वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
सीनियर एडिटर: संतोष कुमार
हिरासत के दौरान हुई मौत के मामलों में आमतौर पर पुलिस पीड़ित परिवार के ऊपर तमाम तरह के दबाव बनाती है और कई प्रकार के प्रलोभन भी देती है. कुछ मामलों में ये भी देखा गया है कि पीड़ित परिवार पुलिस से सेटलमेंट कर लेते हैं. लेकिन ऐसे मामलों में पीड़ित परिवारों की मंशा पर सवाल नहीं उठाए जा सकते क्योंकि परिजन किसी अपने की मौत के बाद इस तरह के समझौते बहुत ही मजबूरी में करते हैं. ऐसा ही एक मामला हम यूपी के मऊ जिले से लेकर आए हैं. जहां एक शख्स की हिरासत में हुई मौत के केस में पुलिस पर पीड़ित परिवार के साथ सेटलमेंट करने और मजिस्ट्रियल जांच में दोषी पाए जाने के बाद भी आरोपी पुलिसवालों पर कोई कार्रवाई न होने के गंभीर आरोप लग रहे हैं.
मऊ जिले की घोसी कोतवाली में 9 सितंबर, 2019 को 35 साल के ओकेश यादव की पुलिस हिरासत के दौरान मौत हो गई. ओकेश को बैटरी चोरी के आरोप में 7 सितंबर को गिरफ्तार किया गया था. हैरानी की बात ये है कि ओकेश पर न तो कोई एफआईआर दर्ज हुई थी और न ही पुलिस ने थाने में उसकी गिरफ्तारी की कोई एंट्री रजिस्टर की थी. मृतक के चाचा रिखई यादव के मुताबिक, ओकेश घर पर रहकर खेती-बाड़ी करता था. 7 सितंबर, 2019 की सुबह उन्हें जानकारी मिली कि पड़ोस में रहने वाले रघुनाथ यादव की बैटरी चोरी के आरोप में उनके भतीजे ओकेश को कुछ लोग बगल के हाजीपुर गांव ले गए हैं. लोगों का कहना था कि इस चोरी में ओकेश और मनिकापुर गांव के योगेश राजभर शामिल थे. योगेश ने चोरी कबूल कर ली और उसने ओकेश का भी नाम लिया. इस दौरान वहां रघुनाथ के बेटों के आलावा हाजीपुर गांव का ही रहने वाला अच्छे लाल यादव भी मौजूद था, जो उस समय गांव का चौकीदार था.
बैटरी चोरी जैसे छोटे से मामले में सीओ का क्या काम?
घटना के दिन के एक वायरल वीडियो में दिख रहा है कि अच्छे लाल यादव के साथ वहां कई लोग ओकेश और योगेश को घेरकर खड़े हैं. योगेश दावा कर रहा है कि उसने ओकेश के साथ मिलकर बैटरी चोरी की थी. हालांकि, ओकेश लगातार इन आरोपों से इंकार करता रहा. उसने खीझकर योगेश को थप्पड़ भी मारे. इसी दौरान योगेश ने अच्छे लाल यादव से ओकेश के ऊपर हाथ छोड़ने की इजाजत मांगी और इजाजत मिलते ही वो भी ओकेश को पीटने लगा. वीडियो में दिख रहा है कि योगेश ने एक-दो बार ओकेश को पीपल की जड़ पर पटक भी दिया.
अगर ओकेश चोर होता, तो योगेश उसका नाम लेता? उसको मारता? योगेश ने ये सब अच्छे लाल यादव के कहने पर किया. जब चोरी तिलई खुर्द गांव में हुई थी, तो उसे हाजीपुर गांव में ले जाने का क्या मतलब था? हम लोग ओकेश को लेकर वापस चले आए, समझौता कराने की बात हो ही रही थी कि अच्छेलाल यादव (चौकीदार) ने कहा कि समझौता नहीं होगा. मैंने सीओ श्वेता आशुतोष ओझा को कॉल कर दिया है. बात चल रही थी कि तब तक सीओ आ गईं. सीओ ने थाने को सूचना दी, थाने से पुलिस आई और सीओ ने ओकेश को थाने भिजवा दिया. आखिर, डायरेक्ट सीओ को बुलाने का क्या औचित्य था?रिखई यादव (मृतक ओकेश के चाचा)
पुलिस ने खुद को बचाने के लिए मृतक पर ही दर्ज की FIR
मृतक के चाचा का आरोप है कि रघुनाथ के साथ मिलकर अच्छे लाल यादव ने साजिश की थी. अच्छेलाल से उनका कोई विवाद नहीं था. हालांकि, रघुनाथ से एक जमीन विवाद था और अच्छे लाल रघुनाथ के घनिष्ठ मित्र थे. इसीलिए रघुनाथ ने बैटरी चोरी का झूठा आरोप लगाया. उनके पूरे परिवार पर आज तक चोरी का कोई आरोप नहीं लगा. ओकेश को छुड़ाने के लिए वो थाने गए, लेकिन कोतवाल नीरज पाठक कहते थे कि सीओ पकड़ी हैं, उनसे बात करने के बाद ही छोड़ पाएंगे. नहीं तो वो कहेंगी कि आपने बिना हमसे पूछे क्यों छोड़ दिया? ये करते हुए दो दिन बीत गए. दावा है कि इस दौरान, आरोप लगाने वाला पक्ष भी सुलह करने को तैयार था लेकिन फिर भी पुलिस ने ओकेश को नहीं छोड़ा. इसी बीच, 9 सितंबर की सुबह खबर आई कि ओकेश की तबियत बिगड़ने पर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी मौत हो गई. हालांकि, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ये सामने आया कि ओकेश की मौत की वजह Anti Mortem Head Injury थी. उसके सिर के पिछले हिस्से पर चोट लगी थी, जिससे खून का थक्का जमा हुआ था.
