भारत को ' स्पोर्ट्स लीग्स की भूमि' कहा जाने लगा है. हर तीसरे दिन एक नए लीग की शुरुआत होती है लेकिन ज्यादातर बुरी तरह से फेल होते हैं. इसकी मुख्य वजह है खराब प्लानिंग और फंड की कमी. लेकिन कुछ लीग ऐसे भी हैं जो थोड़े से ही समय में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.
क्रिकेट के हाईप्रोफाइल लीग आईपीएल की तर्ज पर ही प्रो-कबड्डी लीग ने भी अपनी एक अलग पहचान बनायी है. हालांकि आईपीएल भारत की पहली स्पोर्ट्स लीग नहीं है - फुटबॉल लीग दशकों पुराने हैं, 2004 - 05 में एक हॉकी लीग भी शुरू हुई थी लेकिन कुछ सालों बाद उसने दम तोड़ दिया.
बहुत कम लोगों को पता होगा कि प्रो-कबड्डी लीग का सपना स्पोर्ट्स कमेंटेटर चारु शर्मा ने 2006 में दोहा में आयोजित एशियन गेम्स के दौरान देखा था और 2010 गुआंगजौ एशियन गेम्स में भी चारु कमेंट्री के लिए गए थे. इसी दौरान उन्होंने तय कर लिया की भारत में कबड्डी के प्रचार प्रसार के लिए वो कुछ न कुछ करेंगे.
चारु के मुताबिक लीग का डिजाइन बनाने के बाद उन्होंने छह महीने तक विभिन्न चैनलों और ग्रुप्स से संपर्क किया, लेकिन कोई भी उनके आइडिये को लेकर उत्साहित नहीं हुआ. आखिरकार चारु अपने सपनों को लेकर स्टार परिवार के सीईओ उदय शंकर के पास पहुंचे और उसके बाद जो हुआ वो अपने आप में इतिहास है.
चारु के मुताबिक प्रो कबड्डी लीग का विजन साफ था - हमें एक पारम्परिक खेल के प्रति लोगों और खिलाड़ियों की आकांक्षाओं और भावनाओं को जोड़ना था और वो हमने बाखूबी किया. टीम मालिकों के चुनाव में भी हमने कई प्रतिष्ठित लोगों को जोड़ा. फ्रैंचाइजी मालिकों में अभिषेक बच्चन (जयपुर पिंक पैंथर्स), उदय कोटक (पुनरी पलटन) और किशोर बियानी (बंगाल वारियर्स) शामिल हुए. ये टीम ओनर्स मैचों के दौरान स्टेडियम में होते थे जिससे ये खेल और बड़ा होता गया.पारंपरिक मानसिकता यह थी कि यह खेल ग्रामीण दर्शकों के लिए है लेकिन हमारा लक्ष्य सभी उम्र के लोगों के बीच ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसे लोकप्रिय बनाना था.
इस पूरी मुहिम में स्टार स्पोर्ट्स की भूमिका काफी अहम रही. उन्होंने न सिर्फ इस लीग की मार्केटिंग पर ध्यान केंद्रित दिया बल्कि टीवी प्रोडक्शन क्वॉलिटी को एक अलग लेवल पर ले गए. स्टार स्पोर्ट्स की टीम ने इस बात पर फोकस किया कि कबड्डी एक ऐसा खेल है जिसे लाखों लोगों ने अपने बचपन में कभी न कभी जरूर खेला है. ये खेल लोगों से बड़े पैमाने पर जुड़ा रहा है. जरूरत थी तो सिर्फ उनकी भावनाओं को जागृत करना और उनके जुनून को फिर से प्रज्वलित करना और इसमें वो काफी हद तक सफल भी रहे.
इस खेल की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि - 2014 में पीकेएल का पहला सीजन अपने पांच सप्ताह के दौरान 435 मिलियन दर्शकों तक पहुंचा, जबकि आईपीएल 2014 को 552 मिलियन ने देखा. प्रो-कबड्डी के तीसरे सीजन में टीवी व्यूअरशिप में 36% की वृद्धि देखी गयी.
स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर का मानना है की कोई भी अन्य खेल इतनी तेजी से नहीं बढ़ा, क्रिकेट के बाद दूसरा ऐसा ये खेल है जहाँ इतने लोग जुड़े हैं. शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के प्रशंसकों की इस खेल की लोकप्रियता बढ़ाने में पूरी भागीदारी है.
