1. शिवसेना की दहाड़
शिवसेना बीएमसी चुनाव में पार्टी का परचम लहराने में कामयाब नहीं हो पाई, लेकिन मुंबई निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है. इसमें 200 शाखाओं के नेटवर्क और मराठी वोटों का भावुक ध्रुवीकरण इसमें काफी हद तक काम आया.
इन नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बीएमसी चुनावों में असली मुद्दों पर भावुकता भारी है. शिवसेना ने मुश्किल से ही इस चुनाव में अपने काम के बारे में बात की है.
2. उद्धव की जीत
मुंबई में शिवसेना की जीत का श्रेय पार्टी चीफ उद्धव ठाकरे को जाता है. उनकी रणनीति और माइक्रो प्लानिंग इसमें काम आई. वो पार्टी को बुरे समय में संभाल रहे हैं और फिर भी ऐसी सफलता हासिल की.
3. राज्य सरकार पर प्रभाव
मुंबई की जीत शिवसेना के नेताओं और उसके कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास भरेगी. इससे बीजेपी के खिलाफ उसकी आवाज और बुलंद होगी. शिवसेना राज्य में बीजेपी गठबंधन से अलग नहीं होगी लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में वो ऐसा करने के बारे में जरूर सोच सकती है.
4. फडणवीस आ चुके हैं
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कद अब और बढ़ गया है. उन्होंने मुंबई में पिछली बार के मुकाबले जीती सीटों की संख्या दोगुनी कर दी है. बीजेपी ने नागपुर और अकोला में तो सीट बचाए रखी साथ ही पुणे और नासिक में भी बाजी मारी है.
इन चुनावों में कैंपेन के दौरान पीएम मोदी के नाम और उनकी छवि का इस्तेमाल नहीं किया गया था. सारा दारोमदार फडणवीस पर ही रहा.
5. बीजेपी है नंबर 1
बीजेपी ने महाराष्ट्र में अपने आप को नंबर 1 पार्टी बना लिया है. बीजेपी ने 2014 में मोदी लहर में विधानसभा चुनाव जीता था, लेकिन अब यह साबित हो गया है कि इसने जमीन पर भी अपनी जड़ें जमा रखी हैं.
6. कांग्रेस से छूटे शहर
मुंबई, पुणे और अन्य शहरों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई. केवल जिला परिषद चुनाव में ही कांग्रेस अच्छा कर पाई है. बीजेपी और शिवसेना की लड़ाई के बीच कांग्रेस पार्टी को घाटा ही हुआ है.
7. पवार गढ़ नहीं बचा पाए
शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी अपना गढ़ पुणे बचाने में कामयाब नहीं रही और अन्य शहरों में भी खास प्रदर्शन नहीं कर पाई. एनसीपी का प्रदर्शन सिर्फ पुणे के पास पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगम और पश्चिमी महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके में ही बेहतर रहा. इस नुकसान के बाद पार्टी को अपनी जमीन पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.
8. सेक्युलर स्पेस कम हो रहा है
राज्य में बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन काम कर रहा है, लेकिन दोनों की कलह भी सामने है. यहां एेसा लगता है कि जैसे बीजेपी सत्ताधारी पार्टी हो और शिवसेना विपक्ष. इसलिए पिछले दो सालों से सेक्युलर और लिबरल स्पेस सिकुड़ता जा रहा है. अब कांग्रेस और एनसीपी भी अलग होकर चुनाव में उतरने का सोचेंगी.
9. नहीं चला राज का राज
एमएनएस पांच साल पहले शहरी क्षेत्रों में बड़ी पार्टी थी, लेकिन इस बार उसका सूपड़ा साफ होता दिखाई दिया. पार्टी की नासिक में सिर्फ 3 सीटें ही हैं, जहां वह पांच साल पहले राज किया करती थी. इस नतीजे के बाद राज ठाकरे को दोबारा स्थिति पर विचार करने की जरूरत है.
10. राष्ट्र की राजनीति पर प्रभाव
इस चुनाव में करीब 2 करोड़ वोटरों ने अपना फैसला दिया है. इससे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर असर पड़ना तय है. ये जाहिर है कि इससे बीजेपी का आत्मविश्वास जरूर बढ़ेगा. बीजेपी अब पूरे देश में स्थानीय चुनावों को भी ऐसे ले रही है जैसे ये विधानसभा के चुनाव हों.
इस चुनाव के नतीजे ने कांग्रेस को ये सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया है कि वह जल्द ही डैमेज कंट्रोल प्लान लेकर आए.
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