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त्रिपुरा जीत के बाद, बीजेपी के सियासी फॉर्मूले को समझना जरूरी है

बंगाल, केरल और ओडिशा पर बीजेपी की निगाह

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नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए खुशियों की सौगात लेकर आए हैं. पार्टी में जश्न का माहौल है. क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर, संजय पुगलिया इस जीत के मायनों का विश्लेषण करते हुए कहते हैं, “ये जीत, संख्या के हिसाब से बहुत बड़ी नहीं कही जा सकती लेकिन क्वालिटी के हिसाब से बेशक ये एक बड़ी जीत है. 25 साल बाद लेफ्ट के किले को ढहाना बीजेपी और संघ के काडर के लिए बड़ी बात है. यही वजह है कि पार्टी इस जीत का जमकर जश्न मना रही है.”

आपको बता दें कि त्रिपुरा में बीजेपी ने माणिक सरकार के नेतृत्व वाले लेफ्ट को धूल चटाई है. बीजेपी गठबंधन ने 43 सीट अपने नाम कर इतिहास रच दिया. बीजेपी इसे विचारधारा की जीत के तौर पर भी पेश कर रही है. पार्टी कह रही है कि देश में लेफ्ट से जुड़ी विचारधारा खत्म हो चुकी है. ऐसे बयानों को एक तरह से केरल को कब्जाने के पैंतरे के तौर पर भी देखा जा रहा है. संजय पुगलिया के मुताबिक लेफ्ट का किला ढहाने के बाद अब बीजेपी के पास खुद को पूरे भारत की पार्टी बताने का अच्छा मौका है. बीजेपी नई जमीन तलाश रही है, नए ठिकानों, नए वोटरों पर दावा जता रही है. त्रिपुरा जीत का बीजेपी के लिए प्रतीकात्मक महत्व काफी ज्यादा है.

बीजेपी की निगाह बंगाल, केरल और ओडिशा पर भी है हालांकि बंगाल में पार्टी को दीदी के चैलेंज का सामना करना पड़ेगा.

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बीजेपी की लोच, बाकी दलों में सोच

बीते कुछ समय में बीजेपी ने नॉर्थ-ईस्ट के लिए जो रणनीति अपनाई है, उसने पार्टी के भीतर की जबर्दस्त लोच यानी फ्लेक्सिबिलिटी को दिखाया है. विरोधी इसे मौकापरस्ती का नाम देते हैं. नॉर्थ-ईस्ट में बीफ के मुद्दे पर पार्टी पलट गई. नगालैंड में NDF की जगह NDPP का दामन थाम लिया. पार्टी पर टीएमसी और कांग्रेस से उम्मीदवार तोड़ने का आरोप भी खूब लगा. लेकिन, जीत का जायका चखने के बाद आरोपों को कौन देखता है? ऐसे में ये वक्त, बाकी पार्टियों के लिए बीजेपी से महीन राजनीतिक बारीकियां सीखने का भी हो सकता है.

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