केमिस्ट्री का नोबेल अवॉर्ड क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के डेवलपमेंट के लिए जैक्यूज डुबोचेट, जोएचिम फ्रैंक और रिचर्ड हेंडर्सन को देने का ऐलान किया गया. रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंस ने बुधवार को ये ऐलान करते हुए कहा कि इस सिस्टम के डेवलपमेंट से बायोकेमिस्ट्री एक नए युग में जाएगी.
स्विट्जरलैंड, अमेरिका और ब्रिटेन के वैज्ञानिक
स्विट्जरलैंड के लौसान्ना यूनिवर्सिटी से जुड़े डुबोचेट, न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय के फ्रैंक और ब्रिटेन के एमआरसी लैबोरेटरी ऑफ मॉलीक्यूलर बायोलॉजी से जुड़े हेंडर्सन ने बायोमॉलीक्यूल्स की 3डी इमेजिंग के लिए सिस्टम डेवलप किया है.
बता दें कि अबतक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप्स को लंबे समय तक केवल मरी हुई चीजों के लिए सही माना जाता था, क्योंकि इसके शक्तिशाली इलेक्ट्रॉनिक रे से जैविक पदार्थ बर्बाद हो जाते थे.
किस वैज्ञानिक का क्या है योगदान?
- हेंडरसन ने 1990 में ही इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल कर एटॉमिक स्ट्रक्चर के के प्रोटीन का थ्री डी इमेज लेने में सफलता पाई थी.
- फ्रैंक ने इमेज प्रोसेसिंग प्रक्रिया विकसित की, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप के 2डी इमेज का एनालिसिस कर 3डी आकार दिया जा सकता था.
- वहीं डुबोचेट ने इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोपी में पानी की प्रक्रिया को जोड़ दिया. पानी इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप के वैक्युम में भाप बनके उड़ गया, जिससे बायोमॉलीक्यूल्स खत्म हो गया.
1980 के शुरुआत में डुबोचेट ने पानी को विट्रीफायिंग करने में सफलता प्राप्त की. उन्होंने पानी को इतनी तेजी से ठंडा कर दिखाया कि ये ठोस अवस्था में बदल गया. इससे निर्वात में भी बायोमॉलीक्यूल्स को अपने प्राकृतिक आकार में रहने में मदद मिली.
इन सब खोजों के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप से हर तरह का काम लिया जा सकता है. रिसर्चर अब किसी बायोमॉलीक्यूल्स के 3डी आकार को आसानी से देख सकते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)