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रोहित शर्मा को बतौर कप्तान विराट कोहली की कहानी से क्या सीख लेनी चाहिए?

मुंबई के रोहित शर्मा की कप्तानी के मायने भारतीय क्रिकेट के लिए क्या हैं?

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विराट कोहली (Virat Kohli) को क्यों हटाया गया, इसके पीछे क्या साजिश थी, क्या किसी की निजी खुंदक थी, ये सारे सवालों और विवादस्पद बातों का कोई अब मतलब नहीं है. रोहित शर्मा (Rohit Sharma) अब टीम इंडिया के लिए सफेद गेंद की क्रिकेट में कप्तान है अगर सब कुछ अगले एक साल ठीक चला तो मुमकिन है कि उन्हें और जिम्मेदारी दी जा सकती है. भारतीय क्रिकेट के लिए अहम मुद्दा शायद अब ये है कि मुंबई के रोहित शर्मा की कप्तानी के मायने भारतीय क्रिकेट के लिए क्या हैं.

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सबसे पहली बात तो ये है कि रोहित की कप्तानी मिलने से ये बात तय हो गयी है कि भारतीय क्रिकेट में लीडरशीप को लेकर कोहली का एकाधिकार खत्म हो गया है.

लेकिन, यही बात कप्तान के तौर पर रोहित की सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी. कोहली जैसे शख्स को ड्रेसिंग रुम में संभालना और उनसे और बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करवाना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी. ऐसा नहीं है कि इसमें वो कामयाब नहीं होंगे.

कोहली और रोहित में एक दूसरे के प्रति सम्मान

भारतीय ड्रेसिंग रूम की खबरों से अनजान रहने वाले फैंस को शायद ये एहसास हो कि कोहली और रोहित में बिल्कुल नहीं पटती है और दोनों एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते हैं. लेकिन हकीकत इससे काफी परे हैं. दोनों खिलाड़ियों का एक दूसरे के प्रति वैसा ही सम्मान है जैसा कि एक दौर में सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ का आपस में हुआ करता था. दोनों दिग्गजों के बीच भी आपसी मन-मुटाव और तकरार की खबरें उस दौर में भी आया करती थीं, लेकिन उस जमाने में सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था और ना गुमनाम सूत्रों को आधार पर मनगढ़ंत कहानियां लिखने वाले मनोहर कहानियों वाले आज के कई पत्रकार.

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लेकिन, द्रविड़ और गांगुली ने अपने निजी हितों को कभी भी मुल्क से ऊपर प्राथमिकता नहीं दी. गांगुली की कप्तानी में द्रविड़ सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज थे और जब द्रविड़ की कप्तानी आई तो गांगुली ने अपने टेस्ट क्रिकेट की कई उम्दा पारियां भारत के लिए खेली.

कहने का मतलब ये है कि अब कोहली और रोहित युग में भी हमें वही पटकथा देखने को मिलने की संभावना और भी ज्यादा है क्योंकि रोहित के लिए लाल गेंद में कप्तान कोहली होंगे तो सफेद गेंद में ये भूमिका विपरीत हो जाएगी. दोनों को एक-दूसरे का भरपूर साथ देना होगा तभी भारतीय क्रिकेट का भला मुमकिन है.
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टी-20 वर्ल्ड कप होगा असली चुनौती

कप्तान के तौर पर रोहित के लिए चुनौतियां फिलहाल कुछ नहीं है क्योंकि साउथ अफ्रीका में वन-डे सीरीज और उसके बाद श्रीलंका और वेस्ट इंडीज के खिलाफ घर में होने वाली सीरीज बहुत ज्यादा मायने नहीं रखेंगी क्योंकि अगर वो हारते हैं तभी थोड़ी चर्चा होगी वरना इन मैचों में जीत को औपचारिकता माना जा सकता है.

रोहित की असली चुनौती होगी कि कैसे ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी20 वर्ल्ड कप के दौरान ट्रॉफी जीतने का सिलसिला फिर से शुरू किया जाए. मुमकिन है कि उस टीम में कोहली ना हों और जरूरी ये होगा कि अभी से कोहली जैसे धाकड़ बल्लेबाज का विकल्प तलाश करने की मुहिम तेज कर दी जाए.

कोहली का विकल्प तलाशना भी रोहित की कप्तानी का सबसे तीखा सवाल होगा, क्योंकि इसके नाम से ही कोहली के समर्थक आग-बबूला हो जाएंगे. लेकिन, रोहित को अगर चैंपियन बनने के बारे में सोचना है तो उन्हें कोहली का विकल्प ढूंढना ही होगा और इसके लिए भावनात्मक होने की जरूरत नहीं है.

क्योंकि कड़वा सच यही है कि भारत की टी20 टीम में रोहित और कोहली दोनों ही एक साथ प्लेइंग इलेवन का हिस्सा नहीं हो सकते हैं, क्योंकि दोनों की शैली बिल्कुल एक जैसी ही है और पिछले 3 टी20 वर्ल्ड कप में भारत को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है.
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कप्तान के तौर पर रोहित की एक और अहम चुनौती ये होगी कि वो उप-कप्तान के तौर पर टेस्ट क्रिकेट में ऐसा खेल दिखाएं कि अगर जरूरत पड़े तो उन्हें लाल गेंद की जिम्मेदारी भी दी जाए. लेकिन, ऐसा तभी मुमकिन होगा अगर रोहित इंग्लैंड वाली टेस्ट सीरीज की तरह साउथ अफ्रीका के खिलाफ भी टेस्ट सीरीज में भरपूर रन बनायें और टीम की जीत में अहम भूमिका निभाएं.

रोहित को ये समझना होगा कि भारतीय क्रिकेट में कप्तान की तूती तब तक बोलती है जब कि उनका बल्ला बोलता है. एक बार याद है ना युवराज ने कहा था जब तक बल्ला है तब तक ठाठ है. जब तक कप्तान का बल्ला फॉर्म में रहता है अगर टीम नहीं भी जीतती तो कोई कुछ नहीं कर सकता, लेकिन अगर टीम भी डूबने लगे और कप्तान का बल्ला भी सूखा पड़ जाए तो कप्तानी डूबनी तय हो जाती है. रोहित को ये समझेने के लिए कहीं और नहीं बल्कि ड्रेसिंग रूम में कोहली की हालिया कहानी को देखने की जरूरत है.

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