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क्या भारतीय फुटबॉल टीम एशियन गेम्स में जगह बनाने की हकदार थी? 

पिछले कुछ सालों में भारतीय फुटबॉल पर भारतीय ओलंपिक द्वारा ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए था. 

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इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (IOA) का भारतीय पुरुष और महिला फुटबॉल टीम को एशियन गेम्स से अलग रखने का फैसला पूरे देश के फुटबॉल फैंस के लिए झटके की तरह आया है. क्या भारतीय फुटबॉल टीम ने पिछले तीन साल में ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिसके बूते वो एशियन गेम्स में एक जगह की हकदार हो?

अगस्त में होने वाले एशियन गेम्स के लिए भारत ने 36 अलग-अलग इवेंट्स में अपने 524 एथलीट्स को उतारने का फैसला किया है. लेकिन क्रमश: 97वीं और 59वीं फीफा रैंकिंग वाली हमारी पुरुषों और महिलाओं की फुटबॉल टीम को छोड़ दिया गया. आईओए ने कहा था कि वो उन्हीं टीमों को भेजना चाहता है, जो उस खेल के कई टूर्नामेंट में टाइटल के दावेदार हों, साथ ही टीम एशियाई देशों के बीच 8वीं या फिर उससे बेहतर रैंकिंग पर हो. लेकिन एक समस्या है.

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रैंकिंग की पहेली

पिछली रैंकिंग और प्रदर्शन के आधार पर चयन का ये तरीका सवालों में है और ऐसा 2014 के एशियन गेम्स के कुछ नतीजों की वजह से ही है. तब भारतीय महिला हैंडबॉल टीम ने इस खेल में शामिल 9 देशों में से 8वां स्थान हासिल किया था.

बुशु में सिर्फ 2 कांस्य पदक के साथ भारत मेडल टैली में 11वें स्थान पर रहा था. एक कांस्य पदक महिलाओं के वर्ग में और एक पुरुषों के वर्ग में मिला था.

2014 के एशियन गेम्स में भारतीय साइकिलिंग टीम ने कुछ भी हासिल नहीं किया जबकि CWG में भी उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा.

इंडियन सॉफ्ट टेनिस टीम ने आखिरी बार 2010 के एशियन गेम्स में शिरकत की थी, तब 11 टीमों में से वो टीम 8वें नंबर पर रही थी. 2014 में भारत ने इस खेल में हिस्सा नहीं लिया था, तब सिर्फ 13 टीमों के बीच मेडल के लिए मुकाबला हुआ था.

इसके बावजूद ऊपर की सभी टीमें 2018 के एशियन गेम्स के लिए क्लालिफाई कर गईं, लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम नहीं. क्यों?

आईओए अपने इस फैसले को तर्कसंगत साबित करने के लिए स्पोर्ट्स और युवा मामलों के मंत्रालय के 2015 के निर्देश का हवाला दे रहा है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी टीम एशियन गेम्स में सिर्फ एक्सपोजर दिलाने के लिए नहीं भेजी जानी चाहिए.

हो सकता है कि आईओए स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री के निर्देशों का पालन कर रहा हो, लेकिन कुछ वजहें जरूर हैं, जिनके चलते एसोसिएशन अभी भी इस बारे में ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के साथ आधिकारिक संवाद नहीं कर रहा है. नाम न छापने की शर्त पर एआईएफएफ के एक सूत्र ने द क्विंट को बताया कि इस वजह से फेडरेशन के अधिकारी असमंजस में हैं.

अभी तक इस मुद्दे पर आईओए की तरफ से कोई आधिकारिक संवाद नहीं किया गया है जबकि ये सबकुछ सोमवार (2 जुलाई) से हो रहा है. पिछले कुछ सालों में हमने फुटबॉल में जो कुछ हासिल किया है, उसे देखते हुए ये सब तकलीफदेह है. 

परेशान होकर फुटबॉल फेडरेशन ने एशियन गेम्स में टीम को भेजने पर होने वाले पूरे खर्चे खुद उठाने का भी प्रस्ताव दिया, लेकिन आईओए पर इसका भी कोई असर नहीं हुआ.

