कुलदीप यादव के साथ नाइंसाफी क्यों हुई? टीम इंडिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच टी-20 सीरीज एक जीत और एक हार के साथ बराबरी पर खत्म हो गई. तीसरे टी-20 में टीम इंडिया की जीत के कई हीरो रहे.
क्रुणाल पांड्या ने चार विकेट झटक कर ऑस्ट्रेलिया को बड़ा स्कोर करने से रोका. शिखर धवन ने शानदार शुरूआत दिलाई. विराट कोहली ने मैच ‘फिनिश’ किया. क्रुणाल पांड्या को मैन ऑफ द मैच चुना गया और शिखर धवन को मैन ऑफ द सीरीज.
चलिए 4 ओवर में 36 रन देकर 4 विकेट लेने वाले क्रुणाल पांड्या को मैन ऑफ द मैच देना तो ठीक है, लेकिन तीन टी-20 मैचों की सीरीज में 117 बनाने वाले शिखर धवन को मैन ऑफ द सीरीज का खिताब क्यों?
क्या मैन ऑफ द सीरीज का खिताब कैलकुलेटर पर रन जोड़कर दिया जाना ठीक है? अगर मैन ऑफ द सीरीज का खिताब सीरीज पर ‘इम्पैक्ट’ डालने वाले खिलाड़ी को देना चाहिए तो कुलदीप यादव इसके सही हकदार थे.
उन्होंने 3 मैच में विकेट भले ही 4 लिए लेकिन हर मैच में उनकी उपयोगिता अच्छी खासी थी. गेंदबाजों के लिए कब्रगाह माने जाने वाले इस फॉर्मेट में उन्होंने सिर्फ 5.5 की इकॉनमी से रन दिए. इसके अलावा उन्होंने मैच में हर उस समय विकेट लिया जब कप्तान को विकेट की जरूरत थी. क्रिकेट की समझ रखने वाले किसी भी शख्स को उनकी गेंदबाजी का महत्व समझ आ जाएगा.
मैच के नतीजे पर कुलदीप यादव का असर समझिए
इन तीन टी-20 मैचों में कुलदीप यादव के प्रदर्शन और असर को समझने से पहले उनके गेंदबाजी के आंकड़े देख लेते हैं. उनके इकॉनमी रेट पर खास तौर पर नजर रखिएगा.
किफायती गेंदबाजी के साथ साथ लिए विकेट
ये कुलदीप यादव की किफायती और सूझबूझ भरी गेंदबाजी का ही असर है कि विरोधी टीम के बल्लेबाजों ने उनके खिलाफ रक्षात्मक खेलने का मन बना लिया है. बड़े से बड़ा बल्लेबाज उनके खिलाफ आक्रमण करने से बचता है. पिछले साल खेले गए टी-20 मैचों में इस बात को देखा गया है.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चल रही हालिया सीरीज को ही देखिए. तीन के तीनों मैचों में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी के प्लान को गड़बड़ करने में कुलदीप यादव का रोल अहम रहा. पहले और दूसरे मैच में तो तेज गेंदबाजों ने अच्छी शुरूआत दिलाई थी, उनकी कसी हुई गेंदबाजी को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी कुलदीप यादव की थी. जो उन्होंने बखूबी निभाई.
दोनों ही मैचों में उन्होंने अपने पहले ओवर में सिर्फ 5-5 रन दिए. जो ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर दबाव बनाए रखने के काम आए. तीसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया का स्कोर बिना कोई विकेट खोए 68 रन हो गया था. हर किसी को इस बात का डर था कि बाद के ओवरों में कंगारू बल्लेबाज खुलकर रन बटोरेंगे लेकिन कुलदीप यादव ने एरॉन फिंच को आउट करके वो रास्ता खोल दिया जिस पर क्रुणाल पांड्या आगे बढ़े. क्रुणाल ने पहले ओवर में कुछ गेंदें 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज्यादा की फेंकी लेकिन जैसे ही कुलदीप यादव को पहला विकेट मिला क्रुणाल परंपरागत स्पिन गेंदबाजी करने लगे.
परंपरागत स्पिन गेंदबाजी यानी धीमी गति से गेंद फेंककर बल्लेबाज को आगे आकर खेलने के लिए मजबूर करना. क्रुणाल ने अपनी कामयाबी का श्रेय कुलदीप यादव को दिया भी. इससे पहले इंग्लैंड के दौरे पर भी कुलदीप यादव ने 7.25 की इकॉनमी से रन दिए थे और वो टीम के सबसे किफायती गेंदबाज थे. वेस्टइंडीज के खिलाफ टी-20 सीरीज में भी कुलदीप यादव का इकॉनमी रेट 5.37 का था.
पुरस्कार का आधार बने टर्निंग प्वाइंट
क्रिकेट के खेल में ‘टर्निंग प्वाइंट’ बड़ा मशहूर ‘टर्म’ है. कई ऐसे मैच याद आते हैं जब किसी एक रन आउट, एक मिसफील्ड या एक विकेट ने मैच का रूख बदल दिया. मैच के बाद जब मैन ऑफ द मैच या मैन ऑफ द सीरीज का चयन होता था तो ऐसे टर्निंग प्वाइंट के केंद्र में रहे खिलाड़ी को जरूर याद रखा जाता था. ज्यादा नहीं लेकिन कुछ उदाहरण ऐसे हैं जब हारने वाली टीम के खिलाड़ी तक को मैन ऑफ द मैच दिया गया क्योंकि मैच पर उस खिलाड़ी का ‘इम्पैक्ट’ ज्यादा था. हाल के दिनों में ये परंपरा खत्म सी हो रही है. चयन समिति कैलकुलेटर पर रन और विकेट जोड़कर विजेता का ऐलान कर देती है. यानी यहां भी मामला ‘क्वालिटी’ का नहीं ‘क्वांटिटी’ का रह गया है.
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