याहू आंसर्स इंटरनेट के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने और सबसे अधिक स्टोर किए गए क्वेश्चन एंड आंसर प्लेटफार्मों में से एक है, लेकिन ये 4 मई से बंद कर दिया जाएगा. आज इसका आखरी दिन है. लेकिन जिस जुनून के साथ इस प्लेटफॉर्म को तैयार किया गया था वो शायद प्वाइंट्स लेने की होड़ मचाने वाले यूजर्स की भीड़ और उसके बेसिरपैर के सवालों और उसके मिलनेवाले जवाबों के चलते ठंडा पड़ गया.
नतीजतन इस प्लेटफॉर्म को यूजर्स ने गंभीरता से लेना कम कर दिया, जिससे यूजर्स और विजिटर्स की तादाद घटने लगी. प्रतिस्पर्धा के दौर में रेडिट, क्वोरा और दूसरी स्पर्धी प्लेटफॉर्म्स जैसी कंपनियां इससे आगे निकल गईं. यही नहीं कंपनी मैनेजमेंट की दूरदर्शिता की कमी भी एक बड़ी वजह मानी जाती है जब उसके पास एक नहीं कई मौके आए थे खुद को मजबूत और बेहतर बनाने के लिए.
लिहाजा बीते महीने, 5 अप्रैल को कम्पनी को ऐलान करना पड़ा कि 20 अप्रैल 2021 के बाद याहू आंसर्स रीड-ओनली मोड याने केवल पढ़े जा सकने लायक की स्थिति में उपलब्ध रहेगा. 20 अप्रैल के बाद यूजर्स इस प्लेटफॉर्म पर न तो अपने मनचाहे सवाल ही कर सकेंगे और ना ही कहीं से जवाब ही मिलेगा. न ही बेस्ट आंसर्स वोट किए जा सकेंगे और न ही बेस्ट आंसरर जवाब देकर ज्यादा प्वाइंट ही हासिल कर सकेंगे.
हालांकि याहू आंसर्स अपने मेंबर्स के लिए 30 जून तक अपने पोस्ट किए गए क्वेश्चन और आंसर्स, इमेज वगैरह के डेटा निकालने की मोहलत दे रहा है. लेकिन उसके बाद इसके सारे डेटा अपने आप ही यूजर्स की पहुंच से बाहर हो जाएंगे. तो अगर आप भी याहू आंसर्स के मेंबर या यूजर्स हैं तो हम आपको इसकी पूरी कहानी बताने जा रहे हैं कि कैसे इसकी शुरुआत हुई और अपने शीर्ष से पतन तक का सफर जो बंद करने के ऐलान तक आ पहुंचा, की दास्तां क्या है.
याहू आंसर्स कैसे शुरु हुआ
याहू की शुरुआत 2 मार्च, 1995 में हुई थी. इसकी स्थापना जेरी यांग और डेविड फाइलो ने मिलकर की थी. ये बेवसाइटों को खोजने के लिए सर्च इंजन के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता था. इसके बाद धीरे धीरे ये वेबसाइट विकसित होती गई और इंटरनेट के बेजोड़ इस्तेमाल से याहू आंसर्स की शुरुआत हुई. आज से 16 साल पहले 28 जून 2005 को याहू आंसर्स की शुरुआत हुई.
अंग्रेजी के साथ करीब दर्जन भर भाषाओं जिसमें चाइनीज, फ्रेंच, जर्मन, इंडोनेशियन, इटालियन, कोरियन, पुर्तगाली, स्पेनिश, थाई और वियतनामी भाषाओं में सवाल-जवाब उपलब्ध कराने की सेवाएं देता आया है. इसके बीटा वर्जन की सेवाएं 8 जनवरी, 2005 से 14 मई 2006 तक दी गईं. आम जन के लिए ये 15 मई 2006 से उपलब्ध कराया गया.
दरअसल 'याहू आंसर्स' को 'आस्क याहू' के बदले लाया गया था जो मार्च 2006 में बंद हो चुका था. इस साइट में पार्टिसिपेंट्स को जुटाने के लिए यूजर्स को पहले प्वाइंट्स कमाने का भी मौका मिलता था ताकि ज्यादा से ज्यादा प्वाइंट्स लेनेवाला यूजर ज्यादा से ज्यादा सवाल कर सके और वेबसाइट पर टिका रहे. उम्मीद थी कि इससे यूजर्स को जुटाया जा सकेगा.
