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सरकार Vs वॉट्सऐप: नाम पब्लिक का, फायदा अपना? 

असली मसला क्या है- WhatsApp पर नियंत्रण की कोशिश?

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वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी

सीनियर एडिटर: संतोष कुमार

WhatsApp ने भारत सरकार से बड़ा पंगा ले लिया है. सोशल मैसेजिंग प्लेटफॉर्म ने दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में एक मुकदमा दायर किया है और कहा है कि सरकार जो नियम लागू करना चाहती है वो गैर-कानूनी और भारत के संविधान के खिलाफ है. WhatsApp का कहना कि नए नियमों की वजह से पूछने पर बताना पड़ेगा कि सबसे पहले मैसेज किसने किया. ऐसे में ये कानून मास सर्विलांस का जरिया बन जाएगा, जिससे यूजर्स की प्राइवेसी प्रभावित होगी. ये मुकदमा ऐसे समय में दायर किया गया है जब दूसरे बड़े टेक प्लेटफॉर्म्स से भी भारत सरकार के रिश्ते बिगड़ते और कड़वे होते जा रहे हैं.

असली मसला क्या है- WhatsApp पर नियंत्रण की कोशिश?

पहले WhatsApp का मूल मुद्दा समझ लीजिए. सरकार का इस प्लेटफॉर्म से कहना है कि वो 'मैसेज' पढ़ना नहीं चाहती लेकिन जब राष्ट्रीय या आंतरिक सुरक्षा का मुद्दा होगा और दूसरे रास्ते नहीं दिखेंगे तो वो ये जानना चाहेगी कि आखिर मैसेज को भेजने वाला सबसे पहला आदमी कौन है. इसी प्लेटफॉर्म पर 'WhatsApp University' क्रिएट की गई है. आपको पता होगा कि इस वर्चुअल 'स्वदेशी विश्वविद्यालय' में सामाजिक-धार्मिक ध्रुवीकरण की कैसी कमेंट्री चलती है.

अब जब से वॉट्सअप और दूसरी टेक कंपनियों पर इन जहरीले तत्वों को रोकने के लिए सिविल सोसाइटीज का दबाव बनने लगा है, तो सरकार को दिक्कत हो रही है कि उसका नियंत्रण कम हो जाएगा.

एंड टू एंड एनक्रिप्शन के मैसेज पढ़ना संभव नहीं - WhatsApp

WhatsApp और सरकार के बीच अबतक ठीक-ठाक संबंध रहे हैं लेकिन सरकार अब नकेल कसने की कोशिश में है. WhatsApp का कहना है कि एंड-टू-एंड एंक्रिप्शन में जब कंपनी खुद मैसेज नहीं पढ़ सकती तो सरकार को कैसे पढ़ने दे पाएगी. WhatsApp का कहना है कि ऐसे करने के लिए पूरा प्लेटफॉर्म बदलना होगा, प्राइवेसी के रूल बदलने होंगे, जैसा कंपनी कर नहीं सकती.

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फेसबुक और गूगल ने सरकार से मांगी सफाई

इस बीच WhatsApp की ऑनर कंपनी फेसबुक और गूगल ने ही सरकार को बता दिया है कि कानून को लागू करने में थोड़ा और वक्त लेना चाहिए. कंपनियों का कहना है कि कानून की कुछ बातों को वो मान रहे हैं और कुछ बातों को समझने के लिए थोड़े और वक्त की दरकार है.WhatsApp की दिक्कत ये है कि जिस प्राइवेसी के आधार पर ये प्रोडक्ट खड़ा हुआ है. अगर ये आधार ही टूट जाएगा तो प्लेटफॉर्म के यूजर जाने लगेंगे. पिछले दिनों जब वॉट्सअप की अपनी पॉलिसी आई थी तब भी तमाम यूजर तेजी से सिग्नल और टेलीग्राम पर गए थे. इसलिए कुल मिलाकर वॉट्सअप पर अपने बिजनेस को बचाए रखने का तनाव है.

क्या सरकार के सामने झुकेगा WhatsApp ?

