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नीरज चोपड़ा ने 2024 पेरिस ओलंपिक में सिल्वर मेडल के अलावा भी बहुत कुछ जीता है

2024 पेरिस ओलंपिक में, नीरज चोपड़ा जैवलिन थ्रो में दूसरे लेकिन कई अन्य पहलुओं में पहले स्थान पर रहे.

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एक जैवलिन (भाला) कितना पावरफुल हो सकता है?

आज से लगभग 2,500 साल पहले, यह अत्यधिक पावरफुल हो सकता था. प्राचीन ग्रीस में, एथेंस और स्पार्टा ने पेलोपोनेसियन युद्ध के दौरान 'पेल्टास्ट्स' - भाला फेंक में निपुण पैदल सेना - का उपयोग किया था. वहीं प्राचीन रोम में, जूलियस सीजर की सेनाओं ने गॉल को जीतने के लिए भाले का इस्तेमाल किया था.

यह वीकेंड वाली रात में देर तक टीवी पर किसी डॉक्यूमेंट में देखने के लिए फैंसी लग सकता है.

लेकिन, सवाल ये है कि एक थका देने वाली वीकडे या कहें गुरुवार की देर रात कोई भाला या जैवलिन कितना पावरफुल हो सकता है?

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वैसे तो इसका वजन महज 800 ग्राम और लंबाई करीब 2.70 मीटर थी. यदि इसे एक पर्फेक्ट एंगल पर, 36° के आसपास सही पावर और स्पीड के साथ थ्रो किया जाए, तो यह लगभग 100-110 किलोमीटर प्रति घंटे की गति प्राप्त कर सकता है, और फेंकने वाले से बहुत दूर जा सकता है.

यह सब तो हुआ इसके पीछे की विज्ञान. लेकिन 2024 पेरिस ओलंपिक (Paris Olympics 2024) में मेंस जैवलिन थ्रो के फाइनल में, उस 800 ग्राम के जैवलिन ने 1.4 अरब उम्मीदों का वजन उठाया.

एक ऐसे देश के लिए जिसने पिछले एक-दो हफ्तों में सामूहिक रूप से निराशा के कई क्षणों का अनुभव किया है, एक जैवलिन किसी गहरी चीज का प्रतीक बना: हमारी आशा का. और इसके शीर्ष पर थे नीरज चोपड़ा - भारत के बेजोड़ एथलेटिक्स चैंपियन - जो एक और ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने की आकांक्षा रखते थे.

ऐसा हुआ नहीं. तीन साल पहले टोक्यो में 87.58 मीटर का थ्रो उन्हें गोल्ड मेडल दिलाने के लिए काफी था, लेकिन पेरिस में उनका 89.45 मीटर का बेस्ट थ्रो सिल्वर मेडल दिला सका.

नीरज ने वह किया जो वह कर सकते थे, अरशद नदीम ने वह किया जो कभी किसी ने नहीं किया

पाकिस्तान के अरशद नदीम ने ओलंपिक में वह किया जो पहले किसी भी जैवलिन थ्रोअर ने नहीं किया था - अपने दूसरे प्रयास में 92.97 मीटर थ्रो दर्ज किया. अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया होता, तो भी वह आखिरी प्रयास में 91.79 मीटर थ्रो के साथ गोल्ड मेडल जीत चुके होते.

यह पहली दफा नहीं है जब नदीम ने रिकॉर्ड बनाया है. 2022 कॉमनवेल्थ खेलों में अपने 90.18 मीटर थ्रो के साथ, वह 90 मीटर का आंकड़ा पार करने वाले दक्षिण एशिया के पहले जैवलिन थ्रोअर बन गए थे.

नदीम हमेशा पोडियम पर जगह बनाने की दौड़ में थे, लेकिन फाइनल में उन्होंने जो हासिल किया, उसकी शायद उम्मीद नहीं थी. क्योंकि, जब से उन्होंने 90 मीटर के मार्क को पार किया था, वो अपने करियर में चोटों से जूझते रहे थे.

2023 में उनका सर्वश्रेष्ठ थ्रो महज 87.82 मीटर था और क्वालीफाइंग राउंड में उनका प्रयास 86.59 मीटर दर्ज किया गया था. अपने रन-अप में गलती की वजह से, नदीम ने फाइनल के अपने पहले प्रयास में गलती कर दी. फिर, अपने दूसरे प्रयास में उनका रन-अप निडर था, वो उन्होंने अपने थ्रो के साथ इतिहास रच दिया.

लगभग तय दिखने लगा कि नदीम के दूसरे प्रयास के बाद नीरज के लिए अपना ताज बरकरार रखने की उम्मीदें खत्म हो गईं. फिर भी, एक सिल्वर मेडल जीतना उन्हें लगातार 2 ओलंपिक में मेडल जीतने वाला पहला भारतीय ट्रैक और फील्ड एथलीट बनाता है.

नीरज ने आज केवल एक सिल्वर मेडल ही हासिल नहीं किया

क्या नीरज चोपड़ा ने केवल एक सिल्वर मेडल ही हासिल किया है? शायद नहीं.

तो, उनकी अन्य और शायद बड़ी उपलब्धियां क्या थीं?

जो लोग भारत के ओलंपिक दल पर करीब से नजर रख रहे थे, उनके लिए यह पेरिस ओलंपिक हाल की किसी भी ओलंपिक से अधिक दुख से भरा था- इसलिए नहीं कि एथलीटों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि इसलिए क्योंकि वे मेडल जीतने के काफी करीब आ गए थे, लेकिन खाली हाथ घर लौट आए. उनके और हमारे जेहन में एक ही सवाल गूंज रहा है- अगर वैसा हो गया होता तो...