यूजर्स तो जुटने लगे लेकिन परिणाम ये रहा कि इस मंच पर ऐसे बेतुके सवालों की झड़ियां लगा दी गईं जिसकी सीमा नहीं और जवाब भी ऐसे दिए गए जिसका कोई तुक नहीं. जाहिर है ऐसे में इस प्लेटफॉर्म की इमेज खराब होने लगी. मीम्स बनने शुरू हो गए. याहू की वर्तमान मिलकियत वेरिजॉन मीडिया ग्रुप के पास है, जिसने याहू आंसर्स के बारे में इस तरह का फैसला लिए जाने की जानकारी दी.
जब बड़ी हस्तियां भी पूछती थीं याहू आंसर्स पर सवाल
याहू आंसर्स की भले ही आज कितना भी मजाक और मीम्स क्यों न बना लिया जाए लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब इसकी पॉप्युलैरिटी इतनी ज्यादा थी कि कई बड़ी हस्तियों ने भी इस पर आकर सवाल किए हैं.
वीकिपीडिया के मुताबिक, 2008 में अमेरिका में प्रेसिडेंशियल चुनाव प्रचार अभियान के दौरान हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा, जॉन मैक्लेन और मिट रोमनी जैसी राजनीतिक हस्तियों ने सवाल पूछे हैं. यूनिसेफ के 9 राजदूतों तक ने सवाल किया है.
इसी तरह याहू इंडिया की शुरुआत के दौर में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी सवाल कर चुके हैं. दूसरी अंतरराष्ट्रीय हस्तियों में जॉर्डन की क्वीन रेनिया, शशि थरूर, अल गोर, मोहम्मद यूनिस, स्टीफन हॉकिन्स जैसे लोग भी याहू आंसर्स में सवाल पूछ चुके हैं.
पतन की वजहें
पूरी दुनिया में 200 मिलियन यूजर्स और हर दिन 15 मिलियन यूजर्स होने का दावा करनेवाले याहू आंसर्स का पतन आखिर क्यों होने लगा? इंटरनेट वर्ल्ड में याहू के साथ 1998 तक सबकुछ ठीक चल रहा था. इस साल गूगल लॉन्च हुआ और याहू के सामने कड़े प्रतिस्पर्धि ने जन्म ले लिया था.
माना जाता है कि याहू के पतन के पीछे कई वजह हैं जिसमें याहू कि बेतुके अधिग्रहण जिसमें ब्रॉडकास्ट.काम, जियोसिटीज़, ओवरट्यून सर्विस इंक, फ्लिकर, राइट मीडिया, टम्बलर जैसी कम्पनियां शामिल हैं.
इसी तरह याहू ने कई मौके गंवाएं जिसमें सबसे बड़ा मौका था गूगल के स्थापकों लैरी पेज और सर्जिन ब्रिन के सर्च इंजन एलगॉरिथम को लगभग औनेपौने दाम 1 मिलियन डॉलर में खरीदने की ऑफर को ठुकराना. इसके बाद गलत सीईओ के चयन के बाद फेसबुक जैसी कम्पनी को उसके शुरुआती दौर में 1.1 मिलनयन डॉलर्स की मामूली कीमत को ओवरवैल्यु यानी ज्यादा कीमत बताकर मार्क जकरबर्ग को न कहना भी सबसे बड़ी गलतियों में गिना जाता है. कुल मिलाकर दूरदर्शिता की भारी कमी के कारण याहू वो विकास हासिल न कर पाया जिसकी अपेक्षा की जा रही थी.
नासमझदारी का सिलसिल यहीं नहीं जाकर रुका. माइक्रोसॉफ्ट जैसी कम्पनी ने याहू को मात्र 44.6 मिलियन डॉलर्स में कम्पनी को खरीदने की ऑफर दी थी लेकिन याहू ने इसे भी खरीदने में दिलस्पी न दिखाकर अपने हाथ से एक स्वर्णिम मौका गंवा दिया. यही नहीं समय रहते गूगल ने ऑटोमेडेट इंडेक्सिंग और रियल टाइम सर्च बेस्ड सर्विस प्रोवाइड करना शुरू किया जबकि याहू मैन्युअल इंडेक्सिंग सिस्टम से बाहर नहीं निकला, जिसका नुकसान याहू को उठाना पड़ा.
इंडिया टुडे बजफीड न्यूज को आर्काइव टीम के सदस्य जेसन स्कॉट के हवाले से बताते हैं कि याहू को भले ही वेरिजॉन ने खरीद लिया था लेकिन यूजर्स के कंटेट्स को लेकर अलग थलग बने रहे. और जो भी कदम उठाए गए वह बेसिरपैर, कम जिम्मेदारियोंवाला, एक्सपोजर को खत्म करनेवाला साबित हुआ. हम 4 साल पहले ही इससे जुड़े थे और हम अनुमान लगा सकते थे कि आगे इसका हश्र क्या होनेवाला है.
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