दावा है कि अपनी गलती छिपाने के लिए, पुलिस ने एनएचआरसी के दिशा-निर्देशों का माखौल उड़ाते हुए खुद को इस मामले में बचाए रखने की पूरी कोशिश की. पुलिस ने ओकेश की मौत के बाद उस पर बैटरी चोरी की एफआईआर दर्ज की. इसके साथ ही, ओकेश के चाचा की तरफ से दी गई तहरीर के आधार पर पुलिस ने एक दूसरी एफआईआर भी दर्ज की. जिसमें ओकेश की पिटाई के आरोप में अच्छे लाल यादव और अन्य के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या की धारा लगाई गई.
सुलह की कोशिश के बाद भी ओकेश को क्यों नहीं छोड़ा गया?
ओकेश की मौत के बाद स्थानीय लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया. लोगों का आरोप था कि ओकेश की मौत की मुख्य दोषी सीओ श्वेता आशुतोष ओझा हैं. लोगों का कहना था कि जब दोनों पक्ष सुलह करना चाहते थे तो ओकेश को सुलहनामा लिखवाकर क्यों नहीं छोड़ा गया? कोतवाल कहते रह गए कि जब तक सीओ साहब नहीं कहेंगी तब तक हम नहीं छोड़ सकते. सीओ का हवाला देते हुए उन लोगों ने ओकेश को रात में भी बुरी तरह टॉर्चर किया. कुछ लोगों ने दबी जुबान से सीओ पर इस तरह के मामलों के जरिए पैसे उगाही के भी गंभीर आरोप लगाए. लेकिन सीओ पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई. दबाव में जिला प्रशासन ने कोतवाल को लाइन हाजिर कर दिया और सीओ का तबादला कर खानापूर्ति कर दी.
एक तरफ, पुलिस ने ओकेश की गैर-इरादतन हत्या के आरोप में तत्कालीन चौकीदार अच्छे लाल यादव समेत सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल कर उन्हें जेल भेज दिया. हालांकि, वो एक महीने में ही जमानत पर बाहर आ गए. दूसरी तरफ, ओकेश की पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामले में न्यायिक जांच होती रही. 23 मार्च, 2021 को सीजेएम ने अपनी जांच रिपोर्ट में तत्कालीन कोतवाल नीरज पाठक, दारोगा ओमप्रकाश, कांस्टेबल यमुना सिंह और राजमनी को लापरवाही, उपेक्षा, वधिक दायित्व के विर्वहन में कार्य-लोप, विधि-विरुद्ध गिरफ्तारी व कार्य, चिकित्सा उपचार में लापरवाही के कारण ओकेश यादव की मृत्यु का दोषी पाया. सीजेएम ने इन सभी आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर मुकदमा चलाने और विभागीय कार्रवाई करने का आदेश दिया था. लेकिन इस आदेश के एक साल बीत जाने के बाद भी अभी तक एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई है. सभी आरोपी कहीं न कहीं पोस्टेड हैं, जबकि एक तो रिटायर तक हो चुका.
न्यायिक जांच में पुलिसवाले दोषी पाए गए, फिर क्यों नहीं हो रही कार्रवाई?
ओकेश की गैर-इरादतन हत्या के आरोपी तत्कालीन चौकीदार अच्छे लाल यादव का आरोप है कि ओकेश को रात में थाने में मारा गया था. रात में एक पियक्कड़ सिपाही ने उसको थप्पड़ मारा था, जिससे वो हवालात में जाकर लड़ गया और वहीं गिरकर मर गया. अपनी सफाई में अच्छे लाल ने कहा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में लिखा है कि उसे कोई चोट नहीं थी, सिर्फ एक चोट होमोटोमा पर थी. कोई उसको मारा नहीं था, वीडियो तो बस हव्वा में बन गया था. डीएम कह रहे हैं कि हम तो जानते ही नहीं हैं. हमारी कोई भूमिका नहीं थी, सिर्फ इतनी ही भूमिका थी कि हमने सीओ को कॉल करके बुला दिया, सीओ की भी कोई भूमिका नहीं थी. जब बैटरी चोर पकड़ा गया तो हमने सोचा कि कोई उसे न मारे, इसलिए सीओ को बुलाकर दे दें. कोतवाल से रिखई ने 30-32 लाख रुपए लिए हैं, इसलिए मुझे फंसाने के लिए मेरे और भतीजे पर 9 सितंबर की शाम 3 बजे एफआईआर हुई. अगर मैं आरोपी था, तो आखिर उन्होंने 7 सितंबर को तहरीर क्यों नहीं दी कि मैंने ओकेश को मारा?
35 साल के ओकेश यादव की हिरासत में हुई मौत के मामले में पुलिस पर पैसे उगाही के गंभीर आरोप हैं. लेकिन कथित चोरी के आरोप में हुई पिटाई और फिर बिना एफआईआर या फिर बिना जीडी एंट्री के भी, 2 दिन तक थाने में रखने के दौरान हुई मौत के मामले में 2 साल से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी आज तक इंसाफ नहीं हुआ है. पुलिस पर जो एफआईआर 2 साल पहले हो जानी चाहिए थी, वो मजिस्ट्रियल जांच में दोषी पाए जाने के बाद भी नहीं हुई है. हमने इस पूरे मामले पर मऊ के मौजूदा डीएम और एसपी से उनका पक्ष जानना चाहा लेकिन किसी ने भी हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया.
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