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अब वीडियो गेम खेलने पर मम्मी नहीं करेंगी तुड़ाई!

फेसबुक पर कैंडी-क्रश का निमंत्रण भेजने वाले अपने दोस्तों पर अगर आप भी झुंझलाते हैं तो ये खबर आपके लिए है! 

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फेसबुक पर कैंडी-क्रश और एंग्री-बर्ड खेलने का निमंत्रण भेजने वाले अपने दोस्तों पर अगर आप भी झुंझलाते हैं तो ये खबर आपके लिए है. दोस्तों पर तिलमिलाना छोड़िए क्योंकि मुमकिन है कि वो आपके अंदर के स्पोर्ट-स्टार को पहचान रहे हों!

वीडियो-गेमिंग या कंप्यूटर गेमिंग को दुनियाभर में अब ‘ई-स्पोर्ट’ के नाम से जाना जाता है. भारत में भी कई बच्चे और नौजवान अब ‘खेल’ के तौर पर ‘ऑनलाइन गेमिंग’ को करियर के रुप में अपना रहे हैं.

सोलह साल के सिमर हाल ही में एक बूट कैंप से लौटे हैं. दो हफ्ते दिन-रात की मेहनत और एक ही काम-कंप्यूटर पर गेम खेलना. ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे खराब-खेलोगे-कूदोगे बनोगे नबाव’, की कहावत मानो सिमर के लिए ही तोड़-मरोड़ कर बनाई गई थी.

सिमर ‘टीम-ब्रूटैलिटी’ नाम की एक ई-स्पोर्ट टीम के सदस्य हैं, जो भारत ही नहीं दुनिया भर में कई कंप्यूटर-गेमिंग-टूर्नामेंट जीत चुकी है.

खेल में नाम का ‘खेल’

गेमिंग की दुनिया में ‘psy’ के नाम से मशहूर सिमर ‘psy’ सेठी के इस नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है.

किसी भी वीडियो गेम की शुरुआत से पहले एक खिलाड़ी के तौर पर खुद को रजिस्टर करना पड़ता है. कोई भी कभी अपना असली नाम नहीं डालता.

गेमिंग की दुनिया में आपको ‘Venom’, ‘Maximo’, ‘Zidan’, ‘Psy’ जैसे कई नाम मिल जाएंगे. ये एक तरह की स्टाइल स्टेटमेंट है.

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गेमिंग पार्लर में बन रहे हैं करियर

पंद्रह साल के केशव कुलश्रेष्ठ से मैं ऐसे ही एक पार्लर में मिली.

केशव कहते हैं,

शुरुआत में मेरी मां मुझसे बेहद नाराज़ होती थीं. उन्हें लगता था कि मैं कंप्यूटर पर अपना गुस्सा निकाल रहा हूं. काफी समय बाद उन्हें समझ आया कि कई लोग मिलकर गेम खेलते हैं. मैं उन्हें नहीं देख सकता, वो मुझे नहीं देख सकते लेकिन हम एक टीम हैं.

सिमर की तरह केशव भी किसी ई-स्पोर्ट का हिस्सा होना चाहते हैं. इसकी तैयारी वो शुरु कर चुके हैं.

वीकेंड पर मैं सुबह दस बजे से खेलना शुरु करता हूं, तीन बजे लंच-ब्रेक लेता हूं और फिर रात दस बजे तक खेलता हूं. अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों से सीखने के लिए मैं यू-ट्यूब पर ब्रॉडकास्ट होने वाले टूर्नामेंट भी देखता हूं. भारत में फिलहाल बहुत कम ई-स्पोर्ट टीम हैं, जबतक कोई अच्छी टीम मुझे न चुने मेरा करियर आगे नहीं बढ़ेगा.

केशव

महंगा शौक है गेमिंग

भारत में कुछ साल पहले तक गेमिंग में करियर बनाना मुश्किल ही नहीं लगभग नामुमकिन था. ज्यादातर गेमिंग कंसोल बेहद महंगे थे, ऑनलाइन खेलने के लिए इंटरनेट स्पीड बेहद धीमी थी और माता-पिता बच्चों को गेमिंग से दूर रखना चाहते थे. लेकिन भारत में अब डिजिटल एंटरटेनमेंट की धूम है और भारतीय भी अब कैंडी-क्रश और एंग्री-बर्ड के दीवाने हैं.

