साल का अंत होते-होते लगता है कि समाजवादी पार्टी के 'दंगल' का नतीजा लोगों के सामने आ जाएगा. अब तक जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे तो यही जाहिर हो रहा है कि पिता-पुत्र के बीच इस 'समाजवादी घमासान' में बाजी सीएम अखिलेश यादव के ही हाथ लगी है.
दरअसल, सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और सीएम अखिलेश यादव, दोनों ने एक ही वक्त पर हाई लेवेल मीटिंग बुलाई है. पार्टी दो फाड़ होना तय है, इसलिए मौजूदा विधायकों के सामने किसी एक खेमे को चुनने का ही विकल्प बचा है. एक तरह से यह सदन के बाहर अनौपचारिक 'शक्ति परीक्षण' का मौका है.
'नंबर गेम' में चित हुए मुलायम?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अखिलेश यादव की मीटिंग में करीब 200 विधायक मौजूद हैं. ये ऐसे विधायक माने जा रहे हैं, जो सीएम को अपना पूरा-पूरा समर्थन देने का तैयार हैं. इनसे समर्थन वाली चिट्ठी पर दस्तखत भी लिए जा रहे हैं.
दूसरी ओर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की बैठक में करीब 55 विधायक मौजूद हैं. जो विधायक इस निर्णायक घड़ी में अखिलेश यादव के साथ खड़े हैं, उनके मुलायम खेमे में लौटने की संभावना फिलहाल न के बराबर दिख रही है. ऐसी स्थिति में अगर कोई बहुत बड़ा फेरबदल नहीं हुआ, तो अखिलेश यादव विजेता के तौर पर उभरते दिखाई पड़ रहे हैं.
अखिलेश के सिर पर बरकरार रहेगा ताज!
आगे की स्थिति पर गौर करें, तो सपा के दो फाड़ होने और दोनों गुटों के दावों के बीच राज्यपाल सदन के भीतर अखिलेश सरकार को बहुमत साबित करने का मौका देंगे. अगर सदन के भीतर बहुमत परीक्षण की स्थिति में अखिलेश यादव बाजी मार लेते हैं, तो पार्टी से निकाले जाने की सूरत में भी सीएम का ताज उनके सिर पर ही बरकरार रहेगा.
किस गुट को होगा 'कम नुकसान'?
पिता-पुत्र और चाचा-भतीजे की लड़ाई के बीच चुनाव में सपा को नुकसान होना तय है. लेकिन अगर अखिलेश के सीएम रहते यूपी में चुनाव होते हैं, तो न केवल उनके समर्थकों, बल्कि आम लोगों में भी यह संदेश जाएगा कि सपा का उनका धड़ा ही 'असली' है. मुलायम की तुलना में प्रदेश का युवा वर्ग अखिलेश की ओर ही जाना पसंद करेगा. ऐसे में पार्टी के विभाजन के बावजूद अखिलेश का पलड़ा दूसरे धड़े से भारी रहेगा.
यहां देखने वाली बात यह होगी कि ‘साइकिल’ चुनाव चिह्न किसके हाथ लगता है. इसमें चुनाव आयोग की भूमिका भी मायने रखती है.
एक बड़ा तथ्य यह भी है कि प्रदेश के गांव-देहात के वोटर 'साइकिल' ही पहचानते हैं. सपा समर्थकों का एक वर्ग लंबे अरसे से मुलायम को ही अपना 'तारनहार' मानता है. ये बातें मुलायम के पक्ष में जाती हैं, लेकिन पार्टी से निकाले जाने पर सारी सहानुभूति अखिलेश को ही मिलना तय है.
मतलब, ऐसी स्थति में मुलायम अगर 'साइकिल' की सवारी करने में कामयाब हो भी गए, तो भी वे शायद अखिलेश के युवा और जोशीले समर्थकों से ज्यादा दूरी न नाप पाएं.
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