महिला अंडर-19 विश्वकप के फाइनल मैच में अर्चना देवी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 2 विकेट झटके और एक गजब का कैच लपका, जिसकी चारों तरफ चर्चा हो रही है. अर्चना के पास कभी इतने पैसे नहीं थे कि वो बॉल खरीद सकें. कुलदीप यादव ने उन्हें खेलने के लिए किट खरीद कर दिया था.
अकसर कहा जाता है कि 'एक सपना हजारों हकीकत से ज्यादा शक्तिशाली होता है', लेकिन कई लोगों के लिए हकीकत, सपनों के रास्ते में खड़ा होता है. 18 साल की अर्चना देवी ने महिला अंडर-19 विश्व कप (ICC Women Under-19 World Cup) में भारत के स्पिन अटैक की कमान संभाली.
दक्षिण अफ्रीका की खुशी का अनुभव करने से बहुत पहले, अर्चना को उत्तर प्रदेश के बांगरमऊ के एक छोटे से गांव रतई पुरवा (अर्चना का गांव) की नीरसता भी सहनी पड़ी. गंगा के किनारे एक झुग्गी में रहते हुए और जीर्ण-शीर्ण मिट्टी के घर में पलते हुए, सपने संजोना लगभग एक अपराध जैसा था.
अर्चना के लए समस्याएं तब और जटिल हो गईं जब उसने कच्ची उम्र में ही 2017 में अपने पिता को खो दिया. छोटे भाई की सांप के काटने से मौत हो गई. परिवार के पास कमाने के लिए सिर्फ एक सदस्य बचा- उसकी मां, जो दो वक्त की रोटी के लिए दूसरों के खेतों में काम करती थी.
क्रिकेट जैसा महंगा खेल खेलने का सपना उस परिवार के आस-पास भी नहीं था जिसका प्रारंभिक उद्देश्य ये था कि किसी तरह उसकी प्लेट में कुछ आ जाए. लेकिन सौभाग्य से भारतीय महिला क्रिकेट के लिए इस युवा खिलाड़ी के पास कुछ मसीहा थे.
कानपुर की यात्रा
अर्चना के सरकारी स्कूल की टीचर पूनम गुप्ता ने भी एक बार भारतीय क्रिकेट की प्रतिष्ठित नीली जर्सी पहनकर हजारों लोगों के सामने राष्ट्रगान गाने का सपना देखा था, लेकिन दुर्भाग्य से हर सपना हकीकत में तबदील नहीं होता.
हालांकि फिर भी, वो उसी सपने को अब अपनी स्टूडेंट के जरिए जी रही हैं. ये देखने के बाद कि अर्चना प्राकृतिक रूप से एथलेटिक हैं, पूनम उसे अपने कोच कपिल देव पांडेय के पास लेकर गईं.
उसकी यात्रा को याद करते हुए, कोच पांडेय ने क्विंट से एक खास बातचीत में कहा कि "पूनम अर्चना को मेरी एकेडमी में करीब 7 साल पहले लेकर आई थी. उसने बताया कि कैसे उसने कच्ची उम्र में ही अपने पिता को खो दिया और परिवार आर्थिक चुनौतियों से घिरा हुआ था."
अर्चना की मां ने उसे कभी भी उसके सपनों का पीछा करने से नहीं रोका, लेकिन नैतिक समर्थन को छोड़कर, न तो वो और न ही उसका बड़ा भाई उसे कुछ दे सकता था. बड़ा भाई भी अपनी बहन की मदद करने के लिए नौकरी खोजने में संघर्ष कर रहा था.
एकेडमी की फीस का भुगतान करने, या किट खरीदने के लिए पैसे न होने के चलते ये जिम्मेदारी कोच और शिक्षक के कंधों पर थी कि वे अर्चना के सपनों को एक ऐसे ही न मिट जाने दें.
पांडेय, जो भारतीय क्रिकेटर कुलदीप यादव के भी कोच हैं, ने कहा कि, "उसका आर्थिक संघर्ष देखकर, हमने अपनी तरफ से कुछ व्यवस्था करने की सोची, क्योंकि हम उसे खुद पर छोड़कर, गांव वापस नहीं जाने दे सकते थे."
