ADVERTISEMENTREMOVE AD

खुद को भारतीय साबित करने के लिए अपनों को खोते परिवारों की कहानी

असम के कामपुर जिले में 5 अगस्त को आस्मा खातून ने अपनी दो बहनों एक हादसे में खो दिया

छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

ADVERTISEMENTREMOVE AD
हमें ऐसी सुनवाई नहीं चाहिए, मेरी बहन की जान चली गई
आस्मा खातून

असम के कामपुर जिले में 5 अगस्त को आस्मा खातून ने अपनी दो बहनों- जोयमोन निशा और अर्जिना बेगम को एक बस हादसे में खो दिया. आस्मा की दोनों बहनें गोलाघाट से NRC वेरिफिकेशन की सुनवाई से लौट रही थीं, जोयमोन 34 साल की थीं और अर्जिना सिर्फ 14 साल की थीं.

3 अगस्त को दाकाचांग गांव में रह रहे इस परिवार को NRC अथॉरिटी ने नोटिस भेजा कि उन्हें जल्द से जल्द डॉक्युमेंट रि-वेरिफिकेशन के लिए आना होगा. उनकी दिक्कत सिर्फ ये थी कि उनके पास 24 घंटे का ही वक्त था और रि-वेरिफिकेशन की लोकेशन 300 किलोमीटर दूर गोलाघाट में थी. आस्मा का कहना है कि आखिरी वक्त पर NRC की सुनवाई की वजह से उनकी बहनों की जान गई.

ये दोनों गोलाघाट, असम से NRC की सुनवाई के बाद लौट रही थीं, सुनवाई यहां होनी चाहिए, हम वहां नहीं जाना चाहते, अगर हम जिंदा रहेंगे तभी जा पाएंगे, हम जहां रहते हैं वहां से इतनी दूर NRC अधिकारियों ने सुनवाई क्यों रखी? एक झटके में मैंने अपनी दोनों बहनों को खो दिया.
अस्मा खातून

ये सिर्फ दो मौतें नहीं हैं इस हादसे में परिवार के कई सदस्य गंभीर रूप से घायल हो गए. अरिजुल रहमान दाकाचांग में अपने परिवार की किराना दुकान चलाते हैं लेकिन इस हादसे के बाद उन्हें गंभीर चोट आई है और अब वो बिस्तर से उठ नहीं सकते हैं.

मेरे पति की जीभ कट गई, वो बात नहीं कर सकते, उनके सिर में भी चोट लगी है, उस एक्सीडेंट में मेरे ससुर भी बुरी तरह घायल हो गए हैं, वो अस्पताल में भर्ती हैं. 
मुनिज परवीन

परिवार का नाम एनआरसी ड्राफ्ट में हैं, लेकिन एनआरसी अधिकारियों ने शक और सवाल उठाए. अब तक, परिवार को 3 बार रि-वेरिफिकेशन के लिए पेश होना पड़ा है, अरिजुल के भाई एमजे अहमद का हाथ टूट गया. उनका कहना है कि “अगर सुनवाई में हाजिर होने की थोड़ी और मोहलत मिली होती तो ये नहीं होता. NRC को सुनवाई से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना चाहिए.

उनका कहना है कि “हमें सुनवाई से ठीक 24 घंटे पहले नोटिस मिला, हम पहले ही 3 सुनवाई के लिए जा चुके हैं. काओमारी में, रंगिया और फिर गोलाघाट.”

परिवार में हुई दो मौत ने इन लोगों को झकझोर कर रख दिया है. उन्हें नहीं पता कि उनका नाम फाइनल NRC में आएगा या नहीं. लेकिन अभी उन्हें ट्रॉमा से गुजरना पड़ रहा है और उससे उभरने का रास्ता ढूंढना पड़ रहा है.

मेरी तकलीफ मुझे सोने नहीं देती, मेरी छोटी बेटी और मैं बहुत करीब थे. मुझे नहीं पता कि मैं उसके बिना कैसे रहूंगी.
मरियम बेगम, अर्जिना और जोयमोन की मां
ADVERTISEMENTREMOVE AD

असम में ये कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं है. लोगों को 400-500 किलोमीटर दूर कैंप में जाकर रि-वेरिफिकेशन के लिए आने को कहा गया है. समय कम है, लिहाजा गरीब परिवार गिरते-पड़ते कैंपों में पहुंच रहे हैं. जिनके पास पैसा नहीं है उनके लिए मुश्किल ज्यादा है, लेकिन जिनके पास पैसा है भी, उनके लिए भी कैंप पहुंचना मुश्किल हो रहा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×