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Tokyo Olympics: यूट्यूब से कोचिंग, चोट और गरीबी से जंग, नीरज चोपड़ा की कहानी

Tokyo Olympics में पदक के प्रबल दावेदार एथलीट नीरज चोपड़ा ने इंजरी के बाद स्वर्णिम प्रदर्शन किया है.

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टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में भाला फेंक स्पर्धा (Javelin throw) में एथलीट (Athlete) नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) के भाले से पदक आने की काफी उम्मीदे हैं. नीरज से पदक की आशा इसलिए है, क्योंकि जिस तरह से वे खुद का नेशनल रिकॉर्ड तोड़ते हुए नए कीर्तिमान स्थापित कर आगे बढ़ रहे हैं वह अपने आप में एक अचीवमेंट है. पानीपत से टोक्यो तक का सफर नीरज ने कई चुनौतियों को पार करते हुए तय किया है. उन्होंने चोट और गरीबी जैसी चुनौतियां का सामना करते हुए कई रिकॉर्ड्स अपने नाम किए हैं. एक नजर नीरज के संघर्ष पर...

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किसान के बेटे नीरज ने सीनियर्स को देखकर उठाया था भाला

पानीपत, हरियाणा से आने वाले नीरज किसान परिवार से संबंध रखते हैं. जब उनके मन में इस खेल से जुड़ने की ललक जागी थी तब वे इसका नाम तक नहीं जानते थे. दरअसल नीरज को बचपन से खेलने-कूदने का शौक था. एक बार अपने दोस्तों के साथ घूमते हुए वे पानीपत के शिवाजी स्टेडियम जा पहुंचे. जहां उन्होंने अपने कुछ सीनियर्स को जेवलिन थ्रो यानी भाला फेंकते हुए देखा और इसके बाद उन्होंने खुद भाले को उठा लिया. जब नीरज ने पहली बार जेवलिन थ्रो किया तो उन्हें लगा कि यह खेल उनके लिए ही है और यहां से वे इसमें आगे बढ़ने के बारे में सोचने लगे.

इस खेल में नीरज की राह आसान नहीं थी राह

नीरज ने इस खेल में आगे बढ़ने के लिए “भाला” तो उठा लिया था, लेकिन उनके लिए राह आसान नहीं थी. परिवार की आर्थिक स्थित ठीक नहीं थी. इनका संयुक्त परिवार काफी बड़ा था, उसमें लगभग 17 सदस्य थे. ऐसे में एक-डेढ़ लाख रुपये का भाला (जेवलिन) नीरज को आसानी नहीं मिलने वाला था. चूंकि नीरज का मन इसमें रम गया था, इसलिए उनके पिता सतीश और चाचा भीम सिंह चोपड़ा ने सात हजार रुपये जोड़कर उन्हें सस्ता भाला दिलाया. इस सस्ते भाले को ही नीरज ने अपना प्रमुख हथियार माना और इससे हर दिन घंटों (लगभग सात-आठ घंटे) अभ्यास करने लगे.

जब यूट्यूब को बनाया कोच

नीरज के खेल कॅरियर में एक दौर ऐसा भी आया जब उनके पास महीनों तक कोई कोच नहीं था. ऐसे में भी नीरज ने हार नहीं मानी क्योंकि खेल के लिए झुकना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था. जहां चाह वहां राह वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए नीरज ने नीरज ने यूट्यूब का सहारा लिया और वहीं से वीडियो देखते हुए अपनी ट्रेनिंग जारी रखी. वे इससे वीडियो देखकर घंटों प्रैक्टिस करते रहते थे.

इंजरी और कोविड-19 ने खेल से रखा दूर, दिखाया आर्मीमैन वाला आत्मविश्वास

नीरज चोपड़ा के लिए साल 2019 बेहद मुश्किलों भरा रहा था. पहले वह कंधे की चोट से जूझते रहे और जब फिट हुए, तो कोरोना महामारी के कारण नेशनल और इंटरनेशनल प्रतियोगिताएं एक के बाद एक कर रद्द हो गईं. लेकिन आर्मी में अपनी सेवाएं देने वाले नीरज ने जिस तरह से स्वर्णिम वापसी की वह काबिले तारीफ है. चाेट के बाद अर्जित हुई इस सफलता के पीछे उनके आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय का अहम योगदान रहा है.

ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने से पहले कोहनी की चोट के कारण नीरज को सर्जरी भी करानी पड़ी.

