कई अहम मौकों पर भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे क्रिकेटर रॉबिन उथप्पा ने एक बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने बताया है कि उनके करियर में एक दौर ऐसा भी आया था जब उन्होंने अपनी बालकनी ने कूदकर खुदकुशी का सोचा. 34 साल के उथप्पा ने बताया कि साल 2009 और 2011 उनकी जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर में से एक थे. लेकिन एक क्रिकेट ही था, जिसने उन्हें बालकनी से कूदने से रोक दिया था.
रॉबिन उथप्पा ने साल 2006 में इंग्लैंड के खिलाफ इंटरनेशनल क्रिकेट में अपना डेब्यू किया था. जिसके बाद अब तक वो 46 वनडे मैच और 13 टी-20 खेल चुके हैं. उथप्पा ने राजस्थान रॉयल फाउंडेशन के लाइव सेशन 'माइंड बॉडी एंड सोल' में बातचीत के दौरान अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा,
“जब मैंने 2006 में डेब्यू किया था तो मैं खुद को भी ठीक से नहीं जानता था. तबसे काफी कुछ सीखा और काफी कुछ बदला. जिसके बाद अब मैं खुद से पूरी तरह वाकिफ हूं और अपनी सोच को लेकर काफी क्लियर हूं. अगर आज मैं किसी जगह फिसल भी जाऊं तो मुझे खुद को कैसे संभालना है वो मेरे लिए काफी आसान है.”
उथप्पा ने आगे कहा कि उन्हें रोज लगता था कि उनका अगला दिन कैसे गुजरेगा. उन्होंने कहा,
“साल 2009 से 2011 के बीच ये लगातार हो रहा था मैं सोचता था आज कैसे रहूंगा और कल का दिन कैसे बीतेगा. मेरी जिंदगी में आखिर क्या हो रहा है और किस दिशा में ये आगे बढ़ रही है. इन सभी बातों को क्रिकेट ने ही मेरे दिमाग से निकाला. मैं उन दिनों यही सोचता था कि दौड़कर जाऊं और बालकनी से कूद जाऊं. लेकिन किसी चीज ने मुझे रोककर रखा.”
उथप्पा ने ये बताया कि जब वो क्रिकेट खेलते थे तो सब कुछ ठीक होता था, लेकिन जब क्रिकेट नहीं होता था तो उनके दिमाग में यही सब चलता रहता था. खासतौर पर ऑफ सीजन, जैसे जून और सितंबर में सबसे ज्यादा होता था.
उन्होंने कहा कि उस वक्त मैं खुद को पहचान नहीं पा रहा था, मैं अपनी जिंदगी की कुछ चीजों को बदलना चाहता था, मुझे कोई चाहिए था जो ऐसा करने में मेरी मदद करे. इसीलिए मैंने दूसरों से मदद लेनी शुरू की.
जल्दी खुद की परेशानी नहीं पहचानते पुरुष
उथप्पा ने कहा कि सिर्फ हमारे प्रोफेशन में ही नहीं बल्कि बाकी कई लोग भी बहुत ज्यादा परेशान होते हैं. मुश्किलों का सामना करते हैं और अपने करियर को लेकर फ्रस्ट्रेटेड होते हैं. कई लोग पर्सनल लाइफ, रिलेशनशिप, शादी, बच्चों आदि के लिए परेशान रहते हैं. जहां तक मैंने देखा है कि पुरुषों को ये मानने में काफी वक्त लगता है कि उन्हें मानसिक तौर पर परेशानी हो रही है. उन्हें इसे बताने में भी काफी परेशानी होती है. मैंने भी यही सब देखा है.
लेकिन जब आप अपने अंदर की परेशानी को खोज निकालते हैं और मान लेते हैं कि ये आपको परेशान कर रहा है तो आपका उसका हल निकालने की भी कोशिश शुरू कर देते हैं.
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