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नोटबंदी के बाद के हालात से डरी BJP, यूपी में तलाशेगी नया मुद्दा!

नोटबंदी के तकलीफदेह सच ने यूपी में बीजेपी को अंदर से डरा दिया है.

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यूपी में बीजेपी का चुनावी प्रचार अभियान सांप और नेवले की आंख-मिचौली में तब्दील होता जा रहा है. बीजेपी कभी एक डोर पकड़ती है, तो दूसरा छूट जाता है. दूसरे को पकड़ती है, तो पहला छूट जाता है. नतीजा बीजेपी को यूपी के चुनावी महाभारत में लगातार कथानक बदलने पड़ रहे हैं, जो खासा रिस्की भी हो सकता है.

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नोटबंदी के तकलीफदेह सच ने यूपी में बीजेपी को अंदर से डरा दिया है, इसलिए बीजेपी अपने प्रचार कैंपेन को वापस मक्का-मदीना घूमकर सपा सरकार की कानून व्यवस्था, अपराध, सपा परिवार के सिरफुटौवल पर केन्द्रित करने वाली है. भाषणों में नोटबंदी का जिक्र रहेगा, पर बीजेपी कैंपेन में मुख्य रूप से सपा परिवार का कुशासन, सिरफुटौवल और डर के राज पर जोर रहेगा. नोटबंदी के असर के हिसाब से उससे धीरे-धीरे पीछा छुड़ाया जाएगा.

'और नहीं सहेंगे, डर बना रहता है'

बीजेपी ने अपने कैंपेन में एक फि‍ल्म उतारी है, जो छोटे गांव-शहरों में वीडियो वैन के जरिये दिखाई जा रही है, जिसमें एक युवा महिला कहती है, "डर हमेशा बना रहता है". यानी अखिलेश-मुलायम के राज में वे महफूज नहीं हैं और मायावती के राज में भी डर बना रहता था, इसलिए एक दूसरा व्यक्ति कहता है, "यूपी का बंटाधार, यूपी में नील बट्टे सन्नाटा है".

बीजेपी की राज्यभर में 2000 से ज्यादा लगने वाली होड्रिंग पर लिखा होगा, “अब नहीं सहेंगे. सपा-बसपा को बहुत सह लिया अब नही सहेंगे” लेकिन इन प्रचार कैंपेन में नोटबंदी गायब है. अगर है, तो इस स्‍लोगन में “साथ आएं, परिवर्तन लाएं”

पहले आया विकास का एजेंडा

याद कीजिए इस साल 12 जून को इलाहाबाद में यूपी चुनाव कैंपेन की शुरुआत करते हुए बीजेपी कार्यसमिति में प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष का दिया गया भाषण. प्रधानमंत्री के भाषण का सार था, यूपी की बदहाली, भय और भ्रष्‍टाचार का राज और विकास का एजेंडा. प्रधानमंत्री ने कहा कि 50 साल में जितने काम नहीं हुए हैं, वो पांच साल में कर दिखाएंगे. उन्हें दुख होता है कि यूपी के गांव में बिजली नहीं है, लेकिन अब केन्द्र सरकार की स्कीम के कारण महज 177 गांव बचे हैं, जहां बिजली पहुंचानी बाकी है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सपा सरकार के कानून-व्यवस्था की लचर हालात के चित्रण के लिए कैराना और मथुरा का जिक्र किया और बीजेपी शासित राज्यों की तुलना यूपी से की. तकरीबन 3 महीने बीजेपी का चुनावी कथानक इसके इर्द-गिर्द घूमता रहा.

सर्जिकल स्ट्राइक का कथानक

बीजेपी का विकास पर केन्द्रित तीन महीने का चुनावी कैंपेन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद एकदम बदल गया. निर्णायक सरकार की इमेज और आतंकवाद के रावण पर विजय की कहानी बीजेपी प्रचार कैंपेन का मुख्य थीम बन गया. मजबूत, देशभक्त, निर्णायक मोदी सरकार की इमेज का कोई काट सपा-बसपा को सूझ नहीं रहा था और बीजेपी ने लोगों का मूड स्विंग करने में काफी सफलता पाई.

जातियों के मकड़जाल में फंसी बीजेपी को कैंपेन को जाति से ऊपर उठाने में काफी मदद मिली. लेकिन डेढ़ महीने बाद एक बार फिर कथानक बदला. सर्जिकल स्ट्राइक की जगह नोटबंदी ने ले ली.
नोटबंदी के तकलीफदेह सच ने यूपी में बीजेपी को अंदर से डरा दिया है.
(सांकेतिक फोटो: iStock)

नोटबंदी से डर लगता है जी!

नवंबर के बाद चुनावी फिजां में नोटबंदी छा गया, सब मुद्दे पीछे छूट गए. बीजेपी को लगा कि पीएम ने यूपी के साथ-साथ 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत का इंतजाम कर दिया है. शुरुआत में गरीब और अमीर के बीच का अंतर सरकार की स्क्रि‍प्ट के हिसाब से, कैंपेन के हिसाब से ठीक काम कर रहा था, लेकिन लचर कुप्रबंधन से उपजे लोगों की मुसीबतों ने किए-कराए पर पानी फेर दिया.

प्रधानमंत्री भले ही अभी भी कैशलेस कथानक के साथ मैदान में डटे हैं, लेकिन चुनाव लड़ रही बीजेपी आशंकित से भयभीत होने की तरफ बढ़ रही है, लिहाजा बीजेपी के यूपी कैंपेन कथानक में फिर से तब्दीली की गई है. अब फिर से सपा सरकार की इंटी इनकम्‍बेंसी प्रमुखता पर आ गई है.

लेकिन कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त

अब जो मोदी को जानते हैं, वो मानते हैं कि बीजेपी इस कथानक पर चुनाव नहीं लड़ने वाली. इस कथानक पर गाडी थोड़ी पटरी पर आ सकती है, लेकिन जीतने की संभावना कम हो जाती है, क्योंकि जमीन पर ब्रांड अखिलेश उतना कमजोर भी नहीं है, अगर फिर से 'चाचा-भतीजा पार्ट 2' न शुरू हो जाए.

ऐसे में नोटबंदी के पि‍टने पर एक नए कथानक की गुजाइंश बची है, जो नोटबंदी के फैसले को लागू करने के कुप्रबंधन के कारण दरकती कुशल, अनुभवी सरकार की इमेज को फिर से चट्टान की तरह मजबूत बनाए. चुनाव की तारीखों का ऐलान इस महीने के आखि‍री हफ्तों में होने वाला है...और तैयार रहिए किसी नए कथानक के लिए.

(शंकर अर्निमेष जाने-माने पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार लेखक के हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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