साई और टारगेट ओलिंपिक पोडियम कार्यक्रम (TOPS) द्वारा आयोजित वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीरज ने कहा है कि "पिछले दो वर्षों से मैं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगि​ताओं में नहीं खेल पाया हूं. मुझे लगता है कि मुझे इन चीजों की सख्त जरूरत है. मेरा 2019 का साल चोट के कारण बर्बाद हुआ और अब 2020 और 2021 कोविड-19 के कारण बर्बाद चला गया."
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2016 वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में 86.48 मी के रिकॉर्ड के साथ नीरज ने गोल्ड मेडल जीता था. महज 18 साल की उम्र में नीरज ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी परचम लहराया. तब उन्होंने अंडर 20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में रिकॉर्ड तोड़ते हुए उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था.

18 वर्षीय नीरज चोपड़ा ने 82.23 मीटर के राष्ट्रीय-रिकॉर्ड की बराबरी करते हुए गुवाहाटी में आयोजित 2016 दक्षिण एशियाई खेलों में काफी नाम कमाया था.

उपलब्धियां और भी हैं

नीरज ने वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप, एशियन चैंपियनशिप, साउथ एशियन गेम्स, एशियन जूनियर चैंपियनशिप, वर्ल्ड चैंपियनशिप, डायमंड लीग और एथलेटिक्स सेंट्रल नॉर्थ ईस्ट जैसे बड़े टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया और कई मेडल जीते हैं. कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में गोल्‍ड जीतने के बाद नीरज ने में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है.

  • दोहा डायमंड लीग में नीरज ने 87.43 मीटर के साथ नेशनल रिकॉर्ड बनाया था.

  • सोटेविले एथलेटिक्स मीट में 85.17 मीटर की दूरी नापकर स्वर्ण पदक जीता.

2018 एशियाई खेलों के दौरान जकार्ता में स्वर्ण पदक जीतकर नीरज चोपड़ा उम्मीदों पर खरे उतरे थे.उन्होंने तीसरे प्रयास में 88.06 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम करते हुए देश के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया था.

2018 राष्ट्रमंडल खेलों में नीरज ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की थी, 86.47 मीटर के सर्वश्रेष्ठ प्रयास ने उन्हें मार्की इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने वाला पहला भारतीय जेवलिन थ्रोअर बना दिया. इस प्रदर्शन के साथ चोपड़ा ने 85 मीटर के आंकड़े को भी पार किया था.

मार्च, 2021 में पटियाला में आयोजित तीसरी इंडियन ग्रां प्री में 23 वर्षीय नीरज चोपड़ा ने पांचवें प्रयास में 88.07 मीटर के थ्रो के साथ अपने ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ दिया, जो उन्होंने 2018 एशियाई खेलों (88.06 मीटर) में बनाया था.

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टोक्यो में नीरज के भाले से है स्वर्णिम उम्मीद

ओलंपिक 2020 को दिए गए इंटरव्यू में नीरज कहते हैं कि "मैं समझता हूं कि ओलंपिक बहुत बड़ा मंच है और ऐसा कुछ भी नहीं है, जैसा मैंने पहले अनुभव किया है. लोग मुझसे पदक के साथ वापसी की उम्मीद कर रहे हैं. लगभग हर दिन कोई न कोई इसके बारे में लिख रहा है. ऐसे लोग भी हैं जो सोचते हैं कि मैं शीर्ष तीन रैकिंग में नहीं हूं और इसलिए शायद पदक नहीं जीत पाऊंगा, लेकिन मैं सिर्फ अपने प्रशिक्षण और तकनीक पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं. इसके साथ यह सुनिश्चित कर रहा हूं कि मैं अपनी डाइट पर कायम रहूं और सही से आराम करूं. जैसे-जैसे ओलंपिक नजदीक आ रहा है, मानसिक रूप से मैं अपने आप उस शीर्ष स्थान पर पहुंच रहा हूं."

टोक्यो ओलंपिक 2020 में पुरुषों की भाला फेंक (जेवलिन थ्रो) स्पर्धा 4 और 7 अगस्त को है. इसमें भारतीय स्टार एथलीट नीरज चोपड़ा का प्रदर्शन देखने को मिलेगा.

अब तक प्रदर्शन और रिकॉर्ड्स को देखते हुए यही उम्मीद लगाई जा रही है कि नीरज टोक्यो से पदक जरूर लेकर आएंगे.

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