पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने पर एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया है, जिसके जरिए आसानी से डिजिटल ट्रांजेक्शन किया जा सकेगा. इस ऐप का नाम रखा गया है 'भारत इंटरफेस फॉर मनी' मतलब 'भीम' (BHIM).
'कैशलेस' की दिशा में यह ऐप कितना कारगर होगा, यह तो आगे जाकर पता चलेगा. फिलहाल हम यहां ऐप के 'भीम' नाम को अपने नजरिए से डिकोड करने की कोशिश कर रहे हैं.
1. यूपी चुनाव देखकर याद आए भीम
बीजेपी को पहले यह गुमान रहा होगा कि नोटबंदी लागू होने के बाद बड़ी आसानी से ब्लैकमनी खत्म हो जाएगी. जाली नोटों के धंधेबाजों की दुकानें बंद हो जाएंगी. थोड़ी-बहुत परेशानी झेलने के बाद पब्लिक भी सरकार के साहसिक फैसले के गुणगान में जुट जाएगी. अंतत: यूपी और अन्य राज्यों की विधानसभा चुनावों में बीजेपी इसकी फसल काटेगी. पर हालात इस ओर इशारा कर रहे हैं कि अगर बीजेपी ने अपनी रणनीति नहीं बदली, तो पार्टी के अरमानों पर पानी फिर सकता है.
नोटबंदी के बाद यूपी चुनाव मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट होने जा रहा है. ऐसे में अगर ऐप का नाम ‘भीम’ रखा गया है, तो इसमें ताज्जुब की क्या बात है? जिस नाम से बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की याद आती हो, उसके सहारे दलित वोटों में सेंध लगाने का आइडिया बुरा नहीं है!
2. हर मुश्किल काम करे आसान
आज हर किसी को कैशलेस ट्रांजेक्शन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए 'लकी ड्रॉ' जैसी स्कीम लाई जा रही है. पर जहां साक्षरता, बैंकिंग सिस्टम और इंटरनेट जैसी बुनियादी चीजों की हालत ही पतली हो, वहां पूरे देश को डिजिटल ट्रांजेक्शन और कैशलेस इकोनॉमी की ओर धकेलना कोई मामूली काम नहीं है. यह काम तो कोई 'भीम' ही कर सकता है.
3. जुबां पर भी आसानी से चढ़ेगा 'भीम'
अगर आप यह समझते हैं कि 'छोटा भीम' और 'पोगो' सिर्फ बच्चों के बीच ही लोकप्रिय हैं, तो यह भूल हो सकती है. हाल के दिनों में ये नाम सियासी गलियारों में खूब छा रहे हैं. बोझिल माहौल में किसी की चुटकी लेने में इन नामों का खूब इस्तेमाल हो रहा है. ऐप का 'भीम' नाम इस नजरिए से भी बुरा तो नहीं है.
वैसे अब खुद नरेंद्र मोदी 'भीम' का मतलब समझा चुके हैं. ऐसे में अटकलों की ज्यादा गुजाइश रह नहीं गई है.
आज गुजरात की दो शख्सियत के हाथ में सत्ता की बागडोर है. एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह. देश के लिए पॉलिसी तय करने में इन दोनों की भागीदारी साफ तौर पर औरों से कहीं ज्यादा है. जहां तक ऐप की बात है, तो अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 'मोटाभाई' और 'छोटाभाई' की जुगलबंदी क्या रंग लाती है.
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