साल 2015 में आए इंडियन गेमिंग रिव्यू के मुताबिक भारत में चार से पांच करोड़ लोग अपने स्मार्ट-फोन और मोबाइल फोन पर ई-गेम खेलते हैं. गेमिंग कंसोल आमतौर पर महंगे हैं और इसलिए छोटे-बड़े शहरों में अब हाई-एंड गेमिंग कैफे खुल रहे हैं.

वीडियो-गेमिंग के शौकीनों ने भारत में एक नए तरह के ‘क्लब-कल्चर’ की शुरुआत की है.

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एक खेल के तौर पर गेमिंग भले ही भारत में नया हो लेकिन कुछ लोग है जो इसके जरिए शोहरत कमा चुके है.

अट्ठाइस साल के शांतनु बसु 2014 में अचानक सुर्खियों में आए जब चीन में हुए फीफा ऑनलाइन इंटरनेशनल ई-स्पोर्ट टूर्नामेंट में उन्हें तीसरा स्थान मिला. वीडियो-गेमिंग के रोमांच को जीने वाले शांतनु की कहानी खुद कम रोमांचक नहीं.

सात साल की उम्र में पैंक्रियाइटिस के शिकार हुए शांतनु बसु का ज्यादातर समय एक कमरे में बीतता था. इससे उबरने के लिए उन्होंने वीडियो गेम्स का सहारा लिया.

साल 2007 में वीडियो गेम्स की दीवानगी उन्हें मुंबई ले गई, मुंबई में उन दिनों वर्ल्ड साइबर गेम कॉंप्टीशन चल रहा था. मेरे पास टिकट के पैसे नहीं थे. मैं किसी तरह मुंबई पहुंचा, फुटपॉथ पर सोया और जहां से जो मिला खाया.

टूर्नामेंट शुरु हुआ और मैं एक के बाद एक राउंड्स जीतता गया. टूर्नामेंट में तीसरी जगह पाने के बाद रातों-रात मेरी ज़िंदगी बदल गई. एक गेमिंग कंपनी ने मुझे नौकरी दी और मैं फ्लाइट लेकर वापस घर पहुंचा.

पिछले दो साल में बसु भारत के लिए कई अंतरराष्ट्रिय और एशियाई प्रतियागिताएं जीत चुके हैं.

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गेमिंग में करियर

भारत में डॉउनलोड होने वाले ऐप्स में गेमिंग ऐप सबसे आगे हैं. फिकी-केपीएमजी की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक भारत में वीडियो गेमिंग उद्योग 45.8 अरब रुपए तक पहुंच जाएगा. जानकार मानते हैं कि भारत में वीडियो-गेमिंग का बढ़ता क्रेज़ गेमिंग-खिलाड़ियों के लिए एक बेहतरीन मौका है.

गेमिंग को अपनाने वाले के लिए करियर के कई रुप हो सकते हैं. आप एक खिलाड़ी होने के अलावा, शाउट-कास्टर या कमेंटेटर, टीम-प्रबंधक, कोच, गेमिंग एजेंसी के मालिक या गेम डेवलपर बन सकते हैं.

खिलाड़ियों को चुस्त रखने के लिए मेडिटेशन-सैशन, कड़े अनुशासन के साथ होने वाले बूट कैंप, ट्रैंडी पोशाकें और आयोजकों की लंबी सूची. भारत की उभरती हुई ई-स्पोर्ट्स टीम अब प्रबंधकों के जरिए बात करती हैं और पेशेवर ढंग से काम करना सीख रही हैं.

इस बीच जो भारतीय मां-बाप खुद को मेडिकल और इंजीनियरिंग की मानसिकता से बाहर निकाल कर क्रिकेट और टेनिस अकादमियों से रुबरू करा रहे हैं उन्हें अब वीडियो-गेमिंग के स्वागत के लिए तैयार हो जाना चाहिए.

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