कर्नाटक के मनीष पांडे और तमिलनाडु के विजय शंकर ने आईपीएल में सनराइजर्स हैदराबाद के लिए मैच-जीताने वाली शतकीय साझेदारी की तो कई जानकारों के मुंह से शायद ये शब्द अनायास की निकले होंगे- “आखिर ये दोनों अभी तक थे कहां!”
लेकिन, ये वाक्य इन दोनों खिलाड़ियों के लिए सिर्फ एक आईपीएल मैच के लिए नहीं बल्कि इनके अब तक के करियर की यात्रा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. पांडे तो खैर एक अलग ही क्लास के बल्लेबाज के तौर पर भारतीय क्रिकेट में आए. एक समय ऐसा था कि वो विराट कोहली के समकक्ष माने जाते थे. आलम ये था कि जब 2009 आईपीएल में पांडे ने रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के लिए पहले भारतीय के तौर पर आईपीएल में शतक जमाया तो कोहली खुद अचंभित थे.
2009 में जिस रात मनीष पांडे सेंचुरी लगाई थी, उसी रात सेंचरियन के पांच सितारा होटल में मैं एक टीवी चैनल के लिए पांडे का इंटरव्यू करने पहुंचा, तो मीडिया मैनेजर ने उन्हें पत्रकारों से बातचीत करने की इजाजत नहीं दी. पांडे खुद मैनेजर के रवैये से हैरान थे, लेकिन कुछ नहीं कर सकते थे. जब ये बात सीनियर तेज गेंदबाज प्रवीण कुमार के कानों तक पहुंची, तो उन्होंने मैनेजर को इस बात के लिए लताड़ा कि जब वो रात पांडे के करियर की सबसे बड़ी रात है तो उसे लाइमलाइट से दूर क्यों रखा जा रहा है..
बहरहाल, एक दशक बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि सिर्फ उस रात ही नहीं बल्कि एक दशक और शायद हमेशा के लिए पांडे के लिए भारतीय क्रिकेट में स्टार बनने का मौका पीछे छूट गया. 19 साल की उम्र में आईपीएल में तहलका मचान वाले पांडे भारत के लिए अब तक कोई टेस्ट नहीं खेल पाए हैं और सिर्फ 26 वन-डे खेले हैं.
देर से ही सही जब पांडे ने अपने वन-डे करियर की शुरुआत में पहले 3 मैचों में 71 और 104 नॉटआउट की पारी खेली, खासकर सिडनी में बेहद मुश्किल हालात में शतक बनाकर टीम इंडिया को मैच जिताया(उस दौरे पर भारत पहले 4 वन-डे हार चुका था) तो भारत ने दौरे पर पहली जीत का स्वाद चखा और इसके बाद अगले तीन टी20 मैचों में 3-0 से सफाया किया तो जानकारों ने कहा अब तक कहां था ये पांडे.. लेकिन उसके बाद अगले 23 वन-डे में पांडे के बल्ले से सिर्फ 1 अर्धशतक निकला
कुछ इसी अंदाज़ में शंकर ने वन-डे क्रिकेट में बल्लेबाजी करते हुए अपनी पहली 4 पारियों में 45,46,32,26 के स्कोर किये और गेंदबाजी करते समय इकॉनोमी रेट 1 मैच को छोड़कर 5 से नीचे का रहा इसलिए उन्हें वर्ल्ड कप के लिए भी चुन लिया गया लेकिन वहां उन्होंने मायूस ही किया.
टी20 मैचों में तो पिछले कुछ समय से वो ना सिर्फ नियमित खिलाड़ी है, बल्कि अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं. पांडे को इस बात का हमेशा मलाल रहेगा कि वो 2019 वन-डे वर्ल्ड कप में टीम इंडिया का हिस्सा नहीं बन पाए.
अजीब इत्तेफाक है कि पांडे के साथी विजय शंकर घरेलू क्रिकेट में एक गुमनाम खिलाड़ी रहने के बावजूद 2019 वर्ल्ड कप में ऑलराउंडर के तौर पर रखे गये जिस पर काफी बहस हुई. लेकिन, पांडे की ही तरह शंकर भी अपने करियर में अहम मौकों पर चौका लगाने में ज्यादातर चूके हैं और शायद यही वजह है कि जब भी ये खिलाड़ी कभी अच्छा खेलते हैं तो यही बात जेहन में आत है- “आखिर ये दोनों अभी तक थे कहां!”
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