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चंद्रग्रहण का दिखा अद्भुत नजारा, NASA ने बढ़ाया रोमांच

सुपर ब्लू ब्लड मून 31 जनवरी है, इस खगोलीय घटना से पहले समझिए कि इस दौरान होगा क्या? और क्या है इसके मायने

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स्नैपशॉट
  • शुरू हुआ चंद्र ग्रहण
  • 1 घंटा 16 मिनट तक चलेगा ग्रहण
  • इसे सीधे देखने में कोई दिक्कत नहीं है
  • टेलीस्कोप से देखने से बढ़िया व्यू मिलेगा
  • इन दौरान खाने-पीने से परहेज की जरूरत नहीं
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NASA ने चंद्रग्रहण दिखाने का इंतजाम किया

क्या आपके मन में भी ये सवाल उठता है कि 'सुपर ब्लू ब्लड मून' में 'ब्लडमून', 'सुपरमून', 'ब्लूमून' क्या है? अनोखे चंद्रग्रहण की ये घटना धरती के लिए खास क्यों है? और 'सुपर ब्लू ब्लड मून' दिखता कैसा है?

इन सारे सवालों के जवाब आपको यहां मिलेंगे, लेकिन इससे पहले जान लीजिए कि अगर आप पिछली बार 'सुपर ब्लू ब्लड मून' का दीदार नहीं कर पाए तो आपके पास बुधवार यानी 31 जनवरी को मौका होगा. इससे पहले तीन दिसंबर 2017 और एक जनवरी 2018 को काफी नजदीक से चांद दिखा था और सुपरमून की झलक की इस तिकड़ी में शायद ये इस साल आखिरी मौका होगा.

इस दौरान तीन खगोलीय घटनाएं एक साथ होंगी-

  • सुपरमून
  • ब्लू मून
  • ब्लड मून
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क्या है 'सुपर ब्लू ब्लड मून'?

दरअसल, ये एक आकाशीय घटना है जिसमें चांद, धरती के सबसे पास होता है. साथ ही ये 14 फीसदी ज्यादा बड़ा दिखेगा. अब इसे ब्लड मून क्यों कहते हैं?

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ब्लड मून?

इसे ब्लड मून इसलिए कहते हैं क्योंकि पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान चांद जब धरती की छाया में रहेगा तो इसकी आभा रक्तिम हो जाएगी जिसे रक्तिम चंद्र या लाल चांद कहते हैं. ऐसा तब होता है जब चांद पूरी तरह से धरती की आभा में ढक जाता है. ऐसे में भी सूरज की 'लाल' किरणें 'स्कैटर' होकर चांद तक पहुंचती है.

सुपर ब्लू ब्लड मून 31 जनवरी है, इस खगोलीय घटना से पहले समझिए कि इस दौरान होगा क्या? और क्या है इसके मायने
सुपरब्लू मून की स्थिति
(फोटो: NASA)

अब सवाल ये है कि सिर्फ लाल रंग का ही चांद क्यों चमकता है. ये 'स्कैटरिंग' के सिद्धांत के कारण होता है. सूरज की किरणें जब धरती के वातावरण से होकर गुजरती हैं, तो वातावरण में मौजूद कणों के कारण किरणों के नीले, वायलेट रंग अपने आप फिल्टर हो जाते हैं और वेवलेंथ ज्यादा होने के कारण सिर्फ लाल और ऑरेंज कलर धरती के वातावरण से गुजरकर चांद के पास तक पहुंच पाता है.

Q- जानकारी

स्कैटरिंग और वेवलेंथ के कारण ही दूसरे रंगों की अपेक्षा लाल रंग हमें कोहरे में भी दूर तक दिखाई पड़ जाता है.

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सुपर मून क्यों है?

इस घटना के वक्त चांद का आकार ज्यादा बड़ा दिखता है, साथ ही ये धरती के सबसे पास भी होता है. ऐसे में इसे सुपरमून कहना तो जायज है. इस घटना के वक्त चांद 14 फीसदी बड़ा दिखेगा.

ब्लू मून का क्या मतलब है?

यहां ब्लू का मतलब चांद के कलर के लिए नहीं है. दरअसल, जब एक महीने में दो बार पूर्णिमा आती है यानी दो बार चांद पूरा निकलता है तो दूसरी बार के पूर्णिमा के चांद को ब्लू मून कहा जाता है. 31 जनवरी को ऐसा ही संयोग है, इससे पहले 2 जनवरी को पूरा चांद निकला था.

कहां-कहां दिखेगा ये खास चांद?

सुपर ब्लू ब्लड मून 31 जनवरी है, इस खगोलीय घटना से पहले समझिए कि इस दौरान होगा क्या? और क्या है इसके मायने
(फोटो: NASA)

पूरे उत्तरी अमेरिका, प्रशांत क्षेत्र से लेकर पूर्वी एशिया में इस दिन पूर्ण चंद्रग्रहण दिखेगा. अमेरिका, अलास्का, हवाई द्वीप के लोग 31 जनवरी को सूर्योदय से पहले चंद्र ग्रहण देख पाएंगे जबकि मध्य पूर्व के देश समेत एशिया, रूस के पूर्वी भाग, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सुपर ब्लू ब्लडमून 31 जनवरी को सुबह चंद्रोदय के दौरान लोग देख पाएंगे.

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वैज्ञानिकों को क्या मिलेगा?

पूरी तरह से पृथ्वी से ढक जाने के कुछ घंटों के बाद एक बार फिर चांद सूरज की किरणों की जद में आएगा. यानी कुछ ही घंटों के अंतराल में चांद पर 'बेहद सर्द' से 'बेहद गर्म' जैसे माहौल होगा. ऐसे में वैज्ञानिकों को ये समझने का मौका मिलेगा कि चांद के जमीन को अगर अचानक से बिलकुल ठंडा कर दिया जाए तो क्या होगा? इससे चांद की मिट्टी और उसके जमीन के बारे में जानकारी जुटाई जा सकेगी. समझा जा सकेगा कि कैसे सालों में चांद बदल रहा है.

ऐसी घटना से वैज्ञानिकों को चांद के मौसम को भी समझने का पूरा मौका मिल सकेगा.

(Source: NASA)

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