अब ये कैसे पता चले कि सरकार की नीयत पूरी तरह से साफ है और इस कदम के पीछे 'देशहित' है न कि 'राजनीतिक हित'? इसे एक उदाहरण से समझिए. जनवरी,2020 से जून तक सरकार ने ट्विटर से करीब ढाई हजार जानकारियां मांगी. ये दो तरह की थीं- या तो जानकारी दीजिए, या तो पोस्ट को हटा दीजिए.इतनी ज्यादा जानकारी किसी और देश ने ट्विटर से नहीं मांगी है.

पिछले दिनों कोरोना संकट के बीच गलत जानकारियों को लेकर या सरकार की आलोचना वाले ट्वीट को हटाने को लेकर करीब 1100 रिक्वेस्ट ट्विटर को सरकार की तरफ से भेजी गईं. फेसबुक ने जो आंकड़ा दिया है उसके मुताबिक, 40 हजार रिक्वेस्ट उस प्लेटफॉर्म के पास आई हैं.

सरकार को बताना चाहिए- किन लोगों के पोस्ट, ट्वीट हटाने का आग्रह भेज रही है

कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि सरकार सिर्फ ये जाहिर कर दे कि आखिर किस यूजर का पोस्ट हटाने के लिए वो कह रही है और किस तरह की जानकारी मांग रही है तो इससे साफ हो जाएगा कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा की किन-किन चिंताओं से जूझ रही है. आखिर वो क्या मुद्दे हैं जो दूसरे तरीकों से वो पता नहीं लगा पा रही है और वॉट्सअप से इंनक्रिप्शन तुड़वाने तक की नौबत आ जा रही है.

कोरोना के बीच बिग टेक कंपनियों से युद्ध

अभी पूरा देश कोरोना संकट से जूझ रहा है. ऐसे में हो सकता है कि इन चीजों पर जितनी सार्वजनिक बहस होनी चाहिए वो न हो पाए लेकिन ये समझना बहुत जरूरी है कि भारत सरकार दुनिया के बड़े देशों की बड़ी टेक कंपनियों से लड़ाई का नया मोर्चा खोल रही है. क्या इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाकर सरकार हटा देगी? ऐसा हो नहीं सकता लेकिन गारंटी के साथ कुछ नहीं कह सकते. क्योंकि वोडाफोन हो या केयर्न हो, मौजूदा सरकार को कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने में मजा आता है. ऐसे में देखना पड़ेगा कि ये लड़ाई आगे किस दिशा में जाती है.

लेकिन ये साफ है कि ये लड़ाई आसानी से खत्म होने वाली नहीं है. बहुत कड़वाहट फैलेगी और हो सकता है कि इसमें भी पॉलिटिकल लाइन क्रिएट की जाए कि ये कंपनियां भी विदेशी षडयंत्र का हिस्सा है.

WhatsApp का इंक्रिप्शन टूटे या नहीं टूटे, इस बात पर भी ध्रुवीकरण की कोशिश की जा सकती है. हम सबको सावधान होने की जरूरत है क्योंकि सरकार हो या WhatsApp दोनों ही लोगों की वजह से हैं. दोनों ही कहते हैं कि हम आपकी तरफ हैं, लेकिन दोनों के अपने-अपने हित हैं, जिसमें हमारा हित नहीं है.

WhatsApp से झगड़े के पीछे क्या है-बड़े पैमाने पर निगरानी?

इस लड़ाई को इस तरीके से नहीं समझना चाहिए कि भारत सरकार बहुत अच्छे विचारों से बड़ी टेक कंपनियों के साथ लड़ाई लड़ रही है. जिस तरह से फ्री स्पीच पर हमला हो रहा है, प्राइवेसी के मुद्दे खड़े हो रहे हैं. ऐसे ही हम लोगों की प्राइवेसी पर, फ्रीडम पर कंट्रोल का माहौल बना हुआ है. इसलिए ये लड़ाई बहुत अहम लड़ाई है क्योंकि सरकार का मकसद एक ही है कि मास सर्विलांस कैसे किया जाए सके. लोगों को कंट्रोल कैसे किया जाए कि उसका इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए हो सके.

WhatsApp के साथ कोई हमदर्दी नहीं है लेकिन सरकार के तौर-तरीकों पर भारी शक है. क्योंकि इसमें आपकी और हमारी फ्रीडम और प्राइवेसी के मुद्दे छिपे हुए हैं.

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