एक विवादास्पद निर्णय के कारण निशांत देव मेडल से चूक गए, विनेश फोगाट ने 100 ग्राम अधिक वजन के कारण अपना गोल्ड या सिल्वर मेडल खो दिया, और सैखोम मीराबाई चानू 1 किलोग्राम से पोडियम से चूक गईं.. जब यह हो रहा था तब देश ने सामूहिक रूप से मन ही मन प्रतिज्ञा की - अब ओलंपिक नहीं देखेंगे, फिर कभी उम्मीद नहीं करेंगे, फिर कभी सपने नहीं देखेंगे.

लेकिन फिर भी देश ने ऐसा किया, ओलंपिक देखा, उम्मीद की, सपने देखें. 5 करोड़ लोग रात के 1 बजे लाइव देख रहे थे. यह सिल्वर मेडल से भी बड़ी उपलब्धि है.

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हर दूसरा एथलीट सिल्वर जीत सकता है. नीरज चोपड़ा केवल गोल्ड से चूक सकते हैं..

नीरज के इवेंट से केवल चार घंटे पहले, भारतीय मेंस हॉकी टीम ने स्पेन को 2-1 से हराकर ब्रॉन्ज मेडल जीता था, जिससे देश खुशी से झूम उठा था. इससे पहले मनु भाकर, सरबजोत सिंह और स्वप्निल कुसाले भी ऐसा कर चुके थे.

लेकिन सिल्वर मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा की बात अलग थी. उनकी मुस्कुराहट उत्साह से कम और जो हो सकती थी उससे अधिक थी. यह वही मुस्कान थी जो देश के चेहरे पर थी. एक देश जो मेडल्स के लिए इतना उत्सुक है कि ब्रॉन्ज की जीत भी क्षण भर में क्रेजी कर देता है, उसने जब देखा कि नीरज पोडियम के बीच में नहीं, बल्कि बाईं ओर खड़े हुए, तो इसके लिए दिल को मनाने में कुछ वक्त लगा.

किसी भी अन्य एथलीट के लिए, सिल्वर मेडल को युगों-युगों तक एक उपलब्धि कहा जाएगा. बीजिंग में गोल्ड मेडल जीतने के बाद अभिनव बिंद्रा लंदन में फाइनल राउंड के लिए भी क्वालिफाई नहीं कर सके. कपिल देव ने 1983 विश्व कप की तुलना में 1987 विश्व कप में आधे से भी कम विकेट लिए थे. और इसका उनकी विरासत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

लेकिन नीरज को पता था और देश को भी, कि एक गोल्ड मेडल हाथ से निकल गया है. और ठीक इसी वक्त से, इसे फिर से पाने का मिशन शुरू होगा. वह भूख शायद सिल्वर मेडल से भी बड़ी उपलब्धि है.

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मजबूत करते भारत-पाक भाईचारा

पेरिस में गोल्ड जीतने के बाद नदीम उत्सुक फोटोग्राफरों से घिरे हुए थे. हालांकि, बुडापेस्ट में 2023 विश्व चैंपियनशिप में, उन्हें अपने सिल्वर का जश्न साइड में गुमसुम होकर मनाना पड़ता, अगर उस समय के गोल्ड मेडल विजेता नीरज उन्हें फोटो सेशन में शामिल होने के लिए नहीं कहते.

अब नदीम के पाकिस्तान लौटने पर उन्हें इनामों से नवाजा जाएगा. गायक अली जफर पहले ही 1 मिलियन पाकिस्तानी रुपए पुरस्कार की घोषणा कर चुके हैं. लेकिन याद रहे, कुछ महीने पहले ही, अरशद को ओलंपिक के लिए जैवलिन खरीदने के लिए संघर्ष करना पड़ा. जब यह बात नीरज को पता चली तो उन्होंने पाकिस्तानी सरकार से मदद की गुहार लगाई.

जैवलिन थ्रो की दुनिया में, भारत-पाक का मुकाबला अन्य खेलों की तरह दुश्मनी पैदा नहीं करता है. कोई भी मुकाबला हो, यह भाईचारे को बढ़ावा देती है, जिसमें अपने बेटे को गोल्ड मेडल हारते हुए देखने के तुरंत बाद, नीरज की मां सरोज देवी कहती हैं, 'अरशद भी हमारा बेटा है,' वहीं उनके पिता सतीश कुमार कहते हैं, 'खेल देश को एकजुट करता है, इसने भारत और पाकिस्तान को एकजुट किया है .

एक ऐसे खेल के लिए जिसमें ऐतिहासिक रूप से यूरोप का वर्चस्व रहा है, इससे पहले ऐसा कोई मौका नहीं आया जब मेंस जैवलिन इवेंट के ओलंपिक पोडियम में कोई यूरोपीय शामिल न हो. पेरिस में ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स ने ब्रॉन्ज मेडल जीता है.

नदीम ने प्रेरणा के लिए एक बार नीरज के वीडियो देखे थे. अब, वे पोडियम पर एक साथ खड़े थे. स्टेडियम के स्पीकर पर कौमी तराना बजाया गया या जन-गण-मन बजाया गया, यह उतना अहम नहीं है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्टेड डी फ्रांस में भारतीय और पाकिस्तानी, दोनों झंडे फहराए गए.

इसे भी आप नीरज की उपलब्धियों में जोड़ लीजिए.

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