गीत: आदित्य रॉय
होस्ट, राइटर, साउंड डिजाइनर: फबेहा सय्यद
एडिटर: शैली वालिया
म्यूसिक: बिग बैंग फज
अहमद फ़राज़ और फैज़ अहमद फैज़ जैसे शायरों के लिए, मेंहदी हसन की आवाज उनकी पहली पसंद थी. लता मंगेशकर के लिए उनकी आवाज मानो भगवान की आवाज हो. जिस गायक के जीवन में उसने 50000 के करीब गजलें गईं हों, जिस पर न सिर्फ भारत और पाकिस्तान की अवाम अपना हक समझती है, बल्कि नेपाल की रियासत भी मोहब्बत से याद करती है. उस फनकार को भारतीय उपमहाद्वीप का 'शहंशाह-ए-ग़ज़ल' अगर नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
मेहदी हसन की पैदाइश राजस्थान के झुंझुनू जिले में हुई और 6 साल ही कि उम्र में उन्होंने अपने चाचा और वालिद की सरपरस्ती में संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी. सीखते-सीखते दो ही साल हुए थे, कि बड़ौदा के महाराजा के सामने उन्होंने अपनी पहली पेशकश दी, जब वो लगातार 40 मिनट तक गाते रहे. उसके बाद भारत में कई रियासतों में अपने दादा इमामुद्दीन के साथ दरबारों में गायकी की. यहां तक कि 10 साल ही की उम्र में नेपाल और पाकिस्तान से बुलावे आने लगे. लेकिन ऐसे ही एक बुलावे की वजह से उनकी जिन्दगी में एक ऐसा मोड़ आया जिसने जिंदगी पलट दी. मुल्क की तकसीम से पहले जो दरबारों में शाही मिजाज देखते देखते बढ़ा हुआ, वो लड़का साइकिल मैकेनिक बन गया. मेहदी हसन की बरसी के मौके पर सुनिए उन की दास्तां आज उर्दूनामा के इस खास एपिसोड में.
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