कोलकाता स्थित ईडन गार्डन्स स्टेडियम पहली बार भारत और बांग्लादेश के बीच शुक्रवार 22 नवंबर से शुरू होने वाले पहले ऐतिहासिक डे-नाइट टेस्ट मैच के लिए पूरी तरह से तैयार है. ये टेस्ट मैच पिंक बॉल से खेला जाएगा और जिस तरह से ये गेंद बनाई गई है, तो कोलकाता में भी भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी का कहर दिख सकता है.
दरअसल, इस मैच को लेकर अब सबकी नजरें इस बात पर लगी हुई हैं कि क्या इस मैच में यह गेंद रिवर्स स्विंग होगी या नहीं. अगर बीसीसीआई के अधिकारियों की मानें, तो गेंद को जिस तरह से तैयार किया गया है, उससे गेंद को रिवर्स स्विंग कराने में मदद मिलेगी.
बीसीसीआई के अधिकारियों ने आईएएनएस से कहा है कि मैदान पर रिवर्स स्विंग हासिल करने के लिए गुलाबी गेंद की सिलाई हाथ से की गई है ताकि यह रिवर्स स्विंग में मददगार साबित हो सके.
अधिकारी ने कहा,
“गुलाबी गेंद को हाथ से सिलकर तैयार किया गया है ताकि यह ज्यादा से ज्यादा रिवर्स स्विंग हो सके. इसलिए गुलाबी गेंद से स्विंग हासिल करने में अब कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.”
गुलाबी गेंद को बनाने में लगभग सात से आठ दिन का समय लगता है और फिर इसके बाद इस पर गुलाबी रंग के चमड़े लगाए जाते हैं. एक बार जब चमड़ा तैयार हो जाता है तो फिर उन्हें टुकड़ों में काट दिया जाता है, जो बाद में गेंद को ढक देता है.
इसके बाद इसे चमड़े की कटिंग से सिला जाता है और एक बार फिर से रंगा जाता है और फिर इसे सिलाई करके तैयार किया जाता है. गेंद के भीतरी हिस्से की सिलाई पहले ही कर दी जाती है और फिर बाहर के हिस्से की सिलाई होती है.
एक बार मुख्य प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो फिर गेंद को अंतिम रूप से तौलने और उसे बाहर भेजने से पहले उस पर अच्छी तरह से रंग चढ़ाया जाता है. गुलाबी गेंद पारंपरिक लाल गेंद की तुलना में थोड़ा भारी है.
गुलाबी गेंद को लाल गेंद की तुलना में परंपरागत स्विंग के लिए ज्यादा मददगार माना जाता है क्योंकि इसमें रंग की अतिरिक्त परत चढ़ाई जाती है, ताकि गेंद को अंधेरे में आसानी से देखा जा सके. इसके कारण ही ये गेंद से रिवर्स स्विंग कम दिखती है.
भारतीय टीम में सबसे ज्यादा रिवर्स स्विंग का इस्तेमाल मोहम्मद शमी करते हैं, जो परंपरागत स्विंग से ज्यादा रिवर्स स्विंग का सहारा लेते हैं. ऐसे में गेंद में हाथ से की गई सिलाई से शमी को ज्यादा फायदा मिल सकता है.
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