ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू वनडे और टी-20 सीरीज के लिए टीम इंडिया का ऐलान कर दिया गया है. चीफ सेलेक्टर ने साफ कर दिया है कि अब 2019 विश्व कप की टीम इन्हीं खिलाड़ियों में से चुनी जाएगी. जिन 15 खिलाड़ियों को विराट कोहली, रवि शास्त्री की रजामंदी से चुना गया है उनमें कई ‘यूटिलिटी प्लेयर’ हैं. ‘यूटिलिटी प्लेयर’ यानी ऐसा खिलाड़ी जिसे फुलटाइम ऑलराउंडर भले ना माना जाए लेकिन वक्त पड़ने पर वो गेंद और बल्ले दोनों से प्रदर्शन करने की काबिलियत रखता हो.
शुक्रवार को चुनी गई टीम में केदार जाधव और विजय शंकर जैसे खिलाड़ियों को इसी सोच के साथ रखा गया है. इसके अलावा भुवनेश्वर कुमार, कुलदीप यादव जैसे फुलटाइम गेंदबाज हैं जो बल्ले से भी दम दिखा सकते हैं.
टीम में फुलटाइम ऑलराउडंर के तौर पर हार्दिक पांड्या हैं ही. यानी स्पेशलिस्ट बल्लेबाज, गेंदबाज और ऑलराउंडर के साथ-साथ टीम के पास अच्छे ‘यूटिलिटी प्लेयर’ हैं. इसी वजह से मौजूदा टीम काफी हद तक 1983 में कपिल देव की टीम जैसी दिख रही है. मोहिंदर अमरनाथ ने 1983 में ऑलराउंडर का रोल अदा किया था. उनके अलावा मदन लाल और रॉजर बिन्नी मुख्य रूप से गेंदबाज थे लेकिन उन्होंने बल्ले से भी समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इसके अलावा रवि शास्त्री और कीर्ति आजाद जैसे खिलाड़ी भी थे. आगे बढ़ने से पहले आपको 1983 की टीम के ‘यूटिलिटी प्लेयर’ याद दिला देते हैं.
हो सकता है कि आपको विश्व कप में इन खिलाड़ियों का प्रदर्शन ‘यूटिलिटी प्लेयर’ की परिभाषा पर खरा उतरता ना दिखता हो लेकिन घरेलू क्रिकेट में इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन से आप समझ जाएंगे कि आखिर क्यों 1983 की टीम को ‘यूटिलिटी प्लेयर्स’ से भरी टीम कहा जाता था. 1983 के फाइनल की स्कोर शीट भी इसी बात को पुख्ता करती है.
अब वापस लौटते हैं आज की टीम पर. इस टीम में भी ‘यूटिलिटी’ खिलाड़ियों की भरमार है. हार्दिक पांड्या का रोल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. वो विश्व कप में विराट कोहली का ट्रंप कार्ड होंगे. उनके अलावा केदार जाधव भी कमाल के बुद्धिमान क्रिकेटर हैं. शायद ही कोई ऐसा मैच हो जिसमें वो प्लेइंग में हों और विराट कोहली की उम्मीदों पर खरे ना उतरे हों. इन दोनों का वनडे करियर देखिए...
विजय शंकर को न्यूजीलैंड के खिलाफ हालिया टी-20 सीरीज में नंबर तीन पर बल्लेबाजी के लिए आजमाया गया. जिसमें उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया. उनकी गेंदबाजी एक ऐसा पहलू है जिसे न्यूजीलैंड के खिलाफ नहीं आजमाया लेकिन निश्चित तौर पर उनका ये हुनर विराट कोहली और रवि शास्त्री दोनों जानते और समझते हैं. इसके अलावा भुवनेश्वर कुमार घरेलू क्रिकेट में शतक लगा चुके हैं. जाहिर हैं मुश्किल वक्त में उनके बल्ले से कमाल की उम्मीद भी रहेगी.
बतौर कप्तान और कोच विराट कोहली और रवि शास्त्री दोनों की एक और खासियत है. दोनों को विश्व कप जीतने का तजुर्बा है. रवि शास्त्री 1983 में भारतीय टीम का हिस्सा थे और विराट कोहली 2011 विश्व कप में. शास्त्री ने भले ही 83 का फाइनल ना खेला हो लेकिन विराट 2011 विश्व कप के फाइनल टीम का हिस्सा थे. दोनों ने इस बात को देखा है कि ‘यूटिलिटी प्लेयर्स’ किस तरह कुछ गेंदों में बाजी इधर से उधर कर देते हैं. लिहाजा दोनों ने ऐसे ही खिलाड़ियों की टीम तैयार की है जो बल्लेबाजी, गेंदबाजी या फील्डिंग में पलक झपकते कमाल कर सकते हों.
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