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सुशांत केस से मीडिया हुई एक्सपोज, आखिर कितना खतरनाक है ये ट्रेंड?

आरोपों की जांच करना कानून का काम है, लेकिन कानून को अपने हाथ में ले लेना मीडिया का काम कब से बन गया? 

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बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत को दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में इस केस को लेकर कई थ्योरी सामने आईं. पहले जहां मुंबई पुलिस नेपोटिज्म और बॉलीवुड इंडस्ट्री के लोगों से पूछताछ में जुटी थी, वहीं सुशांत के पिता के आरोपों के बाद रिया चक्रवर्ती का नाम सामने आ गया. इसके बाद रिया और उनके परिवार को शक के दायरे में लाया गया और तमाम मीडिया चैनलों और अखबारों की हेडलाइन में रिया ही छाईं रही. पिछले कई दिनों से टीवी चैनलों की स्क्रीन पर सिर्फ रिया ही दिखाई दे रही हैं. अभी तक रिया के खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ है और न ही उनकी गिरफ्तारी हुई है. इसके बावजूद मीडिया ट्रायल के जरिए उन्हें दोषी करार देने की तमाम कोशिश हो रही है.

अलग-अलग चैनल अपने हिसाब से रिया को अलग-अलग नाम से पुकार रहे हैं. किसी चैनल के लिए रिया काला जादू करने वाली लड़की हैं तो किसी के लिए वो गोल्ड डिगर बन चुकी हैं. वहीं कुछ चैनल तो हद पार कर रिया को सुशांत की क्रिया करने वाला तक बता रहे हैं.

तमाम आरोपों के बाद रिया पहली बार कैमरे के सामने आईं और इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में कहा कि, जो आरोप मुझ पर लग रहे हैं उससे अब लगता है कि मुझे और मेरे परिवार को आत्महत्या कर लेनी चाहिए'. रिया के खिलाफ आरोपों की जांच करना सरकारी एजेंसियों और कानून का काम है, लेकिन बिना किसी सुनवाई, बिना किसी  जांच के फैसला सुनाने का हक मीडिया को आखिर किसने दे दिया?

इस पर पॉडकास्ट में सुनिए जर्नलिस्ट, ऑथर और मीडिया कमेंटेटर, नाओमी दत्ता को.

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