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गोमती के 800 मीटर के उस ‘परफेक्शन’ के प्लानिंग की कहानी

गोमती मारिमुथु ने दोहा एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत को पहला गोल्ड दिलाया.

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दोहा में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में तमिलनाडु की गोमती मारिमुथु ने भारत को पहला गोल्ड मैडल दिलाया. गोमती ने 800 मीटर रेस में बहरीन के बेहतरीन एथलीट्स को पीछे छोड़ते हुए भारत की झोली में ये गोल्ड मैडल डाला.

गोमती की ये जीत इतनी आसान नहीं थी. 800 मीटर रेस के तकनीकी पहलु और गोमती की खुद के जीवन की परिस्थितियों को देखते हुए ये जीत इतनी आसान नहीं और न ही कोई छोटी उपलब्धि है.

मुश्किलों से उबर कर जीती रेस

तमिलनाडु ने त्रिची में एक छोटे से गांव से आने वाली 30 साल की गोमती ने दोहा में न सिर्फ अपना पर्सनल बेस्ट टाइम- (2.70 मिनट) निकाला, बल्कि चैंपियनशिप में भारत को पहला गोल्ड मेडल भी दिलवाया. वरिष्ठ खेल कमेंटेटर नोवी कपाड़िया बताते हैं कि गोमती ने अपनी जिंदगी की परेशानियों से आगे बढकर ये रेस जीती है.

ये जीत उनकी जिद की है. वो अभी 30 साल की हैं और उन्होंने लगातार असफलता देखी. मुझे उनके बारे में सबसे अच्छी बात ये लगी कि उन्होंने अपनी निजी जिंदगी की मुश्किलों पर जीत हासिल की है. उनके पिता का निधन हो गया थाऔर उनकी देखभाल करने के कारण गोमती कर्ज में डूब गई. उनके सामने कई तरह की पारिवारिक समस्याएं थीं. वो कई साल तक चोट और असफलता से जूझती रही. 
नोवी कपाड़िया, वरिष्ठ खेल विश्लेषक और कमेंटेटर
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ये रेस नहीं आसान

गोमती की रेस के बारे में जानने से पहले 800 मीटर रेस की मुश्किलों को जानना बेहद जरूरी है. उसके लिए नोवी कपाड़िया की इन बातों को पढ़ना चाहिए.

800 मीटर की दौड़ सबसे मुश्किल रेस में से है क्योंकि न तो ये स्प्रिंट है और न ही लंबी दूरी की रेस
नोवी कपाड़िया, वरिष्ठ खेल विश्लेषक और कमेंटेटर

गोमती की इस शानदार रेस की प्लानिंग के बारे में बात करते हुए नोवी बताते हैं कि 800 मीटर रेस सबसे मुश्किल रेस है. बड़े से बड़े एथलीट भी इसे आसानी से नहीं दौड़ पाए हैं.

800 मीटर सभी रेस में सबसे ऊपर है,क्योंकि एक एथलीट को इसमें अपनी रफ्तार को बनाए रखना होता है. सबेस्चियन को, एलियजैसे महान रेसर भी इसे एक स्प्रिंट की तरह पूरा नहीं कर पाए. आपको खुद की क्षमता को बचाए रखना होता है. ये एक चेस के खेल की तरह है जिसमें आपको रणनीति बनानी होती है.
नोवी कपाड़िया, वरिष्ठ खेल विश्लेषक और कमेंटेटर

रेस की कठिनाईयों के बारे में नोवी आगे बताते हैं-

“800 मीटर रेस में एथलीट अपनी लेन में नहीं रहते हैं. पहले ही मोड़ के बाद हर रेसर सबसे पास वाली लेन में आ जाता है. आपको इसी हिसाब से अपनी रणनीति बनानी होती है, क्योंकि आपको बांध कर भी रखा जा सकता है. केन्या के एथलीट ऐसा अच्छे से करते हैं. अगर कोई बड़ा प्रतिद्वंदी है, तो एक उसके आगे रहेगा और एक उसके पीछे, जिससे एथलीट को जगह नहीं मिल पाती है.”
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ये परफेक्शन की जीत है

गोमती ने अपनी रेस में आखिरी कुछ मीटर्स में अचानक तेजी पकड़ी और सभी रेसर्स को पीछे छोड़ते हुए गोल्ड पर कब्जा कर लिया. गोमती की इसी रणनीति के बारे में नोवी कपाड़िया बताते हैं-

अगर आप 10 मीटर पीछे रहकर रेस में दौड़ रहे हो और आपसे आगे वाले रनर का आत्मविश्वास बढ़ जाता है और फिर वो अपनी गति बढ़ाती है, तो मतलब आपने काफी देर कर दी. इस सब में ये तय करना जरूरी है कि आप कब अपनी रफ्तार बढाएंगे. गोमती ने जो प्लान किया वो काम कर गया, थोड़ा भाग्य भी साथ होता है. उन्होंने बिल्कुल आखिर में अपनी स्पीड अचानक बढ़ाई जिसके कारण उन्होंने बहरीन के टॉप एथलीट्स को भी पीछे छोड़ दिया और गोल्ड जीत लिया. अगर बहरीन की दोनों रनर्स ने थोड़ा पहले अपनी रफ्तार बढ़ा दी होती तो गोमती उन्हें नहीं पछाड़ पाती. तो ये सब बिल्कुल परफेक्शन के साथ प्लान किया गया था.

नोवी इसका श्रेय गोमती के कोच को भी देते हैं और कहते हैं कि गोमती के कोच जेएस भाटिया ने गोमती पर भरोसा बनाए रखा. गोमती की इच्छा शक्ति शानदार है. उम्मीद है कि ये जीत उनके लिए सफलता की पहली सीढ़ी बनेगी और वो लगातार अच्छा प्रदर्शन करती रहेंगी.

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