कोच ने कहा कि "हमने पास में ही किराये पर एक कमरा ले लिया, ताकि उसे रोज अपने गांव से आना-जाना न पड़े. बाद में कुछ दोस्तों और कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन की मदद से उसके राशन का भी इंतजाम हो गया. हमने उसकी फीस माफ कर दी और क्रिकेट गियर के लिए हमने कुलदीप से मदद मांगी. वो खुद एक स्थापित क्रिकेटर है, तो अर्चना को जिस भी चीज की जरूरत हुई उसने भेज दिया."
दूसरी बड़ी चुनौती: ऑफ-स्पिनर बनना
व्यक्तिगत कठिनाइयों को हल करने के साथ, अगला कदम एक अच्छा पेशेवर करियर सुनिश्चित करना था. वह एक मध्यम तेज गेंदबाज के रूप में काफी अच्छी थी. पांडेय ने सोचा कि भारतीय टीम के लिए उनकी राह काफी आसान होगी, अगर वो किसी तरह ऑफ-स्पिन की कला में महारत हासिल कर ले.
“बच्ची ने एक मध्यम तेज गेंदबाज के रूप में शुरुआत की, लेकिन मैंने कुछ समस्याओं पर ध्यान दिया और उसे ऑफ स्पिन सीखने के लिए कहा. आजकल यह एक लुप्त होती कला है, लेकिन कोई भी अच्छा स्पिनर अभी भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों को आउट करने की क्षमता रखता है. मैंने कुलदीप की बाएं हाथ की कलाई की स्पिन के साथ कुछ अलग करने की कोशिश की और यह एक सफल प्रयोग निकला. इसलिए अर्चना के लिए भी, भीड़ से अलग खड़ा होने के लिए इसी तरह की योजना बनाई."
छाप छोड़ने में बिल्कुल समय नहीं लगाया
उत्तर प्रदेश महिला टीम में खुद को स्थापित करने के बाद, अर्चना राष्ट्रीय टीम में जगह के लिए चयनकर्ताओं के दरवाजे खटखटाती रही और उसे नवंबर 2022 में न्यूजीलैंड अंडर-19 के खिलाफ अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला.
अपने डेब्यू से पहले ही लड़ चुकीं, और एक लाख लड़ाइयां जीत चुकीं, वह अंतिम लड़ाई को व्यर्थ नहीं जाने दे सकती थीं. वह तीन विकेट लेकर भारत की सबसे प्रभावी गेंदबाज बनी, जिसमें विपक्षी टीम की प्रमुख रन-स्कोरर, इसाबेला गेज का विकेट भी शामिल था.
इसके बाद अगली उड़ान प्रिटोरिया की थी, साउथ अफ्रीका के खिलाफ सीरीज के लिए, और नजीता फिर से वैसा ही रहा. इसमें पहले ही मैच में 3 विकेट और अगले में 1 विकेट अपने नाम के आगे जोड़ लिए.
अब चूंकि भारत महिला अंडर-19 विश्व कप के पहले एडिशन के लिए आंखें गड़ाए बैठा है तो सारी निगाहें इस स्पिनर पर होंगी. भाग्य ने उसके काम में चारों ओर से जाले बुनकर उसे फंसाने की कोशिश की, लेकिन अब उसी जाल में बल्लेबाजों को फंसाने का समय है.
उसके कोच के लहजे में अब गर्व झलकता है. वो विश्व कप से पहले आश्वस्त हैं. वो कहते हैं-"उन्नाव में एक दोस्ताना मैच चल रहा था, जहां अर्चना फील्डिंग के दौरान बेहोश हो गई थी. जांच के बाद, डॉक्टर ने हमें बताया कि उसने मैच से पहले कुछ नहीं खाया था. कल्पना कीजिए कि एक बच्ची भीषण गर्मी में मैच खेल रही है, बिना भोजन के. ये सच में खास है कि वो अपनी मेहनत और लगन से इस मुकाम तक पहुंची है. अब उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए."
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