''हमारे लोगों में बीजेपी जैसा जुनून नहीं है. हमारे नेता पब्लिक से कट गए हैं. सत्ता के बावजूद लोगों तक हमारी पहुंच नहीं है. हम एक-दूसरे को हराने में लगे हैं.''
ये वेदना है कांग्रेस पार्टी के जनवेदना सम्मेलन में आए प्रशांत की. प्रशांत उत्तराखंड के देहरादून से हैं और अगले महीने की 4 तारीख को उनके राज्य में विधानसभा चुनाव की वोटिंग है. चुनाव की दहलीज पर खड़े एक राज्य के कार्यकर्ता की ये निराशा कांग्रेस पार्टी के बारे में बहुत कुछ कहती है.
नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ देश भर से आए करीब 5 हजार कांग्रेस कार्यकर्ता दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में जमा हुए. मंच पर तो राहुल गांधी समेत तमाम नेताओं ने बेहद जोशिले भाषण दिये लेकिन कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी साफ नजर आ रही थी.
कैमरे पर तो किसी ने दर्द-ए-दिल बेबाकी से बयां नहीं किया, लेकिन अनौपचारिक बातचीत में कार्यकर्ताओं की पीड़ा खुलकर सामने आई.
मुरैना से आए सूबेदार सिंह ने क्विंट हिंदी को बताया:
पार्टी के हालात अच्छे नहीं हैं. संघर्ष के लिए जो उत्साह कार्यकर्ता में होना चाहिए उसकी बेहद कमी है. राहुल गांधी ने नोटबंदी के मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ जो हल्ला बोला है, वो जिला इकाइयों तक नहीं पहुंच पाया है.
अगले महीने उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने हैं. समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस पार्टी के संभावित गठबंधन की अटकलों के चलते कार्यकर्ताओं और नेताओं में भारी असमंजस है.
अकबरपुर जिले की आलापुर सीट से विधायक रह चुके कुंवर अरुण कहते हैं:
कार्यकर्ता गठबंधन नहीं चाहते. हालांकि पार्टी का जो हुक्म तो मानना ही पड़ेगा, लेकिन असमंजस के बादल हटने जरूरी हैं. सितंबर महीने में राहुल गांधी की किसान यात्रा से जो उत्साह बना था उसमें कमी आई है.
मुरादाबाद से टिकट की आस लगाए एक नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि
हम प्रचार में इतना पैसा लगा चुके हैं लेकिन ये पता नहीं है कि गठबंधन के बाद सीट हमारे हिस्से आएगी भी या नहीं.
चेन्नई से सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे शंकर शेखरन का कहना है कि
कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. तमिलनाडु के लोगों का वेलफेयर पार्टी के एजेंडे पर नहीं है, जबकि ऑल इंडिया अन्नाद्रमुक (AIADMK) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) जैसी पार्टियां लोकल सेंटिमेंट को खूब लुभाती है.
इसी तरह हिमाचल प्रदेश से आए कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि
आलाकमान तक अपनी बात पहुंचाना नामुमकिन है. हम सम्मेलन में आए तो हैं लेकिन हमें पता है कि किसी बड़े नेता से हमारी बात तक नहीं हो पाएगी.
तो क्या देश की मुख्य विपक्षी पार्टी नोटबंदी के खिलाफ देशव्यापी मोर्चा निराश कार्यकर्ताओं के साथ खोलना चाहती है. बात ऐसी भी नहीं है. नेता और कार्यकर्ता राहुल गांधी में उम्मीद की किरण देखते हैं और चाहते हैं कि जल्द से जल्द उन्हें कांग्रेस पार्टी की कमान सौंपी जाए.
राजस्थान के बाड़मेर जिले से आए निर्मल दास कहते हैं कि
राहुल गांधी को फौरन राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना चाहिए. आम कांग्रेसी उनका इंतजार कर रहा है. उनके नेतृत्व में हमारी लड़ाई को और धार मिलेगी.
लुधियाना से आए राजन शर्मा कहते हैं कि
कांग्रेस के तमाम कार्यकर्ता और देश भर के लोग 2019 में राहुल जी को देश का प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं. हम इसके ले जी-जान से काम कर रहे हैं.
कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी की ताजपोशी जल्द होना तय है. हाल के दिनों में राहुल गांधी ने केंद्र की एनडीए सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ जिस आक्रामक अंदाज में हमला बोला है वो उनकी पुरानी छवि से काफी अलग रहा है. कार्यकर्ता राहुल के इसी अंदाज में उम्मीद की किरण तलाश रहे हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि इस ऊर्जा को सही दिशा देकर कैसे आम लोगों तक पहुंचाया जाए.
साफ है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए तगड़ी मरम्मत की जरूरत है.
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