आज, कबड्डी लीग बहुत बड़ा हो गया है, ब्रॉडकास्टर स्टार स्पोर्ट्स ने मोबाइल फोन निर्माता कंपनी वीवो के साथ 300 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड पांच साल का सौदा किया है. प्रो कबड्डी लीग के पास ब्रैंड एंबेसडर के रूप में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर्स मैथ्यू हेडन और ब्रेट ली भी हैं.
खेल नियमों में भी बदलाव
पीकेएल के लिए रेड ब्लॉक को 30 सेकंड तक सीमित करने के लिए नियम छेड़े गए. पहले ये 45 सेकेंड का होता था. इससे खेल का ना सिर्फ पेस बढ़ा बल्कि दर्शकों की संख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई.
डिफेंडर्स के लिए भी मौका
सीजन 1 और 2 में प्रो-कबड्डी लीग एक 'रेडर का खेल' माना जाता था लेकिन इसमें बदलाव कर इसे डिफेंसिव लाइन यानि डिफेंडर्स के लिए भी उतना ही दिलचस्प बनाया गया. यदि तीन या उससे कम डिफेंडर एक आक्रमण करने वाले को पकड़ने में कामयाब होता है तो उन्हें दो अंक मिलते हैं.
उम्दा टीवी प्रोडक्शन
प्रो-कबड्डी लीग पांच भाषाओं - अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, कन्नड़ और तेलुगू में टीवी पर दिखाया जा रहा है. करीब 300 लोग इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. तीन भाषाओं में ग्राफिक्स का प्रयोग किया जा रहा है.
कैमरा प्लेसमेंट
प्रो-कबड्डी लीग में एक मैच के दौरान छोटे से स्टेडियम में करीब 18 से 20 कैमरों का प्रयोग होता है. इतने कम एरिया में इतने ज्यादा कैमरे होने की वजह से कोई भी एक्शन छूटता नहीं है.
एक्शन रीप्ले
कबड्डी एक फास्ट गेम है और ऐसे में टीवी डायरेक्टर्स के लिए रीप्ले दिखाना भी उतना ही मुश्किल होता है. ऐसे में स्टार ने रूल में बदलाव करते हुए कुछ मोमेंट्स बनाये हैं - जैसे की "बिग टैकल' - जब खिलाड़ी अंपायर के फैसले के खिलाफ अपील करता है या फिर कोई रिव्यू मांगता है तो उस वक्त स्लो मोशन में रीप्ले दिखाकर डायरेक्टर खेल को और ज्यादा दिलचस्प बनाता है. क्रिकेट को टीवी पर हिट करने में रीप्ले का बहुत बड़ा हाथ है और उसी रणनीति के तहत प्रो-कबड्डी में काम हो रहा है.
ग्राफिक्स
ये वर्तमान में खेल कवरेज का सबसे मजबूत और जरूरी काम बन गया है. इन ग्राफिक्स की वजह से ही दर्शकों को खेल के मूल ढांचे को समझने में काफी सहूलियत होती है. मैट पर ग्राफिक्स की उपस्थिति से स्क्रीन काफी खूबसूरत दिखता है.
माइक्स का उपयोग
सीजन-3 से ही स्टार ने रग्बी खिलाड़ियों के तर्ज पर कबड्डी के खिलाड़ियों को भी 'माइक' किया है. इन माइकों से फायदा यह है कि खिलाड़िओं के रिएक्शंस बेहतरीन तरह से दर्शकों तक सीधे पहुँचते हैं और इससे प्रसारण की गुणवत्ता भी बढ़ती है.
नए सीजन की शुरुआत
चार नई टीमों के साथ, प्रो-कबड्डी लीग के पांचवें सीजन का बिगुल बज चुका है. सिर्फ तीन सालों में, कबड्डी लीग ने एक लम्बा सफर तय किया है. पिछले चार सीजन के आंकड़े अपनी कामयाबी की कहानी खुद बयां करते हैं और पांचवां सीजन कई बदलाव के साथ एक नया इतिहास रचने जा रहा है.
पांचवें सीजन के दांव इसलिए भी बड़े हैं क्यूंकि पुरस्कार राशि को बढ़ाकर अब 8 करोड़ कर दिया गया है. टीम को जीतने पर 3 करोड़ रुपये की भारी राशि मिल जाएगी. उपविजेता को 1.8 करोड़ रुपए मिलेंगे तो वहीं तीसरा स्थान हासिल करने वाली टीम को 1.2 करोड़ रूपए मिलेंगे.
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