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दलित युवाओं के मन की बात: ‘मायावती हिताय चंद्रशेखर सुखाय’ का नारा

2014 में बीजेपी को दिया था वोट, अब बीजेपी से नाराजगी.

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क्या दलित समाज में मायावती का दबदबा अब भी कायम है? क्या 2019 लोकसभा चुनाव में दलित समाज पीएम मोदी का साथ देगा? भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद की रिहाई मायावती की दलित राजनीति के लिए चुनौती तो नहीं? जैसे-जैसे लोकसभा का चुनाव नजदीक आ रहा है, ये सारे सवाल लोगों के मन में उठने लगे हैं.

ऐसे ही सवालों के जवाब जानने और दलित युवाओं के मन की बात सुनने के लिए क्विंट पहुंचा मायावती के गढ़ सहारनपुर और उसके आसपास के इलाकों में.

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'चंद्रशेखर हमारा हीरो है'

सबसे पहले हम मुजफ्फरनगर के खतौली के चांद समद गांव पहुंचे, जहां हमारी मुलाकात करीब 20 से 25 युवाओं से हुई. जब हमने इन लोगों से भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर के बारे में जानना चाहा, तो वहां खड़े लगभग हर युवा ने बुलंद आवाज में कहा कि चंद्रशेखर हमारा हीरो है.

अब सवाल ये था कि क्यों ये लोग चंद्रशेखर को अपना हीरो मान बैठे हैं? तब ही रवि कुमार ने सवाल खत्म होने से पहले ही कहा कि चंद्रशेखर युवा हैं और समाज को जागरूक करने का काम कर रहे हैं, अन्याय के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई थी.

यहां पर ये लोग 5 मई 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में हुई जातीय हिंसा का जिक्र कर रहे हैं. इनके हिसाब से ठाकुर और दलित समाज के बीच की लड़ाई में दलित समाज के लिए चंद्रशेखर ने आवाज उठाई और उनके लिए वो 16 महीने जेल में रहे.

'मायावती बस अपनी राजनीति के बारे में सोचती हैं'

जब हमने इनसे चंद्रशेखर की तारीफ के बीच में मायावती के बारे में पूछा, तो तुरंत ही 22 साल के कपिल कुमार ने कहा कि वो कभी भी खुलकर सामने नहीं आती हैं. वो राजनीति के तौर पर ऐसा बोल लेंगी, लेकिन बिना राजनीतिक दल वाले चंद्रशेखर भाई ने हमें खुल कर सपोर्ट किया. इन युवाओं में मायावती को लेकर नाराजगी दिखी. वहीं कुछ युवा चंद्रशेखर को राजनीति से दूर रहने की भी सलाह देते नजर आए.

चंद्रशेखर ने मायावती को बताया था अपनी बुआ

अगला पड़ाव था सहारनपुर के पास का लखनौर गांव. यहां हमारी मुलाकात डिप्लोमा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके पारुल कुमार से हुई. पारुल ने मायावती और चंद्रशेखर के बीच बुआ-भतीजे मुद्दे पर कहा, "अगर चंद्रशेखर भाई मायावती को अपनी बुआ बता रहे हैं और मायावती उनको अपना लेती हैं, फिर तो मायावती और चंद्रशेखर दोनों के साथ हम हैं. लेकिन अगर मायवती चंद्रशेखर को नहीं अपना रही हैं, तो फिर हमें अकेले चंद्रशेखर के साथ ही रहना पड़ेगा."

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'हमारे लिए जो भी किया, वो मायावती ने ही किया है'

लाखनौर गांव से निकले के बाद हम सहारनपुर शहर पहुंचे, जहां हमारी मुलाकात संत रवि‍दास छात्रावास में रहने वाले करीब 8-9 छात्रों से हुई. इन पढ़े-लिखे युवाओं के लिए मायावती उनकी अावाज हैं. इसी दौरान हमारी मुलाकात सरकारी नौकरी के लिए एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कर रहे आदित्य कुमार से हुई. आदित्य बताते हैं:

हमारा फुल सपोर्ट बीएसपी को ही रहेगा. अभी तक हमारे लिए जो भी किया है, वो मायावती ने ही किया है. हमारा जो प्रतिनिधित्व हुआ है, वो बीएसपी की तरफ से ही हुआ है. अगर चंद्रशेखर बीएसपी को सपोर्ट करके राजनीति में आते हैं, तो कोई प्रॉब्लम नहीं है. हमें अगर वो किसी और पार्टी में जाते हैं, तो हम उनका साथ नहीं देंगे.

'दलित समाज बंट गया तो फायदा बीजेपी को होगा'

जब इन लोगों से हमने मायवती और चंद्रशेखर आजाद रावण के बारे में जानना चाहा, तो ज्यादातर का ये मानना था कि मायावती और चंद्रशेखर को मिलकर रहना होगा.

अगर दलित समाज बंट गया और कुछ मायावती के साथ, कुछ चंद्रशेखर के साथ चले गए, तो कुछ फायदा नहीं होगा. अगर बहन मायावती बोलती हैं कि चंद्रशेखर से मेरा कोई रिश्ता नहीं है, तो गलत है. है तो उनका ही खून, एक समाज से आते हैं दोनों.
छत्रपाल सिंह, संत रवि‍दास छात्रावास
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क्या कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और BSP का गठबंधन होना चाहिए?

2019 का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे उत्तर प्रदेश में गठबंधन को लेकर बातें जोर पकड़ रही हैं. इसी मुद्दे को लेकर क्विंट ने इन दलित युवाओं के मन की बात भी जाननी चाही.

गठबंधन तो जरूर होना चाहिए. बीजेपी इतना आगे बढ़ चुकी है कि उसे बिना गठबंधन के रोक पाना मुश्किल है. मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. अगर गठबंधन दोनों पार्टियों में होता है और मायावती प्रधानमंत्री बनती हैं, तो बहुत खुशी की बात होगी. 
गौतम, संत रविदास हॉस्टल, सहारनपुर

2014 में बीजेपी को दिया था वोट, अब बीजेपी से दिखी नाराजगी

अगला पड़ाव था कुम्हार हेड़ा गांव. जिस गांव के लोगों ने 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के वादों पर यकीन किया था, उन्हें अब हर वादा झूठा लग रहा है. बेरोजगारी और सुरक्षा को लेकर इनके अंदर गुस्सा है. यहां हमारी मुलाकात शिवम से हुई. शिवम ने 2014 में बीजेपी को जिताने के लिए काम किया था, लेकिन इस बार शिवम के मन की बात कुछ और है.

हम बीएसपी को इसलिए वोट देंगे, क्योंकि हम काम से भी, नाम से भी बदनाम बीएसपी के लिए ही हैं. लोग कहते हैं दलित समाज है, मायावती को ही वोट देगा. 2014 में मोदी जी जब चुनाव के लिए रैली कर रहे थे, मेनिफेस्टो में उन्होंने युवाओं को आगे लाने की बात कही थी. उसी को देखते हुए हमने युवाओं को एक जगह करके नरेंद्र मोदी को वोट देने का काम किया था. अब बीजेपी सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ. केंद्र सरकार में नौकरी बहुत कम है
शिवम, कुम्हार हेड़ा गांव

2019 लोकसभा चुनाव जीतना किसी राजनीतिक पार्टी के लिए अहम है. ये चुनाव शायद उतना ही जरूरी सहारनपुर और इसके आसपास के युवाओं के लिए भी है.

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