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जब ड्रेसिंग रूम का माहौल रहा जानदार,तब पैदा हो पाए खिलाड़ी शानदार

साल 2000 में गांगुली की एंट्री के साथ ही यह चीज भी ड्रेसिंग रूम में आई थी, 

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2007 वर्ल्ड कप की टीम इंडिया याद है आपको? सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, जहीर खान, सौरव गांगुली और वीरेंद्र सहवाग जैसे दिग्गजों से भरी थी. लेकिन फिर भी वर्ल्ड कप के पहले ही राउंड से शर्मनाक ढंग से बाहर हो गई. 2015 वर्ल्ड कप में बड़े-बड़े खिलाड़ी होने के बावजूद पाकिस्तानी टीम क्यों फिसड्डी रही ? क्यों कैरेबियन के अलग-अलग टापुओं से आने वाले गेल, पोलार्ड, ब्रावो और सिमंस जैसे दिग्गज वेस्टइंडीज क्रिकेट को उतना आगे नहीं ले जा पाए.

कारण था सिर्फ एक- “ड्रेसिंग रूम का माहौल’’

ये बात सच है कि आप चाहे कितने भी सुपर टैलेंटेड, हिम्मत वाले और अनुभवी खिलाड़ी हों, अच्छा आप तभी करते हैं जब मन खुश हो. जब आपको आस-पास के लोगों के अंदर से एक सकारात्मक ऊर्जा मिलती है तो तभी आप कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित होते हैं. अगर माहौल खराब है तो कितना भी जोर लगा लीजिए, कुछ हासिल नहीं होगा.

इस वक्त जो टीम इंडिया का हरएक खिलाड़ी आगे आकर जीत दिलाने की जिम्मेदारी लेता है और हर एक मैच में भारत को अपना नया मैच विनर मिल रहा है, उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है - फील गुड फैक्टर. मतलब खिलाड़ी ड्रेसिंग रूम में, टीम मीटिंग में अच्छा महसूस करते हैं तभी वो फील्ड पर अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं.
साल 2000 में गांगुली की एंट्री के साथ ही यह चीज भी ड्रेसिंग रूम में आई थी, 
( फोटो: BCCI )

इस वक्त टीम इंडिया में लगभग सभी खिलाड़ी बेहद युवा हैं . केदार जाधव, युजवेंद्र चहल और केएल राहुल जैसे नए खिलाड़ी ही टीम इंडिया को जीत भी दिला रहे हैं और इन सब की कामयाबी के पीछे सबसे बड़ा कारण है टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम का शानदार माहौल. हर एक खिलाड़ी एक दूसरे की सफलता पर खुश होता है तो वहीं विफलता पर मदद करता है. इस टीम में हर किसी को अपनी राय रखने का अधिकार है. माहौल दोस्ताना है तभी तो टीम में आने वाले नए-नए खिलाड़ियों को सामंजस्य बिठाने में दिक्कत नहीं आती.

विराट कोहली बहुत ही पॉजिटिव इंसान हैं और वैसा ही पॉजिटिव माहौल उन्होंने ड्रेसिंग रूम के भीतर बनाया है. टीम के अंदर कोई बाउंड्री नहीं है. हम जब भी चाहें अपने विचार उनके साथ शेयर कर सकते हैं.
अमित मिश्रा, क्रिकेटर, टीम इंडिया

दरअसल टीम इंडिया का ये माहौल कोई एक दम से नहीं बन गया. पिछले 17 सालों में कई कप्तानों ने इस टीम को एकजुट होकर खेलना सिखाया है. 2000 में फिक्सिंग कांड के बाद अलग-थलग हो चुकी टीम इंडिया को उस वक्त सौरव गांगुली जैसा लीडर नहीं मिलता, तो शायद आज हम सफलता के किस्से न सुना रहे होते.

2007 में ग्रेग चैपल के डंक से टीम इंडिया सिर्फ इसलिए उबर पाई क्योंकि उनके पास अनिल कुंबले जैसा एक बेहद समझदार व्यक्तित्व टीम में मौजूद था. इन दोनों दिग्गजों ने भारतीय क्रिकेट में अच्छे और खुशनुमा ड्रेसिंग रूम की आदत डाली. जिसे एमएस और आगे तक ले गए.

गांगुली की टीम के अच्छे माहौल में जहां सहवाग, युवराज, नेहरा और जहीर जैसे दिग्गज निकले तो वहीं धोनी ने टीम इंडिया को विराट कोहली जैसा हीरा दिया है. 2008 में जब विराट ने टीम इंडिया में एंट्री मारी थी, उस वक्त धोनी टीम इंडिया के सर्वे सर्वा थे. अगर उस वक्त माही, कोहली को उनके खेल की, विचारों की आजादी न देते तो आज कोहली इतने विराट न होते. धोनी की टीम के शानदार माहौल ने ही कोहली को इतना बड़ा खिलाड़ी बनाया.

हम टीम के अंदर एक ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जहां सभी खिलाड़ियों को लगे कि वे रणनीति का हिस्सा हैं. मेरा मतलब है कि रोहित शर्मा, ईशांत शर्मा और रविचंद्रन अश्विन जैसे सीनियर खिलाड़ियों के पास भी मेरे जितने अधिकार हैं. सभी खिलाड़ी टीम के लिए अच्छा करना चाहते हैं.
विराट कोहली, कप्तान, भारतीय क्रिकेट टीम

विराट भी अपने पुराने कप्तान के नक्शे कदमों पर चलते हुए खिलाड़ियों को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं. विराट की टीम में सबको अपनी बात रखने का हक है. सभी के अंदर एक दूसरे के लिए सम्मान का भाव है, यहां न कोई सीनियर है और न ही कोई जूनियर. तभी तो ये टीम लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही है.

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