वीडियो एडिटर- संदीप सुमन
29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि देश के सभी गांवों तक अब बिजली पहुंच गई है. मणिपुर के सेनापति जिले का लेइसांग गांव 28 अप्रैल की शाम राष्ट्रीय बिजली ग्रिड से जुड़ने वाला अंतिम गांव बना.
जिन लोगों ने अपना शुरुआती जीवन बिना बिजली के बिताया हो उनके लिए ये किसी चमत्कारी घोषणा से कम नहीं था.
मैंने सरकारी आंकड़ों से ये जानने की कोशिश की कि आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे? आंकड़ों पर नजर डाली तो दिखे वही ढाक के तीन पात. मतलब इस तरह के कितने ही मील के पत्थर हम पार कर चुके हैं. ये घोषणा कोई चमत्कारी घोषणा नहीं थी. यानी इन आंकड़ों से हमारी जिंदगी पर कोई असर नहीं होने वाला.
समझते हैं पूरी कहानी
आजादी के कुछ साल बाद यानी 1950 में देश में करीब 3000 ऐसे गांव थे जहां लोगों को बिजली के दर्शन होते थे. उसके बाद से कभी धीरे-धीरे और कभी तेजी से कागज पर गांवों में बिजली पहुंचने लगी.
2013 में 5 लाख 60 हजार गांवों तक बिजली पहुंच गई. अगले एक साल में 15,000 गांव और जुड़ गए. 2015 में 3,000 और गांवों को जोड़ा गया और 2016 में 8,000 और गांव जुड़े. ये सारे आंकड़े सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी ऑथरिटी के वेबसाइट से लिए गए हैं.
यानी सरकारी आंकड़े खुद कह रहे हैं कि पिछले 4 साल में कुछ ऐसा नया चमत्कार नहीं हुआ है जिसे क्रांति कहा जाए.
एक आंकड़ा और है जिसपर कोई बात नहीं करता है वो भी जान लीजिए. केंद्र सरकार पिछले 4 साल में 18,000 गांवों को रोशन करने का दावा कर रही है. लेकिन उनमें से सिर्फ 1,416 गांव ऐसे हैं जहां हर घर में बिजली है.
मतलब, सिर्फ 8% ऐसे गांव हैं जिनका असल में बिजलीकरण हुआ है. अगर इसी को बेंच मार्क माना जाए तो देश के कुल करीब 6 लाख गांवों में से 8-10% ही असल में इलेक्ट्रिफाइड हैं.
ढिंढोरा पीटने वाली उपलब्धि है क्या?
कागजों पर गांवों में बिजलीकरण किस रफ्तार से हुआ है, इसके कुछ नमूने देखिए.
1974 से 1979 के बीच 76,000 गांवों का बिजलीकरण हुआ. मतलब हर साल करीब 16,000 गांव. 1980 के इसमें और तेजी आई और हर साल करीब 20,000 गांवों के इलेक्ट्रिक ग्रिड से जोड़ा जाने लगा.
- साल 1974 तक- 1,56729 गांव
- साल 1979 तक- 2,32770 गांव
- साल 1980 तक- 2,49,799 गांव
इसीलिए इन 4 सालों में 18,000 गांवों में बिजली पहुंचाना किसी भी तरह से चमत्कार तो नहीं ही कहा जा सकता है.
चमत्कार के कुछ और नमूने देखिए.
- पावर जेनरेशन यानी बिजली पैदा करने की ग्रोथ जो 2014-15 में 8% से ज्यादा था वो 2017-18 में घटकर 4% से भी कम हो गयी है.
- प्रति व्यक्ति बिजली खपत की वृद्धि दर 2014 में 4.7% थी. 2017 में इसमें सिर्फ 4.3% का ग्रोथ था. मतलब खास बदलाव नहीं.
कहने का मतलब ये कि कागज पर सारे गांवों में बिजली पहुंच गई लेकिन न तो बिजली पैदा करने की रफ्तार तेज हुई और ना ही खपत में भारी उछाल. ऐसे में हमें तो यही मानना पड़ेगा कि ताजा दावा डेटागिरी का ही एक और नमूना है. हमारी जिंदगी से बिजली अब भी नदारद है. अगर यह दिल को बहलाने के लिए किया गया है तो मेरा कहना है कि गालिब इससे मायूसी ही बढ़ती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)