ADVERTISEMENTREMOVE AD

CBI vs CBI सरकार की राजनीतिक पूंजी का ‘डिमॉनेटाइजेशन’ तो नहीं?

सीबीआई कांड ने देश को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है,जहां सवाल है कि कानून का राज और संस्थाएं कैसे चल रही हैं?

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सीबीआई कांड ने देश को एक बेहद नाजुक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां सवाल ये है कि देश में कानून का राज और संस्थाएं कैसे चल रही हैं? दूसरी बड़ी चुनौती है उस राजनीतिक पूंजी के लिए, जो इस सरकार के पास काफी मात्रा में मौजूद थी, वो कहीं डिमाॅनेटाइज तो नहीं हो जाएगी?

सवाल इसलिए भी खड़ा हुआ है कि जिस बात को हम समझते थे कि ये सीबीआई के नं 1 और नं 2 के टर्फ की लड़ाई है, अहम की लड़ाई है, आपसी झगड़ा है, लेकिन हालिया घटना से पता चलता है कि बात वहीं तक सीमित नहीं थी. बात ये थी कि सीबीआई का नं 1 किस तरह से मामलों की जांच करता था, करना चाहता था और नं 2 किस तरह से सीबीआई में अपना दखल रखना चाहता था.

CBI vs CBI की इस लड़ाई में CBI डायरेक्टर आलोक वर्मा, स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं.

एक सवाल और निकला है, जिस पर हमारी निगाह कम रहती है- देश में सीवीसी क्या काम करता है?

सीवीसी पहले तो चरित्र प्रमाणपत्र देता है कि फलां साहब को आप इस पद पर प्रमोट कर सकते हैं, फिर उसके बारे में शिकायतें आती हैं, तो वो महीनों और बरसों बैठा रहता है. इस मामले में आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बारे में शिकायतें इनके पास अगस्त महीने से मौजूद थीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

सीवीसी की नियुक्ति कौन करता है?

नियुक्ति सरकार करती है, यानी वो एक तरह का सरकारी विभाग हुआ, न कि स्वायत्त संस्था.

भारत में सरकार बहुत ताकतवर होती है. उसके पास संविधान के दिए ढेर सारे अधिकार होते हैं लेकिन यहां सवाल क्यों खड़ा हुआ? रातोंरात ऐसी क्या बात हुई कि राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया गया. उनकी जगह नए व्यक्ति को लाया गया. सरकार ने रात 12 बजे फैसला किया कि सीबीआई चीफ कौन बनेगा. इसकी सीवीसी क्लीयरेंस भी जल्दी आ गई. हालांकि एम नागेश्वर राव अंतरिम डायरेक्टर बना दिया गया. रात 2 बजे टेकओवर हो गया. सीबीआई का दफ्तर सील कर दिया गया. किसी थ्रिलर या बड़े नाॅवेल में भी इतनी जटिल कहानी नहीं बयां की जा सकती, जो घटनाएं हमने दिल्ली में पिछले कुछ दिनों में देखी हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हम आपके सामने ये सवाल रख रहे हैं ताकि आप ये विचार करें.

पहला सवाल ये है कि क्या स्वायत्त दर्जा वाले सीबीआई के मामले में नियुक्त किए जाने वाली कमेटी से सलाह लिए बगैर सरकार को सीबीआई चीफ को हटाना चाहिए था?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीवीसी इसपर 15 दिनों में फैसला करे कि आलोक वर्मा पर लगे आरोप सही है या नहीं?

दूसरी तरफ सीबीआई के नए चीफ एम नागेश्वर राव को कोई भी अहम फैसला लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है.

सरकार के लिए ये बड़ा झटका है, जिस सरकार ने अपने पाॅलिटिकल नैरेटिव पर पूरा कंट्रोल बनाकर रखा था, स्क्रिप्ट अपने हिसाब से लिखती थी, उसमें इतने सारे को-आॅथर कहां से आ गए?उसमें अचानक बहुत सारी एजेंसियां आ गईं राॅ, आईबी, सीबीआई, ईडी और अब सीवीसी.

इन लोगों के बीच क्या कोई गिरोहबंदी चल रही थी? क्या भ्रष्टाचार के अलग-अलग मामलों में पैसा खाने की अफसरशाही का काम चल रहा था? या राजनीतिक कारणों से विरोधियों के पीछे या भ्रष्टाचार की अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाते दिखने के लिए कुछ छोटे, कुछ मोटे शिकार. कुछ सही, कुछ गलत शिकार पकड़ने का राजनीतिक कार्यक्रम चल रहा था? सवाल खड़ा हुआ है चूंकि सरकार की तरफ से दिखाया गया था कि भ्रष्टाचार, कालाधन के खिलाफ बहुत बड़ा अभियान देश में चलाया जा रहा था, अब उसके तहखाने की सच्चाई सामने आई है.

कुछ दिन पहले यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने सीबीआई डायरेक्टर से मुलाकात करके एक बड़ा आरोपपत्र सौंपा था, जिसमें कहा था कि राफेल मामले की जांच होनी चाहिए और सरकार के काम पर सवाल उठाते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी. अब विपक्ष यही सवाल पूछ रहा है. कांग्रेस सड़क पर उतर कर यही सवाल पूछ रही है कि ये सीबीआई का टर्फ वॉर है या सरकार को राफेल की जांच शुरू होने का डर?

यही आरोप अब वो सुब्रह्मण्‍यम स्वामी लगा रहे हैं, जो कांग्रेस के, चिदंबरम के दुश्मन हैं. जो वित्तमंत्री अरुण जेटली के भी मित्र नहीं हैं. जो अब तक संघ, बीजेपी और मोदी जी के समर्थन में बोलते रहे हैं. उन्होंने कह दिया है कि ये सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की पोल खोलने वाला कांड है.

चुनाव से ठीक पहले जिस पाॅलिटिकल नैरेटिव पर पकड़ चल रहा था वहां अचानक इसी सरकार के कुछ चुने हुए किरदार आ गए हैं जिन्होंने स्क्रिप्ट को नया मोड़ दे दिया है.

सरकार की विश्वसनीयता, साख और राजनीतिक पूंजी खतरे में आ गई है.

सीबीआई का ये कांड एक विशेष घटना के रूप में सामने आया है, लेकिन इसे घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. ये जाहिर करता है कि इस देश में राजनीति कैसे चले? क्या स्टेट टूल- थाना, पुलिस, आरोप, साजिशें, निगरानी, जांच और इन एजेंसियों के अंदर अपनी-अपनी गिरोहबंदियां इसी तरह से चलाना स्टेटक्राफ्ट है? क्या राजनीतिक लक्ष्य ऐसे ही हासिल किए जाते हैं?

कई बार ये चलता है, कई बार नहीं भी चलता है. हमें नहीं मालूम कि जनता की अदालत में इस पर क्या फैसला होगा. लेकिन फिलहाल राहत की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद मामले में दखल दे दिया है. सरकार के हाथ बांधे हैं. सीवीसी पर पूरा भरोसा नहीं है, तो अपनी निगरानी में जांच को 15 दिन में पूरा करने को कहा है.

सरकार के लिए ये सबसे खतरनाक मोड़ है. इससे सरकार कैसे उबरेगी, ये हमें आने वाले हफ्तों में पता चलेगा.

ये भी पढ़ें- ब्रेकिंग VIEWS: लुढ़कते शेयर बाजार और IL&FS संकट की इनसाइड स्टोरी

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×