ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के बीजू पटनायक हवाई अड्डे पर उतरते ही बीजेपी के किसी बड़े आयोजन का अहसास होने लगता है. टर्मिनल के भीतर ही बीजेपी दिग्गजों के मुस्कुराते चेहरों वाले होर्डिंग्स तमाम आने वालों का स्वागत कर रहे हैं.
भुवनेश्वर पहुंचे नेताओं को फूल-मालाएं भेंट की जा रही हैं. कमल निशान वाले बड़े-बड़े झंडों के साथ कार्यकर्ताओं की भीड़ बीजेपी जिंदाबाद के नारे लगा रही है. वीआईपी मूवमेंट के तहत भारी तादाद में पुलिस की मौजूदगी है. और, ये तमाम तैयारी है 15-16 अप्रैल को होने वाली बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की.
भुवनेश्वर से 25 किलोमीटर दूर खुर्दा शहर के धवलेश्वर मंदिर के पुजारी चंदनाथ राणा अपनी पूरी मंडली के साथ हवाई अड्डे पर मौजूद हैं.
फिलहाल वो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के स्वागत में वहां हैं, लेकिन गले में पहने बीजेपी के पटके का कमल फूल मुझे दिखाते हुए उन्होंने कहा
ये पद्म का फूल भगवान के कदमों में चढ़ाया जाता है. बीजेपी पर भगवान की कृपा है. (नरेंद्र) मोदी हमारा गुरु है. अगले चुनाव में बीजेपी की सरकार बनेगी.
मोदी के भव्य स्वागत की तैयारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार दोपहर करीब साढ़े तीन बजे भुवनेश्वर पहुंचेगे. उनके स्वागत की भव्य तैयारियां की गई हैं. हालांकि पार्टी रोड-शो कहने से बच रही है लेकिन ये वैसा ही है जैसा बनारस की वोटिंग से पहले मोदी ने वहां किया था.
बीजेपी के एक नेता ने बताया कि हवाई अड्डे से कार्यकारिणी के जनता मैदान तक कार्यकर्ताओं और लोगों की भीड़ रहेगी और एसयूवी पर सवार मोदी हाथ हिलाते हुए उनके बीच से निकलेंगे. शहर की तमाम सड़कें पहले ही बीजेपी के झंडों-बैनरों और मोदी-शाह के आदमकद कट आउट्स से पाट दी गई हैं.
कार्यकारिणी का एजेंडा
भुवनेश्वर में हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी को मिली बंपर जीत के बाद पहली बड़ी राजनीतिक बैठक है.
इसमें पीएम मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा पार्टी के तमाम दिग्गज, केंद्रीय मंत्री, राज्यों के पार्टी प्रमुख, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सरीखे ‘मार्गदर्शक’ और 13 बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे. बैठक का नारा है- लक्ष्य अंत्योदय, प्रण अंत्योदय, पथ अंत्योदय.
ओडिशा से आने वाले केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि
ओडिशा अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गरीब-कल्याण नीतियों की प्रयोगशाला है. प्रधानमंत्री लोकल बॉडी चुनावों में दिए गये समर्थन के लिए लोगों का धन्यवाद करने यहां आ रहे हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 के सोश्यो-इकॉनोमिक एंड कास्ट सेंसस (SECC) के आधार पर केंद्र ने राज्यों की जो रैंकिंग की है, उसमें ओडिशा देश का सबसे गरीब राज्य है.
कार्यकारिणी में सूबे की इसी दुखती रग को पार्टी के राजनीतिक एजेंडे से जोड़ा जाएगा. बीजेपी के एक नेता ने कहा कि कार्यकारिणी के दौरान गरीबों से जुड़ी योजनाएं और कार्यक्रम ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का सार रहने वाले हैं.
अपने भुवनेश्वर दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो सौ साल पहले साल 1817 में स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के योद्धा कहे जाने वाले पाइका विद्रोहियों के 16 परिवारों से भी मिलेंगे.
आखिर क्यों चुना भुवनेश्वर
राष्ट्रीय कार्यकारिणी को चुनने से पीछे एक राजनीतिक संदेश है. और वो है पूर्वी और तटीय राज्यों में बीजेपी का प्रभाव बढ़ाना जहां फिलहाल उसकी मौजूदगी ना के बराबर है. बीजेपी यूं तो बीजू जनता दल के साथ साल 2000 से 2009 तक ओडिशा सरकार में शामिल रही है लेकिन अपनी राजनीतिक जड़ें वो यहां कभी नहीं जमा पाई थी.
2009 के विधानसभा चुनावों में नवीन पटनायक की बीजेडी ने ओडिशा की 147 सीटों में से 103 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी को सिर्फ 6 पर जीत हासिल हुई. इसी तरह 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेडी ने 117 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि बीजेपी को मिली सिर्फ 10. उसी साल हुए लोकसभा चुनावों की मोदी लहर भी उड़ीसा में पूरी तरह गायब दिखी थी. सूबे की 21 लोकसभा सीटों में से 20 बीजेडी ने जीती जबकि बीजेपी ने सिर्फ 1.
लेकिन इस साल हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में बीजेपी ने अपने प्रदर्शन से सबको हैरान कर दिया. जिला परिषद की 851 सीटों में से 294 सीटें जीतकर बीजेपी ने कांग्रेस से नंबर दो की कुर्सी छीन ली. बीजेडी ने 467 सीटें जीती जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 60.
2019 का ऑपरेशन उड़ीसा
भुवनेश्वर की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बीजेपी की लुक-ईस्ट पॉलिसी का हिस्सा है. स्थानीय चुनाव नतीजों से उत्साहित पार्टी 2019 के विधानसभा चुनावों में सरकार बनाने का लक्षय लेकर चल रही है. सूबे में 17 साल से राज कर रही बीजेडी के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर और पार्टी की अंदरूनी झगड़ों से भी बीजेपी को बल मिला है.
इसके अलावा बीजेपी ने 120 लोकसभा सीटों की पहचान की है जिन्हें वो 2014 जीत नहीं पाई लेकिन 2019 में जीतना चाहती है. इनमें से ज्यादातर सीटें ओडिशा समेत पूर्वी और तटीय राज्यों में ही हैं. यानी कार्यकारिणी में 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भी नीतियों को अंजाम दिया जाएगा.
वैसे दिलचस्प बात है कि बीजेपी ने बीस साल पहले 1997 में भुवनेश्वर में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की थी. उसके करीब तीन साल बाद साल 2000 में बीजेडी सरकार का हिस्सा बनी और नौ साल तक साथ रही. 2019 में फिर सूबे में चुनाव हैं और मौजूदा कार्यकारिणी में बीजेपी उसी बीजेडी को सत्ता से हटाने के लिए ‘ऑपरेशन ओडिशा’ की रणनीति तय करेगी.
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