के खिलाफ राजद्रोह के तहत FIR दर्ज कराने का आदेश दे दिया. हंगामा होने के बाद बिहार पुलिस ने इन लोगों के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत दर्ज केस को बंद कर दिया.
ये केस तो बंद हो गया है, लेकिन 'राजद्रोह कानून' का बार-बार ऐसा इस्तेमाल कई सवाल खड़े करता है. इस पूरे मामले को द बिग स्टोरी पॉडकास्ट में समझा रहे हैं क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया.
राजद्रोह कानून का दुरुपयोग बंद करने की मांग
49 लोगों के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज कराए जाने के बाद कई अन्य बुद्धिजीवी भी सामने आए. उन्होंने कहा कि डरने के बजाय सरकार को चेतावनी देने की जरूरत है. इसके बाद करीब 150 और लोगों ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी, इनमें कांग्रेस नेता शशि थरूर भी शामिल हैं. थरूर ने लोगों से अपील में कहा कि वे भी पीएम मोदी को चिट्ठी लिखें और मांग करें कि राजद्रोह कानून का दुरुपयोग बंद होना चाहिए.
क्या है राजद्रोह कानून?
देश में जब अंग्रेजों की हुकूमत थी तब 1837 में मैकाले द्वारा एक कानून लाया गया था. इस कानून के मुताबिक, अगर कोई हुकूमत के खिलाफ साजिश करेगा, जिससे लगे कि हुकूमत को कोई खतरा है तो उसके खिलाफ राजद्रोह का कानून चलाया जा सकता है.
राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार की जरूरत
इस कानून को अंग्रेजी हुकूमत छोड़ गई थी. इसके खिलाफ कई बार सरकार के सामने प्रस्ताव भी लाए गए. लॉ कमीशन ने भी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि इस तरह के कानूनों को बदला जाना चाहिए, क्योंकि अब ये कानून अप्रासंगिक हैं. अंग्रेजी हुकूमत इस कानून को आजादी की लड़ाई को दबाने के इरादे से लाई थी.
लेकिन अब भारत आजाद और लोकतांत्रिक देश है, इसलिए यहां अब अगर कोई सरकार के काम से असहमत है तो ये नहीं कहा जा सकता कि ये राजद्रोह है. ऐसे में अकसर इस कानून का दुरुपयोग होता है. लॉ कमीशन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ये कह चुकी है कि इस कानून पर पुनर्विचार की जरूरत है.
NCRB के डेटा के मुताबिक, साल 2014 से 2016 के बीच राजद्रोह कानून के तहत 179 गिरफ्तारियां हुईं और 70 फीसदी मामलों में पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई.
बिग स्टोरी पॉडकास्ट में सुनिए क्यों है राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार की जरूरत.
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