सालभर की मेहनत के बाद जब 10वीं और 12वीं के बोर्ड रिजल्ट सामने आते हैं तो ये पेरेंट्स और स्टूडेंट्स के लिए किसी तोहफे से कम नहीं होता. खासतौर पर 12वीं के नतीजों का पेरेंट्स बेसब्री से इंतजार करते हैं. यहां हर एक नंबर की वैल्यू होती है. क्योंकि इनके ही आधार पर बच्चे को किसी बड़े कॉलेज में दाखिला मिलेगा. जितनी ज्यादा परसेंटेज होगी उतना ही बेहतर कॉलेज होगा. हम सभी लोग कभी न कभी इस अनुभव से गुजरे हैं. लेकिन ये साल काफी अलग था. कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगाया गया और इस लॉकडाउन के चलते छात्र अपने पूरे एग्जाम नहीं दे पाए.
मार्च के महीने में लॉकडाउन लगते ही एग्जाम टल गए, इसके बाद उम्मीद थी कि अगले कुछ महीनों में बोर्ड एग्जाम कराए जाएंगे. लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच फैसला लिया गया कि जो एग्जाम हुए हैं उनके आधार पर ही बच्चों को पास कर दिया जाएगा. इसी के आधार पर रिजल्ट तैयार होकर 13 जुलाई को अनाउंस हुआ. रिजल्ट पिछले सालों के मुकाबले काफी अच्छा रहा और छात्रों को दिल खोलकर मार्क्स मिले. जिसका नतीजा ये है कि 90 % से ज़्यादा स्कोर करने वाले स्टूडेंट्स में इस साल 65% बढ़ोतरी देखी गई है. लेकिन 90 फीसदी का आंकड़ा पार करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ने से अब डीयू जैसी यूनिवर्सिटीज में कटऑफ को लेकर अटकलें शुरू हो चुकी हैं.
तो इस साल अच्छे मार्क्स आने के बाद छात्रों को कॉलेज में एडमिशन के लिए बढ़ी हुई कट ऑफ से कैसे परेशानी हो सकती है जानिए इस पॉडकास्ट में.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)