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एक स्पेशल केस

2014 में हुए एशियन गेम्स के बाद से पुरुषों की भारतीय टीम ने कमाल की उपलब्धियां हासिल की हैं. 2015 में फीफा की रैंकिंग में 173वें पायदान पर फिसल चुकी भारतीय फुटबॉल टीम ने 3 साल की अवधि में आगे बढ़ते हुए 97वीं रैंक हासिल कर ली.

एक साल से ज्यादा समय तक अपराजित रहते हुए इंटरकॉन्टिनेंटल कप जैसे टूर्नामेंट में जीत के साथ भारतीय टीम 8 साल के अंतराल के बाद एएफसी एशियन कप के लिए क्वालिफाई करने में कामयाब रही.

ऐसा नहीं है कि ये सब यूं ही हो गया. भारतीय फुटबॉल को मजबूत बनाने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास हुए. सुविधाओं से लैस स्टेडियम बनाए गए, विश्वस्तरीय ट्रेनिंग की सुविधा खिलाड़ियों को दी गई और उभरते हुए खिलाड़ियों पर खास ध्यान दिया गया. सच यही है कि ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन का नजरिया इस वक्त पहले के किसी भी दौर के मुकाबले ज्यादा प्रोफेशनल है.

क्या एशियन गेम्स के लिए रैंकिंग मायने रखता है?

अपने तर्कों को सही साबित करने के लिए आईओए जिस रैंकिंग का हवाला दे रहा है वो हास्यास्पद ही है. एशियन गेम्स में फुटबॉल की टीमें अंडर-23 से चुनी जाती हैं, इसमें सिर्फ 3 खिलाड़ी सीनियर टीम से होते हैं.

हालांकि 2014 के एशियन गेम्स में भारतीय फुटबॉल टीम ने 29 देशों के बीच 26वें नंबर पर अपना सफर खत्म किया था, लेकिन तब के प्रदर्शन से आज की टीम को आंकने से उनके साथ न्याय नहीं होगा. क्योंकि कोई भी दूसरा खेल पिछले कुछ समय में इतनी अच्छी प्रगति नहीं कर पाया है. ऐसे में मौजूदा फुटबॉल टीम को बड़ी आसानी से इस प्रताड़ित करने वाले रैंकिंग सिस्टम से आजादी दी जा सकती थी.

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एक्सपोजर कोई मुद्दा नहीं हो सकता

खुद आईओए भारतीय फुटबॉल टीम के भविष्य की नीति बनाने में फेल रहा. इस वक्त अंडर-23 फुटबॉल टीम के 11 खिलाड़ी सीनियर राष्ट्रीय टीम का हिस्सा हैं. ऐसे में एशियन गेम्स में होने से इन्हें न सिर्फ दूसरी इंटरनेशनल टीमों के खेलने के तरीके को देखकर एक्सपोजर मिलेगा, बल्कि आगे के एसएएफ, एएफसी चैंपियनशिप और अंडर-23 एएफसी कप क्वालिफायर्स जैसे टूर्नामेंट्स के लिए इनकी तैयारियां भी बेहतर होंगी.

अगर टीम को एशियन गेम्स से दूर रखा जाता है, तो क्या आईओए इस बात की जिम्मेदारी लेगा कि आगे के टूर्नामेंटों में इनकी संभावनाएं प्रभावित नहीं होंगी? 

AIFF की योजना

अगर योजना 2018 के एशियन गेम्स में मेडल जीतने की गारंटी वाली टीमें भेजने की ही है, तो क्या आईओए ये उम्मीद कर रही है कि जो 524 एथलीट्स का दल भारत की ओर से जा रहा है, वो कम से कम 300 मेडल लेकर आएगा?

इस तर्क के आधार पर अगर कोई टीम जीतने में नाकाम रहती है, तो क्या उसे अगली बार एशियन गेम्स से दूर रखा जाएगा? 

