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जरा गौर से देखो गुजरात! अब बिहार बदल रहा है

CM नीतीश ने सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब बिहार को सामाजिक बदलाव की राह पर ला खड़ा किया है. 

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हाल के कुछ बरसों में राजनीति में विकास का नारा बहुत जोर-शोर से उछाला जाता रहा है. लेकिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने जो राह पकड़ी है, उसे आप टिकाऊ विकास (Sustainable Development) की राजनीति कह सकते हैं. शराबबंदी इसी राजनीति की एक मजबूत कड़ी साबित हो सकती है.

रोड रोलर के नीचे चकनाचूर होती हजारों-हजार शराब की बोतलें कभी गुजरात में खूब देखी जाती थीं, पर अब बिहार में भी ऐसा हो रहा है. साफ-सुथरी सियासत के जरिए अपनी इमेज चमकाने में जुटे सीएम नीतीश ने सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब बिहार को सामाजिक बदलाव की राह पर ला खड़ा किया है.

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इस मसले पर विस्‍तार से चर्चा करने से पहले शराबबंदी से प्रदेश को होने वाले राजस्‍व में नुकसान पर एक नजर डालते हैं:

रेवेन्‍यू में गिरावट, पर मनोबल ऊंचा

पिछले साल 1 अप्रैल से पूर्ण शराबबंदी लागू करते वक्‍त नीतीश के मन में इस बात को लेकर आशंका जरूर रही होगी कि इससे रेवेन्‍यू में कितनी बड़ी कमी आएगी. फिर भी अपने निर्णय पर टिके रहकर उन्‍होंने जता दिया कि अब पीछे मुड़कर देखने का वक्‍त नहीं.

प्रदेश के वित्तमंत्री अब्‍दुल बारी सिद्दीकी ने दिसंबर, 2016 में विधानसभा में जो रिपोर्ट पेश की थी, उसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2016-17 की पहली छमाही में टैक्‍स से आने वाले राजस्‍व में 16.23 फीसदी की कमी आई. 2015-16 की पहली छमाही में टैक्‍स से 11,419 करोड़ राजस्‍व की प्राप्‍त‍ि हुई थी, जो 2016-17 की उसी अवध‍ि में घटकर 9,565 करोड़ रह गई.
CM नीतीश ने सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब बिहार को सामाजिक बदलाव की राह पर ला खड़ा किया है. 
(फोटो साभार: Twitter/@NitishKumar)
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एक तथ्‍य यह है कि पहले शराब पर वैट और एक्‍साइज ड्यूटी से प्रदेश को करीब 5000 करोड़ मिलते थे. हालांकि मुख्‍यमंत्री का दावा है कि 2016-17 के दौरान का राजस्‍व करीब-करीब इसके पिछले वित्त वर्ष के समान ही रहा.

मुख्‍यमंत्री कई मौकों पर ये बात दोहराते आ रहे हैं कि शराबबंदी की वजह से पहले 5000 करोड़ रुपये के राजस्‍व के नुकसान की आशंका जताई जा रही थी, जबकि अब लोगों की जेब से 10,000 करोड़ रुपये शराब पर बहने से बच जा रहे हैं. अब लोग ये रुपये जीवन स्‍तर सुधारने पर खर्च कर रहे हैं.

इन चीजों की खपत में बढ़ोतरी का दावा

सरकार का दावा है कि शराब की बिक्री बंद होने के बाद दूध और इससे बने प्रोडक्‍ट की खपत कई गुना बढ़ गई है. इनमें लस्‍सी, मट्ठा, रसगुल्‍ला, गुलाब जामुन, पेड़ा आदि शामिल हैं. और जिन-जिन चीजों की बिक्री बढ़ने का दावा किया जा रहा है, उनकी लिस्‍ट काफी लंबी है:

शहद, बिस्किट, मेवा, फर्नीचर, होजियरी, रेडीमेड गारमेंट, सिलाई मशीन, हैंडीक्राफ्ट, महंगी साड़ियां, ट्रैक्टर, बाइक, ऑटो, कारें आदि

CM नीतीश ने सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब बिहार को सामाजिक बदलाव की राह पर ला खड़ा किया है. 
(फोटो साभार: Twitter/@NitishKumar)
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क्‍या कहते हैं शराबबंदी के आंकड़े

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में पिछले साल अप्रैल में लागू पूर्ण शराबबंदी के बाद से अब तक:

  • 11 लाख, 9 हजार लीटर देशी-विदेशी शराब जब्‍त
  • अब तक 28 जिलों में शराब नष्‍ट, बाकी जिलों में प्रक्रिया जारी
  • शराबबंदी में लापरवाही के मामले में 150 पुलिस अधिकारियों और 112 पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई,
  • 12 पुलिसकर्मी सेवा से बर्खास्त
  • शराबबंदी से जुड़े कानून का उल्‍लंघन करने पर 45 हजार से ज्‍यादा लोग गिरफ्तार

एक रोचक तथ्‍य यह है कि राज्य में जब्त और पुलिस मालखाना में रखे करीब 9 लाख लीटर से अधिक शराब के चूहों द्वारा गटकने की खबरें सामने आईं. इस बारे में मुख्यमंत्री ने कहा:

बिहार को बदनाम करने की कोशिश की गई. हमने पकड़ी गई शराब को सार्वजनिक रूप से नष्ट करने का निर्देश दिया. जब्त 9 लाख लीटर शराब को नष्ट किया जा चुका है. हम किसी को छोड़ने वाले नहीं हैं.
CM नीतीश ने सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब बिहार को सामाजिक बदलाव की राह पर ला खड़ा किया है. 
(फोटो साभार: Twitter/@NitishKumar)
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बिहार में शराबबंदी के बाद से सड़क दुर्घटनाओं में करीब 20% की कमी आई है

शराबबंदी के बाद क्राइम की स्‍थ‍िति

तथ्‍य बताते हैं कि शराबबंदी से बाद से प्रदेश में हत्‍या, डकैती जैसे अपराधों में कमी आई है. हालांकि अपहरण के मामले कुछ बढ़े हैं.

CM नीतीश ने सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब बिहार को सामाजिक बदलाव की राह पर ला खड़ा किया है. 
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राजनीति में सामाजिक बदलाव का दौर!

खुद सीएम नीतीश कुमार का मानना है कि मानसिक, वैचारिक और सामाजिक परिवर्तन से बड़ी कोई चीज नहीं है. उनका कहना है कि बिहार राजनीतिक परिवर्तन का केंद्र तो पहले से रहा है, पर यहां सामाजिक आंदोलनों की कमी रही है. उन्‍होंने ये भी साफ जता दिया है कि प्रदेश में दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी जोरदार अभियान चलाया जाएगा. गंगा की सफाई भी उनके एजेंडे में टॉप पर है.

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जो सही है, सो सही है...

याद कीजिए, नीतीश ने कुछ अन्‍य पार्टियों के रुख के उलट मोदी सरकार की नोटबंदी का जोरदार समर्थन किया था. उन्होंने केंद्र पर बेनामी संपत्ति पर चोट करने के लिए दबाव भी बनाया है. जब विपक्ष के कई नेता पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांग रहे थे, तो नीतीश सेना की पीठ थपथपा रहे थे.

ऐसे में ये माना जा सकता है कि बिहार अब आरोप-प्रत्‍यारोप की राजनीति को विराम देकर खुद को बदलने को तैयार है. भले ही भौगोलिक और आर्थ‍िक स्‍थ‍िति की वजह से वह गुजरात जैसा न बन सके, लेकिन उस जैसा बनने का इरादा तो अब साफ झलकने लगा है.

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