अगर आईओए इसी कल्चर के साथ आगे बढ़ना चाहता है, तो भारतीय खेल एक निहायत खतरनाक दिशा में जा रहा है. अगर एक खेल में कुछ हासिल नहीं होता है, तो उसे आगे मौका देने से मना कर देना हताश करने वाली ऐसी बात होगी, जिसे खेलों की दुनिया में कोई समर्थन नहीं देगा.

2014 के एशियन गेम्स में आईओए ने 28 खेलों में 541 खिलाड़ियों को भेजा था. ऐसे में क्या ये तर्कसंगत नहीं होता कि हम पिछली बार से ज्यादा एथलीट्स इस बार भेजते, क्योंकि पिछले कुछ सालों में हमारे समाज ने खेलों को पहले के मुकाबले काफी ज्यादा स्वीकार किया है? 

फुटबॉल फेडरेशन के एक सूत्र ने कहा कि- “मुझे लगता है कि भारतीय फुटबॉल को लेकर हमारी सोच पर आईओए हमसे चर्चा कर सकता था.” पूर्व में फुटबॉल फेडरेशन ने काफी समस्याएं झेली हैं, कि कैसे भारतीय फुटबॉल में अच्छे खिलाड़ियों की मौजूदगी बनी रहेगी, कि कौन अपने पूर्ववर्ती खिलाड़ी का विकल्प बन सकता है?

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एआईएफएफ का मानना है कि भारतीय फुटबॉल ने 2007 में नेचुरल टैलेंट को ढूंढने का जो अभियान शुरू किया था उसका फल अब मिलने लगा है. ऐसे में फेडरेशन की सोच है कि युवा खिलाड़ियों को ज्यादा मौके और एक्सपोजर देने से फुटबॉल खिलाड़ियों के पूल में कभी कोई कमी नहीं आएगी और युवा खिलाड़ी हमेशा सीनियर टीम के मेंबर को चुनौती देते नजर आएंगे, जो कि देश में इस खेल के लिए काफी अच्छा होगा. इसी को ध्यान में रखते हुए फेडरेशन ने चीन में चार देशों के टूर्नामेंट में अंडर-16 टीम को भेजने जैसा फैसला लिया.

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विश्व कप 2026

फुटबॉल खेलने वाले किसी भी देश का लक्ष्य विश्व कप खेलने का होता है. 2026 में नॉर्थ अमेरिका में होने जा रहे फीफा विश्व कप के लिए भारत की संभावनाएं काफी हैं. टूर्नामेंट के लिए 48 स्थान खुले होंगे, इनमें से इस प्रतिष्ठित मुकाबले में 8 टीमें एशियन फेडरेशन भेजेगा.

अगर तब भारत इन 8 टीमों के अंदर होगा, तो फिर विश्व कप में जगह बनाने में हमें कोई समस्या नहीं होगी. लेकिन चूंकि फिलहाल ऐसा नहीं है, ऐसे में ये जरूरी है कि हमारे खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ खेलने का ज्यादा से ज्यादा एक्सपोजर मिले.

मौजूदा अंडर-23, अंडर-19 और अंडर-16 के खिलाड़ी 2026 में भारत के लिए ये काम बखूबी कर सकते हैं. आईओए का फैसला न सिर्फ भारतीय फुटबॉल को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि देश में खेलों के कल्चर और जज्बे की हत्या करने वाला भी साबित होगा. ऐसा करके आईओए एक ऐसे खेल की जड़ काट रहा है, जो विस्तार की दिशा में सही कदम उठा रहा है और मजबूत हो रहा है.

पता नहीं भारतीय फुटबॉल को लेकर लिए गए अपने निर्णय को आईओए बदलेगा या नहीं, आखिरकार, भारतीय फुटबॉल में कहां कुछ होता है, जब तक कि देश का कैप्टन और लीडिंग टॉप स्कोरर ट्विटर के जरिये अवाम से मैदान पर आने और उन्हें सपोर्ट करने की अपील नहीं करता है.

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